Do Sakhiyan
Author:
ShivaniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
महिला कथाकारों में जितनी ख्याति और लोकप्रियता शिवानी ने प्राप्त की है, वह एक उदाहरण है श्रेष्ठ लेखन के लोकप्रिय होने का। शिवानी लोकप्रियता के शिखर को छू लेनेवाली ऐसी हस्ती हैं, जिनकी लेखनी से उपजी कहानियाँ कलात्मक भी होती हैं और मर्मस्पर्शी भी।</p>
<p>अन्तर्मन की गहरी पर्तें उघाड़नेवाली ये मार्मिक कहानियाँ शिवानी की अपनी मौलिक पहचान हैं जिनके कारण उनका अपना एक व्यापक पाठक वर्ग तैयार हुआ।</p>
<p>इनकी कहानियाँ न केवल श्रेष्ठ साहित्यिक उपलब्धियाँ हैं, बल्कि रोचक भी इतनी हैं कि आप एक बार शुरू करके पूरी पढ़े बिना छोड़ ही न सकेंगे।</p>
<p>प्रस्तुत संग्रह में ‘उपप्रेती’, ‘दो सखियाँ’, ‘चाँचरी’, ‘पाथेय’ एवं ‘बन्द घड़ी’ कहानियाँ संकलित हैं। हर कथा अपनी मोहक शैली में अभिभूत कर देने की अपार क्षमता रखती है।</p>
<p>कलात्मक कौशल के साथ रची गईं ये कहानियाँ हमारी धरोहर हैं जिन्हें आज की नई पीढ़ी अवश्य पढ़ना चाहेगी।
ISBN: 9788183611091
Pages: 124
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
प्रियदर्शन की इन कहानियों में एक धड़कता हुआ समाज दिखता है—वह समाज जो हमारी तेज़ दिनचर्या में अनदेखा-सा, पीछे छूटता हुआ-सा रह जाता है। इनमें घरों और दफ़्तरों की चौकीदारी करते वे दरबान हैं जो अपने बच्चों के लिए बेहतर और सुन्दर भविष्य की कल्पना करते हैं, ऐसे मामूली सिपाही हैं जो भीड़ पर डंडे चलाते-चलाते किसी बच्चे के ऊपर पंखा झलने लगते हैं, ऐसी लड़कियाँ हैं जो हर बार नई लगती हैं और अपनी रेशमी खिलखिलाहटों के बीच दु:ख का एक धागा बचाए रखती हैं और ऐसा संसार है जो कुचला जाकर भी क़ायम रहता है।
ज़िन्दगी से रोज़ दो-दो हाथ करते और अपने हिस्से के सुख-दु:ख बाँटते-छाँटते इन चरित्रों की कहानियाँ एक विरल पठनीयता के साथ लिखी गई हैं—ऐसी क़िस्सागोई के साथ जिसमें नाटकीयता नहीं, लेकिन गहरी संलग्नता है जो अपने पाठक का हाथ थामकर उसे दूर तक साथ चलने को मजबूर करती हैं। निहायत तरल और पारदर्शी भाषा में लिखी गईं ये कहानियाँ दरअसल पाठक और किरदार का फ़ासला लगातार कम करती चलती हैं और यहाँ से लौटता हुआ पाठक अपने-आप को ख़ाली हाथ महसूस नहीं करता।
शुष्क और निरे यथार्थ की इकहरी राजनीतिक कहानियों या फिर वायवीय और रूमानी शब्दजाल में खोई मूलत: भाववादी कहानियों से अलग प्रियदर्शन की ये कहानियाँ अपने समय को पूरी संवेदनशीलता के साथ समझने और पकड़ने की कोशिश की वजह से विशिष्ट हो उठती हैं। इनमें राजनीति भी दिखती है, अर्थनीति भी, प्रेम भी दिखता है, दुविधा भी, सत्ता के समीकरण भी दिखते हैं, प्रतिरोध की विवशता भी, लेकिन इन सबसे ज़्यादा वह मनुष्यता दिखती है जिसकी चादर तमाम धूल-मिट्टी के बाद भी जस की तस है।
निस्सन्देह, ‘उसके हिस्से का जादू’ के बाद प्रियदर्शन का यह दूसरा कथा-संग्रह उन्हें समकालीन कथा-लेखकों के बीच एक अलग पहचान देता है।
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