Naye Yug Mein Shatru
Author:
Mangalesh DabralPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Available
एक बेगाने और असन्तुलित दौर में मंगलेश डबराल अपनी नई कविताओं के साथ प्रस्तुत हैं—अपने शत्रु को साथ लिए। बारह साल के अन्तराल से आए इस संग्रह का शीर्षक चार ही लफ़्ज़ों में सब कुछ बता देता है : उनकी कला-दृष्टि, उनका राजनीतिक पता-ठिकाना, उनके अन्तःकरण का आयतन।</p>
<p>यह इस समय हिन्दी की सर्वाधिक समकालीन और विश्वसनीय कविता है। भारतीय समाज में पिछले दो-ढाई दशक के फासिस्ट उभार, साम्प्रदायिक राजनीति और पूँजी के नृशंस आक्रमण से जर्जर हो चुके लोकतंत्र के अहवाल यहाँ मौजूद हैं और इसके बरक्स एक सौन्दर्य-चेतस कलाकार की उधेड़बुन का पारदर्शी आकलन भी। ये इक्कीसवीं सदी से आँख मिलाती हुई वे कविताएँ हैं जिन्होंने बीसवीं सदी को देखा है। ये नए में मुखरित नए को भी परखती हैं और उसमें बदस्तूर जारी पुरातन को भी जानती हैं। हिन्दी कविता में वर्तमान सदी की शुरुआत ही ‘गुजरात के मृतक का बयान’ से होती है।</p>
<p>ऊपर से शान्त, संयमित और कोमल दिखनेवाली, लगभग आधी सदी से पकती हुई मंगलेश की कविता हमेशा सख्तजान रही है—किसी भी चीज़ के लिए तैयार। इतिहास ने जो ज़ख़्म दिए हैं उन्हें दर्ज करने, मानवीय यातना को सोखने और प्रतिरोध में ही उम्मीद का कारनामा लिखने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध। यह हाहाकार की ज़बान में नहीं लिखी गई है; वाष्पिभूत और जल्दी ही बदरंग हो जानेवाली भावुकता से बचती है। इसकी मार्मिकता स्फटिक जैसी कठोरता लिए हुए है। इस मामले में मंगलेश ‘क्लासिसिस्ट’ मिज़ाज के कवि हैं—सबसे ज़्यादा तैयार, मँजी हुई और तहदार ज़बान लिखनेवाले।</p>
<p>मंगलेश असाधारण सन्तुलन के कवि हैं—उनकी कविता ने न यथार्थ-बोध को खोया है, न अपने निजी संगीत को। वे अपने समय में कविता की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियों को अच्छे से सँभाले हुए हैं और इस कार्यभार से दबे नहीं हैं। मंगलेश के लहज़े की नर्म-रवी और आहिस्तगी शुरू से उनके अकीदे की पुख़्तगी और आत्मविश्वास की निशानी रही है। हमेशा की तरह जानी-पहचानी मंगलेशियत इसमें नुमायाँ है।</p>
<p>और इससे ज़्यादा आश्वस्ति क्या हो सकती है कि इन कविताओं में वह साजे-हस्ती बे-सदा नहीं हुआ है जो ‘पहाड़ पर लालटेन’ से लेकर उनके पिछले संग्रह ‘आवाज़ भी एक जगह है’ में सुनाई देता रहा था। ‘नए युग में शत्रु’ में उसकी सदा पूरी आबो-ताब से मौजूद है।</p>
<p>—असद ज़ैदी।
ISBN: 9788183613866
Pages: 116
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आदमी को लेकर एक निस्संकोच अपनापन और करुणा भगवत रावत की कविता के केन्द्र में है, इसीलिए जब वे याद दिलाते हैं कि इस समय दुनिया को ढेर सारी करुणा चाहिए तो वे भावुक नहीं हो रहे होते हैं, बल्कि निर्वैयक्तिकता, तटस्थता आदि के मूलत: मानव-विरोधी मूल्यों के ख़िलाफ़ एक अमोघ नकार दर्ज करते हैं।
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- Description: 1970 में रेकजाविक, आइसलैंड में जन्मी गेरदुर क्रिस्ट्नी गुद्योंसदोत्तिर एक बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न लेखिका हैं, जिन्होंने रचनात्मक लेखन की विभिन्न विधाओं में अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की है। कहानियाँ, नाटक, यात्रा-संस्मरण लिखे हैं। स्कूली बच्चों के लिए पाठ्य-पुस्तकें लिखी हैं। इन सबके साथ-साथ पत्रकार के रूप में भी विशेष ख्याति अर्जित की है। कई वर्षों तक आइसलैंड की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मैनलिफ़’ की मुख्य सम्पादक रहीं और फ़ैशन लाइफ़-स्टाइल के साथ-साथ समसामयिक सामाजिक विषयों पर गम्भीर विश्लेषणात्मक लेख लिखे। गैरदुर को प्रकृति से बेहद प्यार है जो उनकी ‘प्रकृति’ कविता में स्पष्ट झलकता है। वे ईश्वर की उपस्थिति को बड़ी शिद्दत के साथ प्रकृति में महसूस करती हैं। ईश्वर एक सर्जनात्मक ऊर्जा के साथ उनकी कविताओं में मौजूद है। कवि को ‘लैंगनेस’ कविता में ‘बंजर में फूटती आवाज़ों की फुसफुसाहट’ में ईश्वर का प्रतिरूप दिखाई देता है। इसी तरह एक कविता में प्रेम और ऊन से बुनी शिशु यीशु की शॉल उन स्त्रियोचित गुणों को रेखांकित करती है जिनसे वह पूरे मानवीय समाज को सम्पृक्त करना चाहती हैं। उनकी कविता ‘चियर्स’ में सृष्टि की उत्पत्ति दो रूपों में व्यंजित हुई है—एक का सन्दर्भ है ईसाई धर्मग्रन्थ जैनेसिस में आई दन्तकथा तो दूसरे का सन्दर्भ है योहान सिगुरजनसन की आइसलैंड की अत्यन्त लोकप्रिय कविता ‘द कप’।
Pratinidhi Kavitayen : Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
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Description:
दुर्धर्ष भाग्य और क्षुद्र समय से आजीवन घिरे रहे महा-कवि और महा-प्राण मनुष्य निराला ने हिन्दी कविता को अपने ही हाथों वह दे दिया जिसे अर्जित करने में युगों की प्रतिभा और शक्ति व्यय हो जाती है। छायावाद के दौर में ही उन्होंने एक कदम बढ़कर मुक्त छन्द में यथार्थवादी कविता को सम्भव किया तो स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान और आजादी के बाद भारतीय राजनीति तथा समाज की स्थितियों को लक्षित कर कविताएँ और उपन्यासों की रचना भी की। ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी कविताओं से उन्होंने कविता की सामर्थ्य के नए मानक गढ़े, तो गीतों में परम्परा, प्रयोग और लोकचेतना के असंख्य अर्थसघन बिम्ब अगली पीढ़ियों के लिए छोड़े। लेकिन यह नवीनता और प्रयोगधर्मिता किसी मामूली चमत्कार-प्रियता का परिणाम नहीं थी, यह निश्चय ही दुख के ताप से नित नूतन होते उनके मन का स्वाभाविक प्रवाह रहा होगा जो क्षणों की अवधि में वर्षों-दशकों को लाँघता चलता है।
उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में प्रयास किया गया है कि पाठक निराला के विराट कृतित्व के कुछ सबसे दीप्तिमान शिखरों का साक्षात्कार कर सके।
Pata Hi Nahin Chalta
- Author Name:
Priyadarshi Thakur 'Khayal'
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Description:
इस दौर में जब कविता पर अमूर्तन के आरोप लग रहे हों प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’ कविता की बाहरी सरहद पर हमला कर अमूर्त को मूर्तित करने के दुष्कर से काम में लगे हैं। पहले तो उन्होंने आलोचकों के उस बने-बनाए तर्क को ध्वस्त किया है कि अब कविता को छन्द की ज़रूरत नहीं और दूसरे, विजातीय समझे जानेवाले रूपाकारों को स्वीकृति देकर ग़ज़ल और आज़ाद नज़्मों को हिन्दी की मुख्यधारा के समानान्तर ला खड़ा किया है। उनकी ग़ज़लों और नज़्मों का प्रस्तुत संचयन कम-से-कम यह दिलासा तो देता है कि भारी तादाद में लिखी जा रहीं ग़ज़लें हिन्दी की ही हैं। खाँटी हिन्दी की। इसलिए भी कि उर्दू और हिन्दी में अगर कोई फ़र्क़ है तो वह इतना ही है कि उन्हें दो लिपियों में लिखा जा सकता है। और उनकी ख़ूबी यह है कि वे जब चाहे अतीत के ख़ज़ाने से शब्द ले सकनेवाली आधुनिक भाषाएँ हैं जिनके पास मिली-जुली विरासत के रूप में दूसरी ज़बानों की सम्पदा भी है।
कविता का सामान्य गुण है कि आप उन्हें किसी भी प्रयोजन के लिए दुहरा सकते हैं। और जहाँ तक असामान्य गुणों की बात है तो कविता जहाँ एक ओर मर्मभेदी है, वहीं दूसरी तरफ़ वह उत्सवधर्मी प्रमोदन और प्रबोधन से भी जुड़ी है। ग़रज़ यह कि कविता भितरघात भी करती है और वह उदार सीमान्तों का निर्माण भी करती है। प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’ अपनी ग़ज़लों और नज़्मों से एक अभूतपूर्व प्रयोग यह भी कर रहे हैं कि वे सादा से सादा शब्दावली द्वारा गहन, अगोचर अनुभवों को वाणी देने के लिए आसान भाषा का अन्वेषण करने में जुटे हैं। और यही एक बड़ा कारण है कि वे मुक्त छन्द से ग़ज़ल तक में प्रयोगरत हैं।
‘पता ही नहीं चलता’ का मूल सरोकार सांस्कृतिक विराटता को शब्दांकित करना तो है ही, गहरे अर्थ में उदारता, स्वतंत्रता और स्वाधीनचेता असहमति की पक्षधरता को रेखांकित करना भी है।
Ek Jeevan Alag Se
- Author Name:
Rupam Mishra
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- Description: रूपम मिश्र की कविता का वैशिष्ट्य यह है कि वह किसी और की तरह नहीं लिखतीं। हम सभी जानते हैं कि साधारण-सी लगने वाली इस बात की क्या असाधारणता है। कहन की यह मौलिकता उन्हें अपनी अन्तर्वस्तु से मिलती हैं जिसका उत्स वह जनक्षेत्र है जिसके वृत्तान्त उनकी कविता का रूप-रंग तय करते हैं। रूपम अवध के पुरुषवाची लैंडस्केप में औरतों के दुखों और दुविधाओं और द्वन्द्व को मरोड़, उत्ताप और विकलता से कहती तो हैं लेकिन इस कहन में विडम्बना अनुपस्थित नहीं होती। इस तरह वह स्त्री के सन्ताप और उसके संकट का भाववाद नहीं निर्मित करतीं और वजह भी यही होगी कि वह न तो राज्य को बख्शती हैं और न प्रतिगामी मूल्यों को बनाए रखने वाले सामाजिक ढाँचे को, जो सामन्ती सोच-समझ का प्रतिफलन, विस्तार और विद्रूप है। वह उन बहुत कम स्त्री कवियों में हैं जिन्होंने नारी स्वातंत्र्य के बुनियादी प्रत्ययों पर कायम रहते हुए उसकी मुक्ति को भारतीय नागरिकता की बृहत्तर मुक्ति के कार्यभार से अलगाकर नहीं देखा। हिन्दी कविता की समकालीनता में वह लगभग अकेली हैं जो अपनी कविता में अपने इलाके के मनुष्य और मनुष्यता ही नहीं उस भूभाग के सांस्कृतिक पराभव के वर्णन के लिए इलाकाई जबान का बहुत नैसर्गिक और निहितार्थवान उपयोग करती हैं। उनकी कविता को पढ़ना अवध की स्त्रियों की कितनी ही कथाओं और आत्मकथाओं में गूँजते कैद और स्वातंत्र्य, कायरता और प्रतिकार, गलित और नैतिक, परम्परित और अग्रगामी, जड़ीभूत और गतिशील की द्वन्द्वात्मक स्थितियों में पैदा होते सवालों से आप्लावित, विचलित और उत्प्रेरित होना है जहाँ पुरुष वर्चस्व और स्त्री मुखरता का परिपार्श्व अलक्षित नहीं रह पाता। विषम अवस्थितियों में लिखी जाती रूपम मिश्र की कविता और बेहद प्रतिकूल हालात में निर्मित होता और नित निखरता उनका काव्य व्यक्तित्व किसी दन्तकथा से कम नहीं। —देवी प्रसाद मिश्र
Ghar Ki Aurten Aur Chand
- Author Name:
Renu Hussain
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- Description: रेणु हुसैन की कविताओं की जो दुनिया है, उसकी केन्द्रीय धुरी है प्रेम। उनकी कविताओं के विषय अपनी पूरी विविधताओं के बावजूद घूम-फिर कर इसी धुरी पर लौट आते हैं लेकिन प्रेम की यह धुरी किसी भी मायने में एकांगी या एकरूपीय नहीं है, बल्कि अपनी पूरी सघनता और विस्तार के साथ बहुआयामी और बहुरूपीय है। आज के समय में जब प्रेम की चारों तरफ़ से घेरा जा रहा है। ‘लव जेहाद’ जैसे फ्रेज़ेज का सायास निर्माण किया जा रहा है, यहाँ प्रेम से पोषित रेणु हुसैन की ये कविताएँ व्यवस्था तथा ऐसे शब्दों के समक्ष मुस्कुराती हुई दिखाई देती हैं। रेणु हुसैन की कविताओं की एक दूसरी धुरी है घर और स्त्री। बात चाहे जो हो रेणु जी की कविताओं में घूमघामकर घर और स्त्री आ ही जाते हैं। लेकिन उनकी कविताओं में स्त्री जितना घर के भीतर है, उतनी वह घर के बाहर नहीं है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि घर के भीतर की स्त्री घर के बाहर नहीं देखती। देखती है लेकिन कम देखती है, मगर जब देखती है तो उसका फ़लक बहुत विस्तृत होता है। इस संग्रह में बहुत-सी कविताएँ इस बात का सशक्त उदाहरण हैं। घर और स्त्री से जुड़ी रेणु जी की कविताएँ इस बात का पता देती हैं कि घर के भीतर स्त्री जितनी है उतना ही स्त्री के भीतर घर। लेकिन रेणु जी की कविताओं में घर और स्त्री का यह सम्बन्ध उन अर्थों में बिल्कुल नहीं है जिन अर्थों में वह जाना जाता है। इन कविताओं में घर बिल्कुल अलग तरीक़े से आता है। अगर घर कहीं किसी रूप में स्त्री को बाँध रहा है तो उतना ही वह उसे आज़ाद भी कर रहा है। स्त्री जितना घर के बाहर जाती है, उतना ही लौटकर घर में वापिस आती है लेकिन अपनी पूरी ठसक, आज़ादी और सम्मान के साथ। ऐसा लगता है कि जैसे स्त्री और घर दोनों एक दूसरे के भीतर लगातार यात्रा कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा में स्त्री लगातार घर से आगे निकलती दिखाई देती है। रेणु हुसैन की कविताओं को देखकर लगता है कि जैसे पेड़ में पत्ते फूटते हैं और फूल आते हैं, ठीक उसी तरह ये कविताएँ काग़ज़ पर चली आई हैं। इन कविताओं में छलक पड़ता और सजीव हो उठता-सा रोमानीपन लगातार हमें अपनी तरफ़ खींचता है। इन कविताओं की भाषा में एक अलग क़िस्म का नयापन और अनोखापन है जो मुसलसल एक वाक्य से दूसरे में गूँजता और दृश्यमान होता हुआ दिखाई देता है। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए लगातार ऐसा लगता रहता है मानो शब्द और वाक्य कवयित्री ने चुने नहीं हैं, बल्कि वे चुन लिए गए हैं भावों के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति के लिए। रेणु हुसैन की कविताएँ और उनकी भाषा हमें इस बात का पता देती हैं कि ये रेणु हुसैन की कविताएँ हैं और रेणु हुसैन की भाषा। —रजनी अनुरागी
SATYAKATHA-ASATYAKATHA
- Author Name:
Kamleshwar Sahu
- Book Type:

- Description: Collection of poem
Jharkhand Ki Samkaleen Kavita
- Author Name:
Ed. Shiromani Mahto +2
- Book Type:

- Description: झारखंड के 24 कवियों का यह संकलन कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय है। संकलन में शामिल लगभग सभी कवि बहुत पहले से ही अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करने के लिए जाने जाते रहे हैं। स्मृति-निर्मित प्रत्ययों के माध्यम से अनुभव को विस्तार देने के कारण अनिता वर्मा और ज्ञानात्मक संवेदन की गहराई के कारण अनिल अनलहातु की कविताएँ ध्यान खींचती रही हैं। इसी तरह, उसमें शामिल अन्य सभी चर्चित कवियों—अशोक सिंह, बलभद्र, सुशील कुमार, नीलोत्पल रमेश, अनिल किशोर सहाय, नरेश अग्रवाल, विनय सौरभ, अनिता रश्मि, सुषमा सिन्हा, नीरज नीर आदि की कविताओं में भी औरों से कुछ अलग कहने और दिखने की कोशिश दिखाई देती है। रश्मि शर्मा और अखिलेश्वर पांडेय भी अपने समय के यथार्थ को देखने के नए नज़रिए और संवेदना की बनावट के कारण आकर्षित करते हैं। हालाँकि, इनमें से कुछ कवि भले ही झारखंड के रहवासी हो गए हों, कविता में प्रवासी ही बने हुए हैं। उनकी काव्यभाषा में भी भोजपुरी, मगही, अंगिका आदि की सुगंध है; नगपुरिया, खोरठा, पंचपरगनिया और कुर्माली से उनका रिश्ता बन नहीं पाया है। इसलिए भी यह दुहराना पड़ रहा है कि इस संकलन की खास पहचान आदिवासी कवियों से ही बनती है। वैसे झारखंड की अपनी औद्योगिक संस्कृति भी है, लेकिन इस्पात की धमन-भट्ठियों और कोयला खदानों मेें कार्य करनेवाले मज़दूरों के कठिन संघर्ष पर कविताएँ आश्चर्यजनक रूप से इसमें नहीं हैं। इस छोटी-सी कमी के बाद भी, इसकी विविधता और व्यापकता सराहनीय है। इससे झाारखंड की रचनाशीलता को गति मिलेगी। संपादक त्रयी में एक शिरोमणि महतो तो कवि हैं, लेकिन उनके दो कविता-प्रेमी शिक्षक सहयोगी सुभाष कुमार यादव और राजेश कुमार विशेष बधाई के पात्र हैं। —मदन कश्यप
Asweekar Se Bani Kaya
- Author Name:
Rajesh Kamal
- Book Type:

- Description: Collection of Hindi Poems
Safed Par Kala
- Author Name:
Prashan Kumar Jain
- Book Type:

- Description: Book
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