
Prarthana
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
168
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
336 mins
Book Description
नई-नई कथा-भूमियों में पहुँचकर, मनुष्य के जीवन और जिजीविषा की अदेखी अजानी सचाइयों को उद्घाटित करने में संजीव का सानी नहीं है। भारतीय समाज के जटिल से जटिलतर होते गए जन-जीवन के यथार्थ को जिस सूक्ष्मता से उन्होंने अपनी कहानियों में उकेरा है, वह न केवल उनके अनुभव-संसार की व्यापकता का प्रमाण है, बल्कि उस उत्तरदायित्व का भी जो एक लेखक के रूप में अपने लिए उन्होंने ख़ुद चुना है।</p> <p>यह संवेदना, यह दायित्व-भावना ही उनकी कहानियों का और उनके सम्पूर्ण लेखन का आधार है। इसीलिए उनकी कहानियाँ जादू और यथार्थ से मुक्ति जैसे जुमलों से बेअसर रहते हुए पाठक को उस संसार में ले जाकर खड़ा कर देती हैं जो जितना विस्मित करता है, उतना ही बेचैन। उस संसार से रू-ब-रू होना एक स्तर पर तकलीफ़देह भी है, इसलिए कि उसमें हम ख़ुद को बारहा अपने ही सामने खड़ा पाते हैं, हर झूठ और हर आवरण से परे। लेकिन ठीक यहीं ये कहानियाँ हमें आश्वस्त भी करती हैं, क्योंकि सच से गुज़रते हुए हम आदमियत के उस सिरे को और ज़ोर से पकड़ने लगते हैं जो हम से लगातार छूटता जा रहा है।</p> <p>प्रार्थना में संकलित कहानियाँ न केवल संजीव के कहानी-संसार के उल्लेखनीय शिखर हैं, बल्कि हिन्दी कहानी के लिए भी उपलब्धि हैं।