Ichchaon Ke Jivashm
Author:
Usman KhanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
उस्मान ख़ान की कविता उखड़े हुए नागरिक के एलिएनेशन की कविता है। आततायी राज्य, अन्याय, सत्तात्मक दम्भ, लूट, निर्बुद्धिकरण और कुबुद्धिकरण, राजनीतिक पतन, सामाजिक विषमता और विभाजन ने उस्मान को आन्दोलित कर रखा है। वे बेज़ार हैं। यह मामूली मोहभंग नहीं है। लेकिन यह ग़ैरमामूली असन्तोष उन्हें न तो निरुपाय बनाता है और न ही असंयत। उनके यहाँ भाषा एक बड़े उपाय में बदल जाती है। लोकतंत्र, सत्ता और समाज के स्लम को वर्णित करने के लिए उस्मान को ‘स्ट्रीट लैंग्वेज’ उपलब्ध होती जाती है जो हिन्दुस्तानी विपन्नता, दारिद्र्य, असहमति और बेदखली की अस्ल अभिव्यंजना है। इस जन भाषा, जो नई हिन्दुस्तानियत की द्रोह-भाषा सरीखी है, को पाने के बाद उस्मान ख़ान समकालीन हिन्दी के मध्यवर्गीय टकसाली भाषिक रूप-बन्ध को आहिस्ता से परे हटा देते हैं और अपने निहंग अनुभवों और देखन को किसी निचाट ज़बान के हवाले कर देते हैं। इसीलिए उस्मान को पढ़ना काफ़ी कुछ ख़ुसरो की याद दिलाता है। तब यह बात भी खुल जाती है कि कविता के अपने कारोबार में वह ला-सानी हैं। कोई उन जैसा नहीं, वह किसी जैसे नहीं। फिर भी मुक्तिबोध की चिन्ताओं और राजकमल की उखड़ी हुई साँसों वाली कविता का यदि कोई काव्याकार देखना हो तो उस्मान ख़ान की बेचैन चहलक़दमियों में वह दिख जाएगा। और अपनी इस बेचैनी में वह मुक्तिबोध की तरह एक बडे भूभाग में नहीं भटकते—उनकी दुविधाएँ और द्वन्द्व बेहद संघनित और आन्तरिक होने के साथ ही प्रतिरोधात्मक और वैचारिक होते जाते है। जीवन के नष्ट होने की वजह यदि जनविरोधी तंत्र है तो इसका विकल्प ढूँढ़ना पड़ेगा जो तुरत-फुरत तो हासिल नहीं हो सकता। कह लीजिए कि उस्मान सामूहिक आत्मन् के निर्माण को किसी सतत् धीरज का परिणाम मानने से विरत नहीं होते। विपत्तियों को देखने-समझने का जो हुनर उन्होंने हासिल किया है और फ़कीरी बेबाक़ी, बाँकपन और तंज़ के साथ कहने की जो शैली उन्होंने पा ली है, हिन्दी कविता के समकाल में वह बड़ी रचनात्मक उपलिब्ध है जो उस्मान की क़द-काठी को नायाब और अप्रतिम बनाती है और अपनी पीढ़ी का सबसे निराला राजनीतिक काव्य-व्यक्तित्व।
-देवी प्रसाद मिश्र
ISBN: 9789349180956
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कोई कवि केवल अपना प्रवक्ता नहीं होता, वैसे तो वह किसी का भी प्रवक्ता नहीं होता; लेकिन उसमें समस्त जन एवं समस्त जीवलोक एवं ब्रह्मांड अपने लिए स्थान पा लेते हैं। इसीलिए वह केवल एक खंड या कोटि की ओर से नहीं, बल्कि सबकी ओर से बोलता है। सबकी बोली बोलता है। ‘मैं वो शंख महाशंख’ इसी तरह अर्थवान होता है। साथ ही देखने की बात यह है कि जो शंख महाशंख है, वह गणना से बाहर है। अन्तिम गिनती यानी महाशंख भी इस पहाड़े से बाहर है। अरुण कमल की कविताएँ उन्हीं शंख महाशंख लोगों, बाहर कर दिए गए, गणना से छूटे हुए ग़रीब, निर्बल किन्तु स्वाभिमानी, संघर्षशील लोगों की कविताएँ हैं।
यह पूरा संग्रह ऐसे ही चरित्रों, प्रसंगों एवं बिम्बों से भरा हुआ है। इस कारण निश्चय ही इस संग्रह का, जैसा कि अरुण कमल के सभी संग्रहों का, एक स्पष्ट राजनीतिक मन्तव्य भी है। भूमंडलीकरण, निजीकरण यानी पूँजीवाद के इस भयानक दौर में अरुण कमल उनके साथ हैं जो जीवन के बाहर धकेले जा रहे हैं। ये उन्हीं लोगों की कविताएँ हैं। ऐसी विविधता, स्वरों का ऐसा वर्णक्रम, बोली और संवाद की ऐसी विपुल भंगिमाएँ अन्यत्र दुर्लभ हैं।
एक बार फिर अरुण कमल जीवन का सन्धान करते हुए अप्रत्याशित सौन्दर्य की सृष्टि करते हैं। ऐसी सघनता, बिम्बों की ऐसी वीथि एवं शब्दों के आन्तरिक संगीत का ऐसा प्रस्फुटन विरल है। गहरी मार्मिकता एवं अपनापन से भरी ये कविताएँ प्रत्येक सहृदय पाठक के लिए सहज सुगम हैं जबकि एक अन्य स्तर पर इनकी संश्लिष्टता अतिरिक्त ध्यान तथा यत्न की आकांक्षा भी कर सकती है। अरुण कमल जीवन का खनन करते हैं, नए अयस्कों की खोज, और फिर उनका शोधन। इसीलिए उनकी कविताएँ जीवन के बारे में, जीवन के अर्थ और मूल्य के बारे में बात करने को विवश करती हैं। इन कविताओं की एक और विशेषता है इनका खुलापन, किसी निगेटिव फ़ोटो की तरह का खुलापन और अनिश्चय और सम्भावना। इसीलिए अरुण कमल को यह दुनिया निगेटिव फ़ोटो सरीखी लगती है।
Samidha : Vols. 1-2
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

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Description:
मनुष्य के भीतर जो नाना प्रकार के राग-विराग हैं, उनके बीच जब वह अपने अन्तस में झाँकता है, उसे एक भारहीन दिगन्तव्यापी सौन्दर्य-चेतना का साक्षात्कार होता है। एक कवि अपनी काव्य-यात्रा में अपने अन्तस की उस हिरण्यमयी सच्चाई को साक्षात्कृत करता है। सारी करुणताएँ उसकी दृष्टिक्षेत्र के बाहर चली जाती हैं। केवल सौन्दर्य, केवल मंगल, केवल प्रार्थना का ही अहसास बचा रहता है।
श्रीनरेश मेहता की काव्य-दृष्टि में प्रकृति को एक उदात्त रूप में ग्रहण किया गया है। प्रकृति उनकी समूची संस्कृति में एक केन्द्रीय सत्ता बनकर नई क्रान्ति और नया संस्कार प्रदान करती है। प्रकृति से इस प्रकार का साक्षात्कार पुरुष को अपने विकारों से मुक्त कराता है।
श्रीनरेश मेहता की कविताओं में हमें कवि की दृष्टि प्रकृति और पुरुष के उदात्त रूप पर ही गड़ी दिखती है। उनके यहाँ प्रतिस्पर्द्धा के स्थान पर आत्मदान का महत्त्व है। केवल धृति नहीं है, वह उल्लास है, सृजन है, आह्लाद है और एक निरन्तर जीवन्तता है। उसमें संकोच, तिरस्कार या अस्वीकृति नहीं है। वह मनुष्य को एक नव्य मानवीय संस्कार देती है। मनुष्य के भीतर जो आसुरी वृत्तियाँ हैं, उन्हें दैवी वृत्तियों में बदलती चलती है।
Whistling Words
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Sonal Lobo
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- Description: Poetry can never be easily defined, it’s just the flow of thoughts and words all formed together to form a beautiful and colourful pattern. The poems in this book will surely take you to a fantastic world lingering in your hearts with soft whistles.
Kavishree
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Ramdhari Singh Dinkar
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- Description: श्री' रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संग्रह है। कविताओं में प्रखर राष्ट्रवाद, प्रकृति के प्रति उत्कट प्रेम एवं मानव-कल्याण-कामना की मंगल-भावना के दर्शन होते हैं। 'कविश्री' में संगृहीत हैं दिनकर जी की 'हिमालय के प्रति', 'प्रभाती', 'व्याल विजय' एवं 'नया मनुष्य' जैसी प्रसिद्ध प्रदीर्घ कविताएँ, जो हिन्दी काव्य-साहित्य की अमूल्य निधि हैं। दिनकर का काव्य-व्यक्तित्व जिस दौर में निर्मित हुआ, वह राजसत्ता और शोषण के विरुद्ध हर मोर्चे पर संघर्ष का दौर था। इसलिए 'कविश्री' में संकलित रचनाओं को पढ़ना भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में साहित्य के योगदान से भी परिचित होना है। अपने ऐतिहासिक महत्त्व के कारण पाठकों के लिए एक संग्रहणीय और अविस्मरणीय संग्रह।
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