Karze Tahjeeb Ek Duniya Hai
Author:
Vinay KumarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
हमारे बीच इधर जिन कवियों के रचना-कर्म को गहरी उत्सुकता और उम्मीद के साथ देखा गया है, उनमें डॉ. विनय कुमार भी हैं। उन्होंने बाक़ी सबसे भिन्न रास्ता चुना है। हिन्दी-उर्दू के दोआब को अपनी भूमि मानकर उन्होंने कुछ अनूठी कविताएँ रची हैं। इनमें उनका अपना अनुभव सार रूप में प्रगट होता है। दिल्ली के अनुभव से लेकर गाँव-जवार और देश-दुनिया के प्रसंग यहाँ समाहित हैं। साथ-साथ समसामयिक विषयों एवं जीवन-तथ्यों, राजनीतिक-सामाजिक सन्दर्भों पर उनकी बेलाग, तिलमिला देनेवाली टिप्पणियाँ भी दर्ज होती चलती हैं। विवरणों-ब्योरों का ढेर लगाने के बजाय डॉ. विनय कुछ चुनिन्दा बिम्ब निर्मित करने की कोशिश करते हैं जो वास्तव में अनुभवों का सारांश होते हैं। डॉ. विनय भाषा को अपने ढंग से बरतते हैं—उर्दू-बहुल शब्दों-मुहावरों से जड़ी उनकी भाषा एक ही साथ अनलंकृत, सादी भी है और मीनाकारी से जगमग भी।</p>
<p>कवि विनय कुमार पेशे से मनोरोग-चिकित्सक हैं। हमारी भाषा में ऐसे कवि विरल हैं जो मनोरोग-चिकित्सा में भी यशस्वी हों। इस क्षेत्र में उनके अनुभव अभी कविता में विस्तार से आने को शेष हैं, लेकिन जहाँ-तहाँ उन अनुभवों की पदचाप, उनकी नेपथ्य-झंकार अवश्य सुनी जा सकती है। जटिल मनोगुत्थियों से उलझनेवाले डॉ. विनय कुमार का मुख्य ध्येय इन कविताओं में अपनी बात का सम्प्रेषण है जिसमें वह हमेशा ही अप्रत्याशित रूप से सफल होते हैं। उनकी कविता अपना सम्पूर्ण अर्थ-कोष एक ही पाठ में खोल देती है। ऐसी सम्प्रेषणीयता कविता को साधारण पाठकों के लिए सुगम तो बनाती ही है, साथ ही कविता को वैचारिक हथियार की क्षमता भी प्रदान करती है। डॉ. विनय कुमार की कविता की गुफ़्तगू अवाम से है।</p>
<p>—अरुण कमल
ISBN: 9789348157263
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Gangesh Gunjan
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- Description: वरिष्ठ कवि गंगेश गुंजनक 'अन्हार मे डमरू' घुप्प अन्हरियाक विरुद्ध इजोत तकबाक विलक्षण काव्य-प्रयासक नाम थिक। सम्पूर्ण सम्भावनाक संग कविक दायित्व-बोध आ काव्य-विवेकक मणिकांचन सहकार संग्रहक वैशिष्ट्य। 'धानक शीश जकाँ फुटैत' जाग्रत कविताक 'बगूचा' अछि—'अन्हार मे डमरू'। चमत्कृत करैत कविताक रेंज आ कविक निजी काव्य-भाषाक सौंदर्य कविता केँ नव सृजनशीलता सँ भरि दैछ। मिथिलाक संस्कृति सँ अथाह अनुराग आ रूढ़ अपसंस्कृतिक प्रति घोर चिंताक अंतर्द्वंद्व सँ बनैत कविता विमर्शक लेल पाठक केँ सहजहि हकारैत अछि। 'प्रथम चुम्बनक कृतज्ञता' आ 'दोसर चुम्बनक कृतघ्नता' सँ ल' क' 'कुसियारक पर्याय बनैत स्त्रीक जीवन-कथा', 'धुआँइन ढेकार जकाँ सुन्न दालन पर' 'पुरना मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपि जकाँ' पड़ल लोकतंत्रक ठठरी, दिल्ली नगरक त्रासद तामस, जबियाअल मनुक्खक सामने अकादारुन बजार वा 'यात्रीजीक एक कंठ मे सय-पचास लाखक प्रतिध्वनि'; ई सभ टा स्वर समवेत रूपेँ 'अन्हार मे डमरू:क परिसर मे भेटि जैत। बहुस्वरता, विषय-बहुलता आ कथन-भंगीक विविधता संग्रहक नवीनता थिक। प्रतीक, बिंब सँ सुसज्जित एक टा पारदर्शी महीन काव्य-आवरण कविता केँ कुहेसगर नहि बना जीवन-जगतक अलक्षित समय केँ दर्शबैत अछि। गुंजनजीक कविताक संवादधर्मिता हुनक कविता केँ सहज बोधगम्य तँ बनबैत अछि, मुदा ई सहजता सरलता नहि अपितु विषय-वस्तुक समग्रता आ जटिलता केँ सरलता सँ बुझबाक काव्य-युक्ति अछि। —कमलानंद झा
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