Prem : Ek Album

Prem : Ek Album

Authors(s):

V. M. Girija

Language:

Hindi

Pages:

64

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

128 mins

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Book Description

मलयालम कविता जहाँ-जहाँ रूढ़ अवशेषों से टकराती है और अपनी भाषिक एवं सांस्कृतिक स्वत्वगत मौलिकता को बनाए रखते हुए समय में रचे-बसे औपनिवेशिक आयामों का अनावरण करती है, वहाँ यह समकालीन साबित होती है। मलयालम कविता का यह सृजनात्मक व दृष्टिसम्पन्न उन्मेष बहुआयामी इसलिए है कि वह सत्ता के बहुरंगी वर्चस्व को पहचानती है। अत: समकालीन मलयालम कविता एककेन्द्री नहीं बल्कि बहुकेन्द्री है। उसकी बहुस्‍वरता समय के सही सरोकारों से उपजी विशेषता है। इसलिए उसका प्रतिरोधी स्वर तमाम जटिल स्थितियों में अनुवाद गुंजित हो उठता है। आज की मलयालम कविता में नारी-स्वत्व का स्वर विद्रोह की बहिरंग मुखरता मात्र नहीं है। उसका पूरा तेवर मुक्ति की कामना को आद्यन्त अनावृत करने का रहा है।</p> <p>पुरुषकेन्द्रित सामाजिक वर्चस्व को सरलीकृत करना मलयालम की नारीवादी कविता का उद्‌देश्य नहीं है। पुरुष-केन्द्रीकरण को वह नए सन्दर्भ में प्रस्तुत करती है।...मलयालम कविता ने नारी-दृष्टि को इसी व्यापक सन्दर्भ में अनुभव किया है। एक इतिहासबद्ध दृष्टि उसका सम्बल ही नहीं है, बल्कि वह उसकी अवस्थिति है। स्त्री-कामनाओं की कविता पुरुषविरोधी कविता नहीं है, वह पुरुषाधिष्ठित एकांगी मूल्यों की विरोधी कविता है। व्यापक सन्दर्भ में वह विपक्ष की कविता है। मुक्ति की पारदर्शी स्थिति उसमें अंकित है। वह अधिकार-केन्द्रित संस्कृति पर आघात करती है। ...मलयालम कविता में आधुनिक दौर से लेकर यह मुक्तिकामी स्‍वर मुखर रहा है। उसमें तमाम अवरोधों को तोड़ने का आग्रह भी है।</p> <p>...समकालीन मलयालम कविता में वी.एम. गिरिजा का स्वर सबसे अधिक तेज़ तेवर से युक्त है। उनकी कविता के केन्द्र में उत्तप्त नारी ही विद्यमान है। उनके स्वर में विद्रोही दृष्टि की एकायामी बुलन्दियाँ नहीं हैं। गिरिजा के अनुभव-जगत् में स्त्री पूर्णरूपेण यथार्थ है। वह नैतिक अवलम्ब के सहारे प्रस्तुत नहीं होती है। वह अपनी जैविक स्थिति में प्रस्तुत होती है। इसलिए गिरिजा अपनी कविताओं में प्रकृति का भरसक उपयोग करती हैं। प्रत्येक प्रकरण प्रकृति के सहज विन्यास के साथ जुड़कर जैविक स्थिति का बोध कराता है। सवाल यह है कि गिरिजा की कविता की यह हरियाली किससे सम्बन्धित है? हरियाली के साथ उन्होंने मिट्‌टी के मटमैलेपन को भी उभारा है। लोकोन्‍मुखता का यह परिदृश्य गिरिजा की कविता का यथार्थ है जिससे उनकी सृजनात्मकता उभार लेती है और उनकी दृष्टि हमारी नैतिकताओं की जटिलताओं की भीतरी स्थितियों की थाह लेती है। प्रकृति यहाँ रूमानी आग्रह से विन्यासित नहीं है। ‘इको-पोयट्री’ की तरह जल, आकाश और हरियाली के बिम्बों और प्रतीकों की आवृत्ति गिरिजा करती रहती हैं। अपने में विकसने को उद्यत, अपने में सम्पुष्ट और अपने में सम्पूर्ण स्त्री-कामनाओं की विराट उपस्थिति गिरिजा के हर एक शब्द को बारीक बना देती है। प्रेम का यह एलबम प्रेमाभिव्यक्ति को निरी भावानुभूति के स्तर पर प्रस्तुत करनेवाली कविताओं का आकलन-भर नहीं है<strong>।</strong> यह प्रेम के मूल्यों को खोजने का धारदार उपक्रम भी है।</p> <p>—भूमिका से

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