Itane Pas Apane
Author:
Shamsher Bahadur SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
अति सूक्ष्म ऐन्द्रिक अनुभूतियों की कविताओं का मजमूआ है ‘इतने पास अपने’। यह संग्रह इस बात का परिचायक है कि शमशेर बहादुर सिंह की कविताएँ रूप और सौन्दर्य की अनुभूतियों में खोती नहीं, बल्कि श्रम से जुड़कर जीवन का यथार्थ बताते हुए कविता के शिखर पर पहुँचती <br />हैं।</p>
<p>दूसरा सप्तक से चर्चित हुए कवि शमशेर बहादुर सिंह को कभी अज्ञेय ने ‘कवियों का कवि’ कहा था और हिन्दी कविता जगत में उनकी पहचान शमशेरियत से हुई थी। इस शमशेरियत की बानगी देखिए—‘बात बोलेगी, हम नहीं, भेद खोलेगी बात ही।’ यह पंक्ति समकालीन कविता का मुहावरा बन चुकी है। इसमें सन्देह नहीं कि शमशेर हमारे समय के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी लम्बी काव्य-यात्रा में हिन्दी कविता को समृद्ध किया है। उनकी कविताएँ कवि की प्रतिबद्धता और जिजीविषा का प्रमाण प्रस्तुत करती-सी प्रतीत होती हैं।</p>
<p>प्रकृति-प्रेम और मानवीय रूप-सौन्दर्य शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं के केन्द्र बिन्दु हैं।
ISBN: 9788126720354
Pages: 75
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Jagannath Ka Ghoda
- Author Name:
Ravindra Bharti
- Book Type:

-
Description:
विशाल, विराट और महान दिखनेवाली चीज़ें जीवन का स्रोत नहीं होतीं, उन्हें विशेष अवसरों पर, कुछ आयोजित-प्रायोजित मन:स्थितियों में देखने और वापस आकर भूलने के लिए देखा जाता है। वे हमारे उन दिनों और रातों की साथी नहीं बनतीं जिनसे हम बनते हैं, हमारा जीवन बनता है, हमारा दैनन्दिन, हमारे अतीत और वर्तमान बनते हैं।
रवीन्द्र भारती की ये कविताएँ ऐसी ही छोटी चीज़ों की अभ्यर्थना करती हैं। 'गृहस्थ की गृहस्थी' एक कविता है जिसमें घर में आई एक नई कटोरी का स्वागत किया जा रहा है 'यह हमारी पात्र है/इसके पात्र हैं हम/ पात्र-परिचय होगा, धीरे-धीरे बढ़ेगा हेल-मेल।'
'आपा-धापी' एक कविता है जिसमें लोकन ट्रेनों और बसों की लगातार गतिमान भीड़ में एक नामालूम से रिश्ते की पहचान की गई है। रोज़-रोज़ दिखनेवाले चेहरों के बीच बननेवाला एक अबोला रिश्ता—'निर्दोष आँखों की मौन कथा/चली जाती है किसी की, किसी के साथ अकारण/अकारण ही होती है चिन्ता/जब कोई दिखता नहीं दो-चार दिन।' यह 'अकारण' जगत-गति के बड़े कहे जानेवाले सुपरिभाषित कारणों का अचीन्हा-सा स्थानापन्न है, और जीवन की डोर को थामे रखने में इसकी भी बहुत बड़ी भूमिका है।
इन कविताओं में ऐसी अनेक चीज़ें, दृश्य, पंक्तियाँ, और चित्र हैं जो हमें हमारे अनजाने ही हमारी साधारणता में आश्वस्ति भर देते हैं, जो कहते हैं कि बड़ी-बड़ी ताक़तों की दूर से दिखाई देनेवाली आकर्षक और महान आकृतियों से पहले हमारे पास भी ऐसा बहुत कुछ है जो उनके सब कुछ का विकल्प हो सकता है। मसलन 'कुलिया-चुनिया' की नन्ही बच्ची की कल्पित दुनिया जिसमें कवि अनायास सच-झूठ के स्याह-सफ़ेद में विभाजित अपनी वास्तविक दुनिया से मुक्त होकर सहर्ष चला जाता है।
देशज शब्दों, देशज सौन्दर्यबोध और देशज आत्माभिमान से रची इन कविताओं से गुज़रते हुए आप धीरे-धीरे अपनी दुनिया के सूक्ष्म से परिचित होते हैं जो वास्तव में बहुत बड़ा है।
Sach, Samay Aur Saakshay
- Author Name:
Shailendra Sharan
- Book Type:

- Description: Book
Harf-E-Awara
- Author Name:
Abhishek Shukla
- Book Type:

-
Description:
बहुत से लोग हैं जो अपने आपको लफ़्ज़ देने के लिए शा'इरी इख़्तियार करते हैं मगर कुछ ख़ुशक़िस्मत ऐसे भी हैं जिन्हें ख़ुद शा'इरी अपने आपको ज़ाहिर करने के लिए चुनती है। अभिषेक उन्हीं चन्द ख़ुशक़िस्मतों में शामिल हैं जिन्हें शा'इरी ने इस ज़माने में अपना तर्जुमान मुक़र्रर किया है। ख़ामोशी अभिषेक की शा'इरी की जन्मभूमि है। उसके पास से ख़ामोशी की ख़ुशबू और आँच आती है कि उसके अन्दर तज्रबों का एक आतिशख़ाना है जो एक बाग़ की तरह खिला हुआ है। ख़ामोशी उसका चाक भी है जिस पर वो लफ़्ज़ों की कच्ची मिट्टी से मा'नी की शक्लें बनाता है। अभिषेक ने ये मिट्टी अपनी ज़ात और ज़माने के जिस्म और रूह के तज्रबों को गूँधकर तैयार की है। ये मिट्टी उसकी अपनी है और उससे बनाई जानेवाली सूरतें भी।
—फ़रहत एहसास
Meri Zameen Mera Aasman
- Author Name:
Lovlin
- Book Type:

- Description: षों पुरानी बात है, ऑल इंडिया रेडियो के परिसर में, वहाँ के मटमैले वातावरण में एक नवयुवती, कसी हुई जींस और लम्बे बूट पहने खट-खट करती गहरे आत्मविश्वास का दुशाला ओढ़े आती-जाती दिखाई पड़ती थी। पता चला, वह रूसी भाषा, तोल्स्तोय-दोस्तोयेवस्की जैसे महान लेखकों की भाषा जानती है और रेडियो में रूसी भाषा की विभागाध्यक्षा थी। यही नहीं, वह बड़े-बड़े समारोहों और विचार-गोष्ठियों में रूसी अतिथियों और भारत के मंत्रिगण, जैसे कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी, श्री नरसिंह राव, श्री इन्द्र कुमार गुजराल, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, के मध्य दुभाषिए के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। वहीं पता चला, उसका नाम लवलीन है और वह रेडियो ही नहीं, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी रूसी भाषा पढ़ाती है। उसे निकट से देखा—सुन्दर मुखाकृति, बड़ी-बड़ी आँखें जिनमें मुझे ढेर सारे सपने झिलमिलाते नज़र आए थे। उसके बेपरवाह घुँघराले बाल और कर्मठ कसावट वाला व्यक्तित्व मुझे बड़ा प्रभावशाली लगा था। तब परिचय हो नहीं पाया और बीच से बहुत से वर्ष फिसल गए। परन्तु उसके चेहरे का, व्यक्तित्व का प्रभाव मेरी ‘इमोशनल मेमोरी’ में सदा बना रहा। जब मिली तो वह लवलीन, लवलीन थदानी बन चुकी थी, वेदान्त और कर्मण्य की माँ भी, परन्तु आश्चर्य हुआ मुझे, उम्र के परिवर्तन ने उसके शरीर को अनछुआ छोड़ दिया था, वह पहले जैसी ही थी—सौम्य और मधुर। इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर के किसी कार्यक्रम में उसकी अंग्रेज़ी की कविताएँ सुनीं, उसकी कविताएँ मेरे मन के भीतर उतर गईं, जाने-अनजाने भावनाओं के गर्भगृह में हमारा एक जुड़ाव पनप गया। तब से हम जितना बन पड़ा, मिलते रहे। मेरी फ़िल्म ‘पंचवटी’ पर एक कार्यक्रम का संचालन लवलीन को करना था तो एक पूरा दिन हम एक सूने कमरे में साथ-साथ बैठे रहे एक-दूसरे को जानने के तहत...मैं उसकी दीदी हो गई। कुछ भावनाओं की केमिस्ट्री पता नहीं कैसे एक दूसरे जैसी हो जाती है। मुड़कर देखती हूँ तो याद पड़ता है, मैंने लवलीन का कोई भी कार्यक्रम, कविताएँ हों या उसकी बनाई फ़िल्में, कुछ नहीं छोड़ा...तो, उसका व्यक्तित्व हर प्रस्तुति में, जैसा वह कहती है, ‘थकती नहीं मैं जीने से’ बड़ा सार्थक लगा था, उसका अन्दाज़-ए-बयाँ उसका अपना था। अपनी कविताओं के सभी रूपों में वह स्वयं सम्मोहित थी और अब भी है, आकारों में, धरती के उन कणों में जहाँ वह गुलाब भी रखती है और चिराग़ भी जलाती है। ज़मीं से आसमाँ तक वह ख़ुद को तलाशती नज़र आती है। वह मानती भी है ֹ‘हमें ख़ुद ही देना होगा अपना साथ।’ अपनी लेखन यात्रा में उसने कोई तंत्र-मंत्र नहीं जपा, बिना किसी औपचारिकता में उलझे, वह चलती चली गई—सांसारिक होकर भी तपस्विनी। जब भी मैं उसे देखती, मुझे लगता, कृष्ण भक्त मीरा की तरह लवलीन सन्त-महात्माओं के बताए निर्गुण शब्द से अलग, सगुण प्रेम में लीन है। यह भी सच था कि अपनी दीवानगी की रहगुज़र बनीं वे पगडंडियाँ, जो उसे उन पुराने अन्धविश्वास को जीनेवाले, गली-कूचों और गाँव में ले गईं, जहाँ गुमराह करनेवाला अँधेरा पसरा हुआ था। लवलीन ने अपनी नाजुक उँगलियों से कुरेद-कुरेदकर उन सभी कुरीतियों की दास्तानें जमा कीं जो मनुष्यत्व के नाम पर एक-एक कालिख जैसी थीं। उसकी फ़िल्में मैंने देखी हैं...वह फ़ॉर्मूलाबद्ध फ़िल्में नहीं थीं, उनमें सामाजिक कुरीतियों (विशेष रूप से स्त्री के प्रति समाज का दृष्टिकोण, विसंगतियाँ) के प्रति गहरा आक्रोश है, एक विषाद और हताशा जिसकी चोट से विकृत रूप को बड़ी नाटकीयता से सबके सामने रखती है और साथ ही दर्शक को एक तर्कयुक्त निर्णय तक पहुँचाती है। उसकी फ़िल्में आत्मा को झकझोरतीं...भीतरी मानसिकता को भी, जहाँ क़ानून, पुलिस या अदालत नहीं होते, होता है एक आत्मिक दंड। वह कोई दावा नहीं करती, केवल समाज को उसका असली चेहरा दिखाती है। वह घुल जाती है अपने कथानक में, घुमड़ते दु:ख में...कष्ट में, पाप में—तब न पाप बचता है, न सारे के सारे द्वैत भाव जो मिट जाते हैं—वह अकेले बचती है, पार उतर जाती है और आनन्द ही तो होता है, सुख-दु:ख दोनों के पार। लवलीन के भावचित्र कविता हो या फ़िल्म, अपनी तरह से पुराने विश्वासों, संकल्पों, भावनाओं को नए-नए शब्द देते हैं। सत्य को वह भिन्न-भिन्न रूप से परिभाषित करती है...नहीं तो उसका अपनापन, सनातन सत्य, पुराने ढाँचों में आबद्ध दम तोड़ देता। उसे लगता है, सत्य को नई उद्भावना चाहिए, नई तरंग—“इनसानियत को मुस्कुराहट के तोहफ़ों से सजाएँगे अपने बुज़ुर्गों की ग़लतियों को, हरगिज़ नहीं दोहराएँगे?” अद्भुत है लवलीन की आत्मिक ऊर्जा, उसका व्यापक चैतन्य, जब वह अमृता प्रीतम के जीवन पर आधारित नाटक में अमृता प्रीतम की भूमिका निभा रही थी। पूरी की पूरी मानसिकता में अमृता प्रीतम को वह हर पल जी रही थी—मंच पर और मंच के बाद भी। नाटक में, उर्दू के प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी की मृत्यु पर फूट-फूटकर रोती लवलीन, लवलीन नहीं बची थी, पूरी अमृता हो गई थी। मैं हैरानी से सोचती कहाँ से ले आती है वह इतनी ऊर्जा? इतने सारे काम एक साथ कर डालती है बिना थके, बिना हार माने। कितना जोखिम-भरा रहा होगा उसके लिए कारागार में जाकर अपनी फ़िल्म 'बलात्कार' या 'रेप' की शूटिंग करना—औरत पर हुए ज़ुल्मों को बयान करना। परन्तु वह मगन है अपनी तपश्चर्या में, दीवानगी में, फक्कड़पन में, बिना मेहनत-मशक्कत किए जी नहीं पाती...अपना बहुमूल्य ज्ञान बाँटने में जुटी है। और उसके लिए वह जाने कहाँ-कहाँ से जाती है, बेझिझक यह कविता संग्रह ‘मेरी ज़मीन मेरा आसमान’ ही आख़िरी मंज़िल नहीं है उसकी, लवलीन के पास अभी भी ढेर सारे अनगाए गीत हैं…नज़्में हैं। प्रेम में पागल होकर पद्य गाए जाते हैं और दीवानगी में जिया जाता है—उसकी बेचैन रूह उसे जीने कहाँ देती है! चाहे वह जितना कहे—“मैं पौधे को पानी देती गई और प्यास मेरी बुझती गई।” वैसा होता कहाँ है! अभी यहाँ है, कल उसकी प्यासी आत्मा किसी पहाड़ की अँधेरी गुफ़ा में कुछ नया तलाशती मिल जाएगी आपको। परन्तु एक उसी क्षण उसका चेहरा आत्मसन्तुष्टि से भरा चमचमाता है, जब वह अपने बच्चों का नाम लेती है—वेदान्त और कर्मण्ये, जैसे नाम नहीं ले रही, मंत्रोच्चारण कर रही है। ज़िन्दगी के हर पहलू को लवलीन भरपूर जीती है—पूरी सच्चाई और शिद्दत के साथ। –डॉ. कुसुम अं
Mirza Ghalib
- Author Name:
Mirza Ghalib
- Book Type:

- Description: हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’ कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
Padhiye To Aankh Paaiye
- Author Name:
Ramkumar Krishak
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी ग़ज़ल को उर्दू की पारम्परिक ग़ज़ल से अलग अपनी पहचान देनेवालों में रामकुमार कृषक का विशिष्ट स्थान है। वृहत्तर सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों और विचार के गद्यात्मक विस्तार को उन्होंने जिस हुनर से ग़ज़ल में बाँधा, वह उन्हें हिन्दी के अग्रणी ग़ज़लकारों की पक्ति में ला देता है।
तत्सम, तद्भव और आम बोलचाल की शब्दावली में कही गई उनकी ग़ज़लों में उनके विशिष्ट भाषा-व्यवहार के अलावा वह सघर्ष भी दिखाई देता है जिससे हर ईमानदार रचनाकार अपने अनुभव को शब्द देते समय गुज़रता है। अपनी बात को उसकी समग्र त्वरा के साथ पाठक तक सम्प्रेषित करने के लिए वे कई बार नए ढंग के अपने रदीफ़ व काफ़ियों से ग़ज़ल की विधागत सीमाओं को विस्तृत भी करते हैं; लेकिन कहीं भी ग़ज़ल के अनुशासन को भंग नहीं होने देते, न उसकी उस तरलता को जो ग़ज़ल की लोकप्रियता का आधार रही है।
इस संग्रह में उनकी 1978 से अब तक की चुनिन्दा ग़ज़लें संकलित हैं जो सिर्फ़ रचनाकार के रूप में उनके विकास-क्रम को ही नहीं दर्शातीं, बल्कि इस पूरे अन्तराल में फैले हमारे सामाजिक-राजनीतिक इतिहास का भावनात्मक रोज़नामचा भी पेश करती हैं। समाज में लगातार बढ़ती ग़ैरबराबरी, लोकतांत्रिक मूल्यों से विचलन, सत्ता और सत्ताधारियों का लगातार विकृत होता चरित्र, धार्मिक आस्थाओं के दुरुपयोग, बाज़ार का आतंकी विस्तार और उसके बरक्स रोज़ और असहाय, और अकेला होता मनुष्य; यानी ऐसा कुछ भी नहीं है जो पिछले चार दशक के दौरान देश के आम आदमी ने झेला हो और रामकुमार कृषक ने उसे अपनी ग़ज़ल में अंकित न किया हो।
हिन्दी ग़ज़ल को एक समर्थतर और स्वायत्त विधा मानने वालों के लिए इन ग़ज़लों से गुज़रना ज़रूरी है।
Stree Aur Rang
- Author Name:
Jyoti Jain
- Book Type:

- Description: Stree aur rang poem collection edited by Jyoti Jain
Saare Sukhan Humare
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘सारे स़ुखन हमारे’ के रूप में समकालीन उर्दू शाइरी के अजीमुश्शान शाइर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की तमाम ग़ज़लों, नज़्मों, गीतों और क़तआ’त को हिन्दी में पहली बार एक साथ प्रस्तुत किया गया है। इसमें उनका आख़िरी कलाम तक शामिल है। उर्दू शाइरी में फ़ैज़ को ग़ालिब और इक़बाल के पाये का शाइर माना गया है, लेकिन उनकी प्रतिबद्ध प्रगतिशील जीवन-दृष्टि सम्पूर्ण उर्दू शाइरी में उन्हें एक नई बुलन्दी सौंप जाती है। फूलों की रंगो-बू से सराबोर शाइरी से अगर आँच भी आ रही हो तो मान लेना चाहिए कि फ़ैज़ वहाँ पूरी तरह मौजूद हैं। यही उनकी शाइरी की ख़ास पहचान है, यानी रोमानी तेवर में ख़ालिस इन्क़लाबी बात। उनकी तमाम रचनाओं में जैसे एक अर्थपूर्ण उदासी, दर्द और कराह छुपी हुई है, इसके बावजूद वह हमें अद्भुत रूप से अपनी पस्तहिम्मती के ख़िलाफ़ खड़ा करने में समर्थ हैं। कारण, रचनात्मकता के साथ चलनेवाले उनके जीवन-संघर्ष। उन्हीं में उनकी शाइरी का जन्म हुआ और उन्हीं के चलते वह पली-बढ़ी। वे उसे अपने लहू की आग में तपाकर अवाम के दिलो-दिमाग़ तक ले गए और कुछ इस अन्दाज़ में कि वह दुनिया के तमाम मजलूमों की आवाज़ बन गई। वस्तुत: फ़ैज़ की शाइरी हमारे समय की गहन मानवी, समाजी और सियासी सच्चाइयों का पर्याय है। वह हर पल असलियत के साथ है और भाषाई दीवारों को लाँघकर बोलती है। कहना न होगा कि उर्दू के इस महान शाइर की सम्पूर्ण कविताओं का यह एकज़िल्द मज्मूआ हिन्दी में चाव के साथ पढ़ा और सहेजा जाएगा।
Anamika
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

- Description: छायावाद के प्रवर्तकों में सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का नाम प्रमुख है। ‘मैं’ शैली अपना कर निराला ने हिन्दी कविता को नई दिशा प्रदान की और छन्दों के बन्धन से मुक्त कर उन्होंने हिन्दी कविता के लिए नई ज़मीन तैयार की। ‘अनामिका’ में संकलित कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं। ‘अनामिका’ नाम से निराला की कविताओं का संग्रह दो बार प्रकाशित हुआ। पहली बार ‘मतवाला’ के सम्पादक बाबू महादेव प्रसाद ने निराला की चौबीस कविताओं का संग्रह ‘अनामिका’ नाम से प्रकाशित किया था। इसमें निराला की प्रारम्भिक कविताएँ संकलित थीं। 1937 में पुन: ‘अनामिका’ नाम से ही निराला की कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ। इसे निराला की श्रेष्ठ कविताओं का संग्रह माना जाता है। ‘अनामिका’ को छायावाद का ‘गौरव-ग्रन्थ’ होने का श्रेय प्राप्त है।
Chandayan-2
- Author Name:
Shyam Manohar Pandey
- Book Type:

- Description: चंदायन हिजरी 781 (1379 ई.) की रचना है। इसकी रचना मौलाना दाऊद ने फीरोज़शाह तुगलक के युग में की थी। चंदायन काव्य की दृष्टि से ही नहीं, सांस्कृतिक और भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। चंदायन की कथा का मूल स्त्रोत लोरिकी, लोरिकायन या चनैनी है। ये तीनों नाम एक ही लोक महाकाव्य के हैं। लोरिकी को ही चनैनी भी कहा जाता है। अवधी क्षेत्र में चनैनी इस महाकाव्य को नायिका चनवा (चंदा) के नाम पर दिया गया है। चंदायन के कवि मौलाना दाऊद ने लोक महाकाव्य से कथा लेकर चंदा का नख-शिख, नगर वर्णन, बारहमासा में विरह का गम्भीर चित्र जोड़कर इस काव्य को एक श्रेष्ठ साहित्यिक काव्य बना दिया है। चंदायन के नाम से अब हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी अपरिचित नहीं रह गये हैं। हिन्दी और अंग्रेजी में लिखे गये निबन्धों में मौलाना दाऊद की कृति चंदायन पर विस्तार से विचार किया है। इस द्वितीय भाग में चंदायन की व्याख्या, शब्दार्थ तथा सांस्कृतिक टिप्पणियाँ तथा विशिष्ट शब्दों की व्युत्पत्ति विस्तार से दी गयी है। पाठकों की सुविधा के लिए दो सौ छंदों की विशद् शब्दानुक्रमणिका दी गयी है। इससे चंदायन की भाषा का स्वरूप समझने में सहायता मिल सकती है।
Prarthna Ke Shilp Mein Nahin
- Author Name:
Devi Prasad Mishra
- Book Type:

-
Description:
देवी प्रसाद मिश्र के लिए 1987 का ‘भारत भूषण पुरस्कार’ प्रस्तावित करते हुए प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह की संस्तुति थी कि परम्परा के साथ एक नए सम्बन्ध की स्थापना, सामाजिक सरोकार और जीवन्त भाषा-संवेदना के कारण देवी प्रसाद मिश्र युवा कवियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं।
‘परम्परा पाठ’ और ‘यह समय’ दो हिस्सों में बँटी इस कविता-पुस्तक का कैनवस किसी आदिम मनुष्य की संघर्ष-कथा से लेकर 1988 में मुफ़लिसी और तकलीफ़ में टूटते राम गरीब तक फैला है। हिन्दी कविता में सम्भवतः पहली बार अतीत और समकालिकता को उनकी अविच्छिन्नता और द्वन्द्वात्मकता में आमने-सामने रखा गया है। एक विस्तृत समय-संवेदना में फैली ये कविताएँ भारतीय मनुष्य की उत्पीड़ा और प्रतिरोध को अद्भुत अन्तरंगता, अनुभूति और इतिहासोन्मुखता के साथ व्यक्त करती हैं। अनुभूति और सहानुभूति की इतनी विस्तारधायी और सघन उपस्थिति सचमुच विरल है। दु:ख और दु:ख के कारणों की पड़ताल करती ये कविताएँ किसी भी दुखवाद के विरुद्ध हैं।
राज्य, सत्ता, अत्याचार, दु:ख, अस्तित्व, भाषा, कविता, सरोकार, नैतिकता, संघर्ष, क्रान्ति, परिवर्तन जैसे मुद्दों से टकराती देवी प्रसाद की कविताएँ शिल्प के किसी एकाश्मीय या मोनोलिथिक रूप को अस्वीकृत करती हैं और इस तरह मानो निराला के रचनाकर्म के प्रति प्रतिश्रुत होती हैं।
‘प्रार्थना के शिल्प में नहीं’ सिर्फ़ निरीहता और याचक मानसिकता के निषेध की ही नहीं, एक सकारात्मक और जनवादी विकल्प की अपूर्व और संवेदनशील प्रस्तावना है।
Nadi Usi Tarah Sunder Thi Jaise Koi Bagh
- Author Name:
Sanjay Alung
- Book Type:

-
Description:
मैंने संजय अलंग के कविता-संग्रह ‘नदी उसी तरह सुन्दर थी जैसे कोई बाघ’ को एक पाठक की तरह देखा। कई कविताओं के कथ्य और शिल्प ने मुझे रोककर उसे दुबारा पढ़ने को बाध्य किया।
इस संग्रह की 'सुन्दर' शीर्षक कविता में, संजय सौन्दर्य की अवधारणा पर गोया एक विमर्श सृजन करते हैं। आलोचना या कथा में विमर्श सहज सम्भव होता है किन्तु कवि ने इसे कविता के माध्यम से करने की कोशिश की है। इसे देखिए—‘गुलाब उसी तरह सुन्दर था जैसे कोई नदी/नदी उसी तरह सुन्दर थी जैसे कोई बाघ/ बाघ उसी तरह सुन्दर था जैसे कोई मैना/...स्वाद और सुन्दरता/ सभी जगह थी/ बस उसे देखा जाना था/ख़ुशी के साथ।’
बकौल मुक्तिबोध संवेदना जो ज्ञानात्मक होती है। संजय की कविताएँ कुछ चकित करने के साथ ही चीज़ों को रूढ़ अवधारणाओं से मुक्त होकर देखने और पढ़ने की माँग करती हैं। कविताओं में महीन विमर्श निहित है जो दार्शनिक स्तर के बावजूद अमूर्त नहीं यथार्थवादी है और सोचने को बाध्य करता है। कविताओं के कथ्य में आप अपने को पाते हैं और विमर्श में सम्मिलित हो जाते हैं। उनका शिल्प आपको अपने साथ बनाए रखता है।
संग्रह की ही कविता ‘बँटे रंग' उस राजनीति की याद दिलाती है, जो न सिर्फ़ तामसी, राजसी और सात्त्विक, बल्कि स्त्रियों के रंगों को पुरुषों के रंगों से अलग बताती है। यह धूर्तता और संकीर्णता को उजागर करनेवाली अभिव्यक्ति और उत्कृष्ट कविता है। संजय अलंग की रचना-प्रक्रिया में संगतियों और विसंगतियों की यह खोज निरन्तर चलती रहती है और उनके कथ्य को विचारणीय बनाती है।
कड़ी मेहनत से सब कुछ पा लेने का भ्रम फैलाकर मज़दूरों का शोषण, उपासना-स्थलों के फ़र्श पर गिरे हुए प्रसाद की चिपचिपाहट से उपजी वितृष्णा और मंडी या सट्टा बाज़ार में धन्धेबाज़ों की तरह ग्राहकों को पुकारते पुजारी कैसे मनुष्यता और आस्था के मूल्यों को घृणित और पतनशील बना देते हैं; संजय अलंग की कविताएँ उसकी अनेक झलकियाँ प्रस्तुत करती हैं। यह उजागर होता है कि, आराध्य पीछे छूट जाता है और छूटता चला जाता है।
कविताओं में प्रतीक और बिम्ब मौलिक और मुखर होकर उभरे हैं। बूँदाबाँदी के दिन, एक छाते में साथ-साथ सिहरते हुए क्षणों का एक सुन्दर और मौलिक बिम्ब है। 'शाह अमर हो गया लाल क़िले के साथ' कविता प्रतीकों को नया विस्तार देती है।
कविताएँ विषय वैविध्य से भरपूर हैं। कवि की दृष्टि तीक्ष्ण है। वह रोज़मर्रा की गतिविधियों को भी खोजपूर्ण दृष्टि से देखता है। यह दृष्टि विश्लेषणपरक है जो अदृश्य को देखने की उत्सुकता से भरी है। ‘क्रमांक वाला विश्व’ कविता-दृष्टि तीक्ष्णता की ओर ध्यान आकृष्ट करती है।
Anjur Bhari Ijot
- Author Name:
Romisha
- Book Type:

- Description: आँजुर भरि इजोत रोमिशाक प्रेम सम्बन्धी कविता स्त्री आ मनुष्यक सामूहिक जीवन मे अस्तित्वक अही अविचल यथार्थक वास्तविक मूल्य तकैत अछि। प्रपंच सँ संचालित सामाजिक व्यवस्थाक प्रवंचित मनुष्यक समस्त अभिलाषा केँ हुनकर काव्य-नायिका अपन जाग्रत चेतना सँ देखै छथि, आ जीवन मे किछु महत्त्वपूर्ण करबा लेल व्याकुल रहै छथि। अपन उद्यम मे यत्र-तत्र-सर्वत्र समाजक बहुमुखी आघात सहैतो कखनहुँ हताश नइँ होइ छथि। हुनकर स्त्री, पशु मनोवृत्तिक हिंस्र, खूँखार, वेधक दृष्टि-घात अहर्निश सहिकए क्रमश: पकठोस आ सावधान समझ बना लै छथि। एहेन स्त्री परिवार केँ सुगठित करबा लेल एक-एक साँस लगबै छथि। समस्त कर्तव्यक पूर्ति करैत हुनका एतबा कचोट अवश्य होइ छनि जे समाज आ कि परिवार हुनकहु मादे सोचथि। कवयित्रीक ई अपेक्षा एक टा महत्त्वपूर्ण पक्ष केँ उद्घाटित करैत समाज केँ ई संकेत दैत अछि जे पारिवारिकताक रक्षा मे आ परिवारक गठन मे जीवन झोंकि देनिहारि स्त्रीक पहचान आ हुनकर मनोबलक संज्ञान लेब अनिवार्य अछि। सूर्य, चन्द्रमा, फूल, पवन, प्रकाश, प्रेम, मनुष्यता, नैतिकता, विवेकशीलता, कृतज्ञता आदिक प्रति मोहाविष्ट हएब; प्राकृतिक अवदान सँ आह्लादक रूपक गढ़ब, कविता मे मोहक आ बहुरंगी व्यंजना उपस्थित करब...तय करैत अछि, जे रोमिशा केँ मानवीय परिवेश लेल बड़ बेसी अनुराग छनि। इएह अनुराग हुनका जनसरोकारक दायित्व सँ बन्हने रखतनि, आ हुनकर रचनात्मकता केँ उत्कर्ष देतनि। —देवशंकर नवीन
Do Sharan
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
निराला की सम्पूर्ण गीत-रचना का एक बहुत बड़ा भाग शरणागति या प्रपत्ति-भाव के गीतों से सम्बद्ध है। भक्ति, प्रार्थना और शरणागति के गीत ‘परिमल’ संग्रह से ही हमें मिलने लगते हैं। इसकी क्षीण ध्वनि उनके पहले संग्रह ‘अनामिका’ की ‘माया’ कविता में हमें सुनाई देती है। ‘या कि ले कर सिद्धि तू आगे खड़ी, त्यागियों के त्याग की आराधना’—कहकर कवि अपनी रचनात्मकता की उस विशेष दिशा की ओर संकेतित करता है, जो आगे चलकर उसके अवसाद, उसकी उदासी, खिन्नता, मृत्यु-भय और आत्म-जर्जरता से होती हुई, अन्ततः शरणागति की प्रार्थना-भूमि पर उसे उतारती है।
‘आराधना’ और ‘अर्चना’ में उसकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। अकेले ‘अर्चना’ में शरणागति के लगभग 34-35 गीत संगृहीत हैं। ‘गीत-गुंज’ और उनके अन्तिम संग्रह ‘सांध्य काकली’ में भी यह प्रार्थना-क्रम तिरोहित नहीं हुआ है। यद्यपि अपने जीवन के अन्तिम दिनों में निराला ‘प्रार्थना की व्यर्थता’ की बात भी करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन यह उत्कट नैराश्य के क्षणों की ही अभिव्यक्ति लगती है, अन्यथा वे अपनी कारुणिक आत्म-जर्जरता में लगातार ‘प्रभु’ की अमर फ़ैंटेसी में शरण लेते हुए दिखाई देते हैं। उनके सारे संग्रहों को मिलाकर शरणागति और प्रार्थना-क्रम के इन गीतों की संख्या लगभग 90 के आस-पास पहुँचती है। इस तरह निराला के अन्तःसंगीत का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग ‘प्रभु’ के इसी साक्षात्कार से सम्बद्ध है।
वरिष्ठ लेखक दूधनाथ सिंह ने निराला की प्रपत्ति भाव की कविताओं को संकलित किया है। इन कविताओं में मनुष्य की उस आत्मिक मुक्ति की जद्दोजहद को सहज ही परिलक्षित किया जा सकता है, जो दरअसल सम्पूर्ण मानवमुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा है।
Alfaaz Sitaaron Jaise
- Author Name:
Malvi Malhotra
- Book Type:

- Description: अब कहाँ आँसू हैं उसके नाम के ज़ब्त मैं जाने कहाँ से लाई हूँ मालवी मल्होत्रा यूँ तो एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, सिने-स्क्रीन का एक जाना-पहचाना चेहरा, लेकिन इसके अलावा वे एक संजीदा ग़ज़लगो भी हैं। यह उनकी ग़ज़लों की किताब है जिसमें ग़मे-दौराँ और ग़मे-जानाँ को एक साथ समेटने वाली उनकी कुछ यादगार ग़ज़लें शामिल हैं। प्रेम की अलग-अलग मनःस्थितियों और अहसासात को शे’रों में पिरोते हुए ये ग़ज़लें हमें मजबूर करती हैं कि हम उन्हें बार-बार पढ़ें। एक शे’र देखें,ग़ा वो ज़माने को आया था देकर मगर शर्म से थी मैं क्यों पानी-पानी इसी तरह के कई शे’र इन ग़ज़लों में आपके सामने बार-बार आते हैं जिनमें इश्क़ का पारम्परिक फ़्रेम अपनी हदों को बढ़ाता दिखता है। कुछ ग़ज़लें यहाँ ऐसी भी हैं जो समाज और आसपास के मौजूदा हालात की तरफ़ हमारा ध्यान खींचती हैं; मसलन कोरोना के दौर के हवाले से लिखी गई ग़ज़लें और क़ौमी एकता की ज़रूरत को रेखांकित करती ग़ज़लें।
Sang Samay Ke
- Author Name:
Mahaprakash
- Book Type:

- Description: Collection of Maithili Poems
Rudra Samagra
- Author Name:
Ramgopal Sharma 'Rudra'
- Book Type:

-
Description:
रामगोपाल शर्मा ‘रुद्र’ उत्तर-छायावाद काल के ऐसे कवि हैं, जो आधी शताब्दी से अधिक समय तक शब्द ब्रह्म की साधना में लीन रहे और उसकी लीलाएँ स्वयं देखते तथा हिन्दी काव्य प्रेमियों को दिखाते रहे। मस्ती, जिंदादिली और फक्कड़पन उनकी भी कविता का मिजाज है, लेकिन उनकी विशिष्टता यह है कि इसके साथ उनमें शास्त्रज्ञता और कलामर्मज्ञता का अद्भुत मेल है। ‘रुद्र’ जी ने अंतःप्रेरणा से कई शैलियों में काव्य-रचना की है। कभी उनकी शैली सरल है, कभी संस्कृतनिष्ठ और कभी उर्दू के लहजे से प्रभावित। सर्वत्र उनमें एक विदग्धता मिलती है, जिसे देखकर ही निराला ने उनके संबंध में अपना यह मत प्रकट किया था कि वे हिन्दी के एक ‘पाएदार शायर’ हैं। उनके शब्द जितने सटीक और व्यंजक हैं, बिंब उतने ही भास्वर।
धीरे-धीरे ‘रुद्र’ जी की अभिव्यक्ति सघन होती गई है, उनमें अर्थ-संकुलता बढ़ती गई है और उनके छंद छोटे होते गए हैं। लेकिन ताज्जुब है, इस दौर में भी उन्होंने ‘बंधु ! जरूरी है मुझको घर लौटना’ जैसे सरल गीत रचे, जो पुरानी और नई पीढ़ी के काव्यप्रेमियों को समान रूप से प्रिय हैं।
एक विद्वान् ने उनके संबंध में यह राय जाहिर की है कि चूंकि उन्होंने आलोचकों के कहने पर अपना मार्ग नहीं बदला, इसलिए वे उस पर काफी दूर निकल गए हैं। निश्चय ही इस कथन में सच्चाई है, क्योंकि उनके काल के अनेक कवि जहाँ अपनी जमीन छोड़कर अपनी चमक खोते गए हैं, या फिर धर्म और दर्शन की शरण में जाकर कोरे पद्यकार बनकर रह गए हैं, वहाँ ‘रुद्र’ जी की संवेदना लगातार गहरी होती गई है। प्रत्येक पीढ़ी के कवि अपने ढंग से समकालीन जीवन को प्रतिध्वनित करते हैं। ‘रुद्र’ जी साठ वर्षों के अपने कवि-जीवन में कभी अगतिक नहीं हुए और अपनी कविता में बदलती जीवन स्थितियों की अभिव्यक्ति करते रहे।
‘रुद्र समग्र’ क्यों? इसलिए कि इस लापरवाह, लेकिन बेहद खूबसूरत कवि की कविता को विस्मृत होने से बचा लिया जाए। यह वह कविता है, जो अपनी सीमाओं में हिन्दी कविता के एक महत्त्वपूर्ण दौर का ऐतिहासिक अभिलेख है और जिसका हिन्दी कविता के परवर्ती विकास में किसी न किसी रूप में योगदान भी है।
Chand Par Chandni Nahee Hoti
- Author Name:
Sanjay Chaturvedi
- Rating:
- Book Type:

- Description: This book has no description
Apna Sa Koi Naam
- Author Name:
Vinod Kumar Chaudhary
- Book Type:

-
Description:
साम्प्रदायिक सद्भाव, अध्यात्म, प्रकृति, धर्म, दर्शन के विभिन्न रूपों-रंगों को बिखेरती ये कविताएँ एक इन्द्रधनुष बनाती हैं।
सामान्य-सी दिखनेवाली ये कविताएँ गहन, गूढ़ अर्थ रखती हैं और पाठक को संवेदना, चिन्तन का दोहरा आस्वाद देती हैं।
कवि विनोद कुमार चौधरी ने इन कविताओं को लोकभाषा का सौन्दर्य प्रदान कर उस गौरवशाली परम्परा और काव्य-शैली को प्रतिष्ठापित किया है। जिसमें हर शब्द के बहुआयामी अर्थ होते हैं और जो लोगों के साथ वस्तुओं और वनस्पतियों को भी गरिमा, गौरव और सम्मान प्रदान करती है।
कवि नदी की ‘आत्मा’ के प्रति समर्पण भावना प्रदर्शित करते हुए प्रार्थना कर उसका अभिवादन करता है। उसकी श्रेष्ठता हमारे मानस में जगाता है और जन्म-भूमि की स्मृतियों को आभा-दीप्त करते हुए बताता है कि स्मृतियाँ हमारी धरोहर हैं, जो मन-आत्मा को सन्तोष प्रदान कर जीवन को प्रवहमान बनाती हैं।
अतीत और वर्तमान के बीच गहन रिश्ता बनाती ये कविताएँ हर वर्ग, हर आयु के पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम हैं।
Mrityu : Kavitayein
- Author Name:
Arun Dev
- Book Type:

- Description: जीवन और मृत्यु सहोदर स्थितियाँ हैं। लेकिन खड़ी बोली हिन्दी में ऐसी कोई कविता पुस्तक नहीं जो केवल मृत्यु सम्बन्धी अनुभव और स्थितियों से निर्मित हो। इस अर्थ में अरुण देव के इस संग्रह का प्रकाशन एक विरल घटना है। सौ पदों में प्रशस्त यह पुस्तक मृत्यु के प्राय: सभी आयामों,पक्षों और मृत्युजनित भावों को पुंजीभूत करती है। इन कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता है जीवन के साथ घनिष्ठता। मृत्यु की कविताएँ अन्ततः जीवन की कविताएँ होती हैं, जो जीवन था, जो है और जो होगा। कभी-कभी कविता इतनी कम जगह घेरती है मानो कोई अन्तिम साँस हो। कभी कबीर से लेकर कामू तक के प्रसंग एक बिम्ब को महाकाव्यात्मक विस्तार दे देते हैं। लेकिन कहीं भी न तो ईश्वर का स्मरण है, न किसी अन्य लोक या उत्तर-जीवन की अभिलाषा। जो है यहीं है। मृत्यु भी इसी जीवन, इसी संसार की परिघटना है, शाश्वत और सर्वग्रासी। लेकिन जीवन सबसे बड़ा है। अरुण कमल प्रख्यात कवि
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...