Os Ki Thapaki
Author:
Ashutosh AgnihotriPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
की थपकी' साधारण भावनाओं की सरल लेकिन अहसास के स्तर पर ठहरकर पढ़ी जानेवाली कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में सम्मिलित कविताएँ पहली निगाह में बहुत आसान अनुभवों की नक्काशी करती नज़र आती हैं, लेकिन ध्यान से देखें तो उनके पीछे जीवन के जटिल और आवेशकारी तजुर्बों की एक लम्बी शृंखला बिंधी दिखाई देती है।
कवि एक कविता में समाज के, हमारे आस-पास के परिवेश में व्याप्त दीमकों की तरफ़ ध्यान आकर्षित करते हुए कहता है कि 'अफ़सोस से देखते हैं/कुतरी हुई किताबें/उदास अलमारियाँ/...मगर करें तो करें क्या/ज़िद्दी हैं ये दीमक।' ग़ौर से नहीं देखें तो हम इसे एक सीलन-भरे कमरे का दृश्य समझकर आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि ये दीमकें उन ताक़तों का प्रतीक मात्र हैं जो हमारे आस-पास आजकल हर कहीं ख़ास तौर पर ज्ञान, शिक्षा और पुस्तकों के विरुद्ध अपनी कुंद दिमाग़ ज़िद को चढ़ाए बैठी हैं। इसीलिए कवि अन्त में इसके लिए एक उपचार भी सुझाता है कि ये दीमकें 'तब तक उगतीं/और उठती रहेंगी/जब तक खोदकर/गहराइयों में/जला नहीं देते/नई अलख...।'
एक ऐसी अलख जिसकी आँच में मिट्टी का कण-कण, हमारे परिवेश का एक-एक अंश गमकने लगे। नई लौ और नई ख़ुशबू इस तरह जाग्रत हों कि भविष्य में किसी भी दीमक को, किसी भी ऐसी ताक़त को उभरने का अवसर न मिले जो हमारी मानवीय जिज्ञासा को चुनौती देती हो।
इसी तरह इस संग्रह की लगभग सभी कविताएँ जीवन के अतिसाधारण बिम्बों और चित्रों के माध्यम से ऐसी समस्याओं से हमारा परिचय कराती हैं जिनकी तरफ़ हमारा ध्यान अपनी दैनंदिन व्यस्तताओं की ऊहापोह में नहीं जाता है। ये कविताएँ वास्तव में हमारी उन्हीं दैनिक सामान्यताओं को कविता के असाधारण अनुभव में बदलने का भाषिक उपक्रम ह
ISBN: 9789349159686
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
बहुत से लोग हैं जो अपने आपको लफ़्ज़ देने के लिए शा'इरी इख़्तियार करते हैं मगर कुछ ख़ुशक़िस्मत ऐसे भी हैं जिन्हें ख़ुद शा'इरी अपने आपको ज़ाहिर करने के लिए चुनती है। अभिषेक उन्हीं चन्द ख़ुशक़िस्मतों में शामिल हैं जिन्हें शा'इरी ने इस ज़माने में अपना तर्जुमान मुक़र्रर किया है। ख़ामोशी अभिषेक की शा'इरी की जन्मभूमि है। उसके पास से ख़ामोशी की ख़ुशबू और आँच आती है कि उसके अन्दर तज्रबों का एक आतिशख़ाना है जो एक बाग़ की तरह खिला हुआ है। ख़ामोशी उसका चाक भी है जिस पर वो लफ़्ज़ों की कच्ची मिट्टी से मा'नी की शक्लें बनाता है। अभिषेक ने ये मिट्टी अपनी ज़ात और ज़माने के जिस्म और रूह के तज्रबों को गूँधकर तैयार की है। ये मिट्टी उसकी अपनी है और उससे बनाई जानेवाली सूरतें भी।
—फ़रहत एहसास
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