Nithalle Ki Diary
Author:
Harishankar ParsaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
हरिशंकर परसाई हिन्दी के अकेले ऐसे व्यंग्यकार रहे हैं जिन्होंने आनन्द को व्यंग्य का साध्य न बनने देने की सर्वाधिक सचेत कोशिश की। उनकी एक-एक पंक्ति एक सोद्देश्य टिप्पणी के रूप में अपना स्थान बनाती है। स्थितियों के भीतर छिपी विसंगतियों के प्रकटीकरण के लिए वे कई बार अतिरंजना का आश्रय लेते हैं, लेकिन, तब भी यथार्थ के ठोस सन्दर्भों की धमक हमें लगातार सुनाई पड़ती रहती है। लगातार हमें यह एहसास होता रहता है कि जो विद्रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, उस पर सिर्फ ‘दिल खोलकर’ हँसने की नहीं, थोड़ा गम्भीर होकर सोचने की हमसे अपेक्षा की जा रही है। यही परसाई के पाठ की विशिष्टता है।
‘निठल्ले की डायरी’ में भी उनके ऐसे ही व्यंग्य शामिल हैं। आडंबर, हिप्पोक्रेसी, दोमुँहापन और ढोंग यहाँ भी उनकी क़लम के निशाने पर हैं।
ISBN: 9788126713042
Pages: 140
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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पीयूष पांडे का व्यंग्य-लेखन एकदम नई तरह का इसलिए नहीं है कि ये ख़ुद
नए हैं, बल्कि इसलिए नया है कि इनकी चेतना एकदम आधुनिक है। एकदम छोटे बच्चे भी पर्याप्त बूढ़े हो सकते हैं चेतना के स्तर पर। और एकदम बूढ़े भी बच्चे हो सकते हैं चेतना के स्तर पर। पीयूष पांडे ने व्यंग्य के विषय तलाशे नहीं हैं, विषय उनके आसपास टहल रहे हैं। एसएमएस, फेसबुक, मजनूँ से लेकर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था तक के विषय उनके व्यंग्य लेखन में हैं। विषयों की तलाश व्यंग्यकारों को परेशान करती है। पर पीयूष पांडे उस परेशानी से जूझते नहीं दिखते। जो भी विषय है, उस पर अपनी दृष्टि से लिखो, व्यंग्य हो जाएगा, वह इस सिद्धान्त पर अमल करते हुए दिखते हैं। पर पीयूष पांडे के व्यंग्य की ख़ास बात यह है कि वह व्यंग्य लेखों का इस्तेमाल सिर्फ़ हँसाने के लिए नहीं करते। इधर, व्यंग्यकारों की बहुत बड़ी फ़ौज इस तरह के सिद्धान्त पर काम कर रही है कि किसी भी गद्य में हँसने के चार-छह मौक़े धर दो, व्यंग्य हो जाएगा। व्यंग्यकारों का एक बड़ा वर्ग इसके उलट यह भी मानता है कि व्यंग्य को हँसने-हँसाने का काम तो करना ही नहीं चाहिए।
पीयूष एक सीधे रास्ते पर चलते हैं। स्थितियों को जैसी हैं, वैसी हैं, उन्हें पेश कर देते हैं। उनमें हँसी का स्कोप है, तो हँस लीजिए। पर बेवजह हँसाने की कोशिश नहीं है। मोबाइल, फेसबुक जैसी आसपास इतनी आधुनिक चीज़ें हैं कि ख़ास तौर पर शिक्षित युवा इनसे मुक्त नहीं रह सकते। कई तरह की स्थितियाँ व्यंग्य बन रही हैं। एक तरह से देखें, तो पीयूष पांडे की यह किताब नए बनते व्यंग्य का आईना है। बदलती परिस्थितियों का आईना है, जो कि व्यंग्य को होना चाहिए। पीयूष ख़ुद मीडिया से जुड़े हुए हैं, इसलिए मीडिया की आन्तरिक परिस्थितियों को बख़ूबी समझते हैं। इस पुस्तक में मीडिया पर कुछ शानदार व्यंग्य लेख हैं। मीडिया कैसी मदारीगिरी में बिजी है, यह बात इस पुस्तक में बार-बार सामने आती है।
वास्तविक दुनिया में वर्चुअल दुनिया यानी आभासी दुनिया किस तरह से प्रवेश करती है, इस पुस्तक में बार-बार दिखाई देता है। कुल मिलाकर कहें, तो यह नए ज़माने के व्यंग्य की किताब है। जो कई तरह के नए मानकों का निर्माण करेगी। व्यंग्य के नए और पुराने छात्रों को इस किताब को पढ़ना चाहिए, ऐसी मेरी रिकमंडेशन है। इसे पढ़ना सब लोग रिजोल्यूशन बनाएँगे, ये मेरी शुभकामना है।
—आलोक पुराणिक
Bevkufi Mein Samajhadari
- Author Name:
Mulla Nasaruddin
- Book Type:

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Description:
मुल्ला नसीरुद्दीन एक दन्तकथा भी है, एक नायक भी और एक साधारण पात्र भी। लेकिन सबसे पहले एक साधारण मनुष्य जो साधारणता की तमाम ख़ूबियों-ख़ामियों के साथ बेवकूफ़ी और समझदारी के सब बँटवारों को छिन्न-भिन्न करते हुए हमें एक ऐसे साथी के रूप में मिलता है जो जीवन की हर स्थिति में हमारे साथ खड़ा हुआ है। सदियों से मुल्ला हमारे साथ हैं, वह गुदगुदाते हैं, चौंकाते हैं, शरारत करते हैं और शिक्षा भी देते हैं। ऐसा कोई नहीं जो मुल्ला की कमियों को पढ़ना-सुनना न चाहे। उल्लेखनीय यह है कि मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानियाँ सिर्फ़ चुटकुले नहीं हैं, उनका एक सामाजिक परिप्रेक्ष्य है, एक वातावरण है, और सबसे ऊपर है मानव-व्यवहार की गहरी समझ और उसका अंकन।
इस पुस्तक के उनके कुछ ऐसे ही किस्सों को संकलित किया गया है जो न सिर्फ़ हमें ठहाका लगाने को बाध्य करते हैं, बल्कि विभिन्न जीवन-स्थितियों पर एक नई व्याख्या भी प्रस्तुत करते हैं।
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