Meri Aawaj Suno
Author:
Kaifi AzmiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
गीत लिखना और ख़ास तौर पर फ़िल्मों के लिए गीत लिखना कुछ ऐसा अमल है जिसे उर्दू अदीब एक लम्बे अरसे तक अपने स्तर से नीचे की चीज़ समझता रहा है। एक ज़माना था भी ऐसा जब फ़िल्मों में संवाद-लेखक (‘मुंशी’) और गीतकार सबसे घटिया दर्जे के जीव समझे जाते थे। इसलिए अगर मरहूम ‘जोश’ मलीहाबादी फ़िल्म-लाइन को हमेशा के लिए ख़ैरबाद कहकर ‘सपनों’ की उस दुनिया से भाग आए तो इसका कारण आसानी से समझा जा सकता है। उतनी ही आसानी से यह बात भी समझी जा सकती है कि क्यों लोगों ने राजा मेहदी अली ख़ान जैसे शायरों पर ‘नग़्मानिगार’ का लेबिल चिपकाकर उनकी शायराना शख़्सियत को एक सिरे से भुला दिया।
एक ज़माना वह भी आया जब लखनऊ और दिल्ली की सड़कों पर फटे कपड़ों और फटी चप्पलों में मलबूस, हफ़्ते में दो दिन भूखे रहनेवाले तरक़्क़ीपसंद शायरों की एक जमात रोज़ी-रोटी की तलाश में आगे-पीछे बंबई जा पहुँची।
इन्हीं तरक़्क़ीपसंद नौजवान शायरों का कमाल यह रहा कि जहाँ तक गीत-कहानी-संवाद का सवाल है, उन्होंने फ़िल्म-जगत का नक़्शा ही बदलकर रख दिया। नग़्मगी के अलावा अछूते बोल और ऊँचे ख़यालात, भविष्यमुखी दृष्टि और इनसानी ज़िंदगी के उरूज को लेकर देखे जानेवाले सपने इन गीतकारों की विशेषता थे। सच तो यह है कि, इन गीतकारों के पहले या उनके बाद, गीत की विधा कभी इतनी ऊँचाई तक नहीं पहुँची जहाँ तक उसे इन शायरों के दस्ते-मुबारक ने पहुँचा दिया। इन शायरों और नग़्मानिगारों के योगदान को समझना हो तो आज के पतन के माहौल से मुक़ाबला करके समझिए जब पैसा बटोरने के लिए लालायित खोटे सिक्के खरे सिक्कों को बाज़ार से विस्थापित करने लगे हैं।
ऐसे ही अँधेरे, काले माहौल में ‘कैफ़ी’ जैसे शायरों के गीत जुगनुओं की तरह चमकते दिखाई देते हैं और, आप जानें, अल्लामा इक़बाल ने तो जुगनू को परवाने से लाख दर्जा बेहतर ठहराया है।
‘कैफ़ी’ के फ़िल्मी गीतों का मूल उर्दू पाठ ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के उनवान से 1974 में प्रकाशित हुआ था और तब से इसके अनेकों संस्करण सामने आ चुके हैं।
बेशक दूसरे फ़िल्मी गीतकारों की तरह ‘कैफ़ी’ की भी सीमाएँ रही हैं। क्या कहना है, इसका निश्चय गीतकार नहीं करता, फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक करते हैं।
लेकिन कैसे कहना है—इस बारे में शायर एक हद तक अपनी बात चला ही सकता है। फ़िल्मी गीत अधिकतर रोमानी होते हैं जो रोमांस के सुखों या दु:खों का वर्णन होते हैं। लेकिन इस महदूद से दायरे में भी ‘कैफ़ी’ ने अपनी शायराना फ़ितरत का, अदीब की दूर-रस निगाह का दामन नहीं छोड़ा। काग़ज़ के फूल, हक़ीक़त, यहूदी की बेटी, गरम हवा और अर्थ जैसी फ़िल्मों के लिए ‘कैफ़ी’ ने जो गीत लिखे उनकी हैसियत किसी अदबपारे से कम नहीं, और यही बात फ़िल्म पाकीज़ा के उस अकेले गीत ‘चलते-चलते’ के बारे में कही जा सकती है जो ‘कैफ़ी’ के जादूबयान क़लम की सौग़ात है। लेकिन ये तो गिनी-चुनी मिसालें हैं; पूरा ख़ज़ाना इस समय आपके अपने हाथों में है।
क्या है आख़िर ‘कैफ़ी’ के गीतों की वह विशेषता जो इनको दूसरे हज़ारों फ़िल्मी गीतों से अलग करती है ? बात बहुत सादा-सी है। ‘कैफ़ी’ ने किसी की छत पर कबूतरों को गुटुर-गूँ नहीं कराया, किसी की शालू का टाँका समोसे के आलू से नहीं भिड़ाया, किसी से ‘आ जा आ जा मोरे बालमा’ की पुकार भी नहीं लगवाई जो फ़िल्मी गीतकारों के लिए आसान-सा नुस्ख़ा है। ‘कैफ़ी’ उन गीतकारों में से नहीं जो फ़ख़्र से कहते हैं कि उन्होंने एक दिन में 23 गीत लिखे। इसके बजाय ‘कैफ़ी’ उन गीतकारों में एक हैं जो अपनी नज़्मों और ग़ज़लों की तरह अपने गीतों को भी महीनों तक माँजते रहते हैं और इस तरह अपनी रूह की गहराइयों से जो चीज़ निकालकर पेश करते हैं, वह तक़रीबन 24 कैरेट की होती है। इसीलिए ‘कैफ़ी’ के गीत उन हज़ारों गीतों में नहीं हैं कि इधर सिनेमा हॉल से फ़िल्म का बैनर उतरा और उधर उसके गीत भी लोगों की ज़बान से उतर गए। वो उतरें भी कैसे, उन्हें तो फ़िल्म देखनेवालों और गीत सुननेवालों ने ‘कैफ़ी’ की नहीं, अपनी आवाज़ समझकर अपनी रूह की गहराइयों में बसा लिया है !
‘कैफ़ी’ के इन्हीं गीतों का तबर्रुक (प्रसाद) आज ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के उनवान से हिन्दी पाठक के हाथों में है। सलाम इस आवाज़ पर और आवाज़ देनेवालों पर, सलाम ‘कैफ़ी’ के हमनवाओं पर, और सलाम उस रवायत पर जिसने ‘कैफ़ी’ को ‘कैफ़ी’ बनाया !!
ISBN: 9788126706464
Pages: 267
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कवि, लेखक, कलाकार, फ़िल्मकार भी उसके लगभग रहस्यमय आकर्षण में बिंधे उसकी तरफ़ खिंचे चले जाते हैं। संसार में बहुत ही कम ऐसे शहर होंगे जो कविताओं, फ़िल्मों और कलाओं में एक मिथक की तरह बार-बार आते रहते हैं। वे सिर्फ़ शहर नहीं होते, मानव की वृहत् इतिहास यात्रा के पड़ाव होते हैं। बनारस भी उन्हीं में से एक है जिसकी साक्षी है यह पुस्तक।
इसमें उन कविताओं को इकट्ठा किया गया है, जो अलग-अलग भाषाओं के कवियों ने अपने-अपने समय के बनारस को देख और जी कर लिखीं। लगभग छह सौ साल का विराट समय-पट्ट और उस पर अंकित ये कविताएँ!
इन कविताओं से गुज़रना बनारस के इतिहास और संस्कृति के साथ-साथ उसके अव्याख्येय और कालातीत सौन्दर्य से साक्षात्कार करना भी है। कबीर, रैदास, भारतेन्दु, प्रसाद, शमशेर, त्रिलोचन, श्रीकान्त वर्मा, केदारनाथ सिंह, राजेश जोशी, ज्ञानेन्द्रपति, अष्टभुजा शुक्ल और व्योमेश शुक्ल सहित उनतालीस हिन्दी कवियों और वली दकनी, ग़ालिब, अकबर इलाहाबादी और नज़ीर बनारसी सहित पन्द्रह उर्दू शायरों के साथ बांग्ला के राजा जयनारायण घोषाल, शंखघोष और विश्वप्रसिद्ध स्पेनिश कवि होर्हे लुईस बोर्हेस की कविताएँ इसमें शामिल हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि बनारस-प्रेमी पाठकों के लिए यह एक दस्तावेज़ी और संग्रहणीय पुस्तक है।
Pakistani Urdu Shayari Vol. 3
- Author Name:
Narendra Nath
- Book Type:

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Description:
भारत के मुक़ाबले पाकिस्तान में रचनाकारों के सामने कहीं ज़्यादा चुनौतियाँ रही हैं। ‘पाकिस्तानी उर्दू शायरी’ शृंखला के सम्पादक इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि हिन्दुस्तान में जिस विद्रोह को हेडलाइन बनाया जा सकता है, पाकिस्तान में उसी विद्रोह को वर्ग पहेली के गुप्तार्थों की तरह रचना में छिपाया जाता है। इसलिए वहाँ के लेखकों-शायरों ने अपने तर्ज़े-बयाँ को ऐसे तराशा है कि जो कहना था, वह तो कहा ही गया, उससे कविता का मेयार भी उठा।
‘पाकिस्तानी उर्दू शायरी’ शीर्षक यह शृंखला और इसमें शामिल रचनाएँ बताती हैं कि उधर के शायरों ने अपनी राजनीतिक चुनौतियों का सामना करते हुए कैसे अपनी कहन को और ज़्यादा असरदार, ज़्यादा मारक और अचूक बनाया है।
इनमें से अनेक नाम हिन्दी पाठक के लिए नये होंगे, क्योंकि ऐसे लोग कुछ ही हैं जिनकी रचनाएँ हिन्दी लिप्यंतरण में इधर आईं और मक़बूल हुईं। इस शृंखला का उद्देश्य ही दरअसल पाकिस्तान के उन शायरों को हिन्दी समाज तक पहुँचाना है जिन्होंने बहुत अच्छा लिखा है, लेकिन जो अभी तक किसी हिन्दी संकलन में नहीं आ पाए।
यह शृंखला और इसमें शामिल रचनाएँ यह भी बताती हैं कि बँटवारे के बावजूद भारत और पाकिस्तान का आधारभूत ‘ईथॉस’ एक ही है; कितने शे’र, कितनी नज़्में बिना बाधा के अपने बिम्बों और रूपकों के साथ हमारी अपनी कविताओं के साथ आ बैठती हैं। इस खंड में बारह शायरों की ग़ज़लें, नज़्में और फुटकर शे’र शामिल हैं।
Hansti Hui Laraki
- Author Name:
Nirmala Thakur
- Book Type:

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Description:
निर्मला ठाकुर की कविताएँ यह कहना चाहती हैं कि अनुभव रचना का एक ज़रूरी तत्त्व है। जीवनानुभव की रोशनी में बाहरी दुनिया को देखते हुए उन्होंने कविताओं को आकार दिया है। 'हँसती हुई लड़की' का केन्द्रीय सरोकार स्त्री है। स्त्री की बहुतेरी छवियाँ हैं। यहाँ जीवन का मार्मिक विस्तार है। ‘रूप—कई रूप’ कविता में ’नन्ही/मुन्नी दँतुली में हँसी—दूध की' से लेकर सन्ध्या की देहरी तक आ पहुँची स्त्री-जिजीविषा का वर्णन है। निर्मला ठाकुर ने बहुत संजीदगी के साथ आधी आबादी के संघर्षों व स्वप्नों को चित्रित किया है। ‘औरत की दुनिया’ इस सन्दर्भ में ख़ासतौर पर पढ़ी जानी चाहिए।
इन कविताओं का सशक्त पक्ष है ‘अबूझ की समझ’। यही कारण है कि इनमें सुसंवेद्य पारदर्शिता है। ‘बर्तन माँजती हुई स्त्री की फलश्रुति है—इधर देखो/मुखातिब हो ज़रा हमसे/मुख पर कौन सी छाया घनेरी/लिए बैठी हो/उठो न/चेहरा इधर कर/ऊपर उठाओ/समय का दर्पण तुम्हारे सामने है।’ कवयित्री ने स्त्री-जीवन के कोलाहल और अकेलेपन की शिनाख़्त की है।
रिश्ते, प्रकृति, रूपबोध व जनजीवन आदि कविताओं में शामिल हैं। 'स्वर्ग सुख' कविता पढ़कर निराला की वह ‘तोड़ती पत्थर’ याद आ सकती है। ‘जो करना’ आत्मकथात्मक है और बेहद मार्मिक।
भाषा-शिल्प की सहजता में विन्यस्त ये कविताएँ एक संवेदनशील मन का आईना हैं।
Digant
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

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Description:
‘दिगंत’ में कवि त्रिलोचन के कुछ सॉनेट संकलित हैं। हिन्दी में सॉनेट तो प्रसाद, पन्त, निराला आदि अन्य कवियों ने भी लिखे हैं, लेकिन त्रिलोचन ने सॉनेट के रूप में विविध प्रकार के नए प्रयोग कर सॉनेट को हिन्दी कविता में मानो अपना लिया है। जीवन के अनेक प्रसंगों की मार्मिक और व्यंग्यपूर्ण अभिव्यंजना इन कविताओं में हुई है।
त्रिलोचन के सॉनेटों की भावभूमि छायावाद नहीं है, और न प्रयोगवादी ही, यद्यपि भाषा, लय और विन्यास सर्वथा नवीन और चमत्कारपूर्ण हैं। जीवन के वैषम्यों की गहरी चेतना होने के कारण ही त्रिलोचन का दृष्टिकोण आशावादी है और उन्होंने अपनी अनुभूतियों को नई भाषा में ढालकर तीखी अभिव्यक्ति दी है जो सीधे हृदय पर चोट करती है।
—शिवदान सिंह चौहान
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