Chaar Yaar Aath Kahaniyaan
Author:
Doodhnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
चार यारों की आठ कहानियों की यह प्रस्तुति हमारे चार बड़े लेखकों की समवयस्क-समकालीन रचना-यात्रा को एक भेंट तो है ही, उससे ज़्यादा यह हिन्दी कहानी के उस दौर का पुनर्पाठ है जब लेखक-मानस किन्हीं सिद्ध, स्वीकृत और स्थापित रूढ़ियों का अनुसरण नहीं कर रहा था, बल्कि एक युवा होते विशाल स्वतंत्र देश की तमाम असहायताओं-अपूर्णताओं के बीच खड़ा अपनी रचनात्मक ‘क्वेस्ट' में अपने आन्तरिक और बाह्य विस्तार को भाषा में पकड़ने का जी-तोड़ प्रयत्न कर रहा था। सम्पादक-आलोचक-पाठक-पोषित फार्मूलों</p>
<p>की सुविधा का ईजाद शायद इस दौर के काफ़ी बाद की घटना है।</p>
<p>ये कहानियाँ और इन कहानियों के रचनाकार भाषा की सीमाओं और अनुभव की असीमता, रूढ़ियों की आसानियत और अभिव्यक्ति के दुर्वह संकल्प के बीच तने तारों पर सधे खड़े ‘आइकंस’ हैं, भविष्य ने जिनसे उतना नहीं सीखा, जितना सीखना चाहिए था। अन्तर्बाह्य अन्वेषण की जिस मूल वृत्ति के चलते ये कहानियाँ आविष्कार की तरह घटित होती थीं, वही सबसे मूल्यवान चीज़ आगे की रचनात्मकता में गहनतर होती नहीं दिखती।</p>
<p>नई पीढ़ियों के लिए लगभग दस्तावेज़ी यह प्रस्तुति लेखकीय मित्रताओं के लिहाज़ से भी उन्हें एक ज़्यादा उजले परिसर में आने की दावत है जहाँ स्पर्द्धाओं के ‘टैक्स’ खुली साँस लेने के लिए पर्याप्त अन्तराल देते हुए स्थित होते हैं।
ISBN: 9788126727285
Pages: 103
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Krishna Sobti
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- Description: आधुनिक हिन्दी कथा-जगत में अपने संवेदनशील गद्य और अमर पात्रों के लिए जानी जानेवाली कथाकार कृष्णा सोबती की प्रारम्भिक कहानियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करनेवाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी सुखद विस्मय से हिन्दी-जगत को रू-ब-रू कराया है। ये कहानियाँ कथ्य और शिल्प, दोनों दृष्टियों से कृष्णा जी के रचनात्मक वैविध्य को रेखांकित करती हैं। इनमें जीवन के विविध रंग और चेहरे अपनी जीवन्त उपस्थिति से समकालीन समाज के सच को प्रकट करते हैं। समय का सच इन कहानियों में इतनी व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है कि आज के बदलते परिवेश में भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। अनुभव की तटस्थता और सामाजिक परिवर्तन के द्वन्द्व से उपजी ये कहानियाँ अपने समय और समाज को जिस आन्तरिकता और अन्तरंगता से रेखांकित करती हैं, वह निश्चय ही दुर्लभ है।
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