Hare Ko Harinaam
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘केवल कवि ही कविता नहीं रचता, कविता भी बदले में कवि की रचना करती है' जैसी अनुभूति को आत्मसात् करनेवाले दिनकर की विचारप्रधान कविताओं का संकलन है 'हारे को हरिनाम', जिसमें उनके जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं। इसमें परम सत्ता के प्रति छलहीन समर्पण की आकुलता से भरी ऐसी कविताओं की अभिव्यक्ति हुई है जिनमें मनुष्य मन की विराटता है। हम कह सकते हैं कि ओज और आक्रोश से भरी राष्ट्रीय कविताओं के सर्जक दिनकर की भक्ति-भावनाओं से विह्वल रचनाओं का यह संग्रह संवेदना और आस्था के विरल आयामों से जोड़ने का एक सफल उपक्रम है।
और संग्रह का नाम ‘हारे को हरिनाम’ से कुछ मित्रों के चौंकने पर सच स्वीकार करने की साहस-भरी वह मनुष्यता भी, जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने इन शब्दों में व्यक्त करते हैं–“...किन्तु पराजित मनुष्य और किसका नाम ले?
मैंने अपने आपको
क्षमा कर दिया है।
बन्धु, तुम भी मुझे क्षमा करो।
मुमकिन है, वह ताज़गी हो।
जिसे तुम थकान मानते हो।
ईश्वर की इच्छा को
न मैं जानता हूँ,
न तुम जानते हो।”
ISBN: 9789389243093
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: लमाबम कमल आधुनिक काल के मणिपुरी साहित्य की नींव रखनेवाले रचनाकारों में से एक थे। जिसे हम आज मणिपुरी भाषा की मौलिक और समृद्ध रचनाधर्मिता कहते हैं, उसके विकास का मूल स्रोत कमल की कविताएँ हैं। उपन्यास, कहानी और नाटक के क्षेत्र में भी उनकी देन ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। अडाङ्ल और चाओबा के साथ मिलकर कमल ने मणिपुरी भाषा की अब तक की श्रेष्ठतम रचनाकार-त्रयी का निर्माण किया। कमल ने मणिपुरी भाषा और साहित्य की निर्धनता दूर करके उसे विश्व की समृद्ध भाषाओं और उनके साहित्य के मध्य गौरवपूर्ण स्थान दिलाने का स्वप्न देखा था। साथ ही वे मणिपुरी साहित्य को उत्कृष्ट मानव-मूल्यों और इतिहास व समाजगत सजगता से जोड़कर विकसित करना चाहते थे। उनका सम्पूर्ण साहित्य इसी अद्भुत स्वप्न को साकार करने की महती साधना का प्रतिफल है। मणिपुर में रहकर वहाँ के साहित्य तथा समाज का अध्ययन करनेवाले हिन्दी के कवि आलोचक डॉ. देवराज ने एल. कमल सिंह की सम्पूर्ण रचनाओं का अनुवाद और सम्पादन किया है। मणिपुर के साहित्य में आधुनिकता के विकास के साथ-साथ, सुदूरपूर्व के इस राज्य की संस्कृति और समाज को समझने की दृष्टि से यह संकलन अत्यन्त उपयोगी है
Kaju Ki Roti
- Author Name:
Pankaj Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
पंकज चतुर्वेदी की कविता उन पाठकों के दिल के बहुत क़रीब रहती है, जो समझते हैं कि कविता का सबसे ज़रूरी काम भाषा में अर्थ के जनसंहार को विफल करना है। सभी तरह की आततायी सत्ताएँ इस जनसंहार की हिस्सेदार होती हैं। भाषा को जुमलेबाज़ी में घसीटकर लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदला जा सकता है। विनाश को विकास की तरह दिखाया जा सकता है। अन्याय को न्याय की आभा दी जा सकती है। जनसंहार को राष्ट्रीय गौरव के अभिसार में बदला जा सकता है। झूठ को सच बनाया जा सकता है। कविता इस प्रपंच को उजागर कर शब्दों के सच्चे अर्थों का पुनर्जन्म घटित करती है।
रघुवीर सहाय की कविता ने इस ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया। उन्होंने देखा था कि शासक जब 'लोकतंत्र का अन्तिम क्षण है' कहकर हँसते हैं, तब वे लोकतंत्र के अर्थ का ही अन्त नहीं करते, हँसी को भी हत्या के उल्लास में बदल देते हैं। पंकज की कविता देख रही है कि नेता जब कहता है 'देश के लिए जी रहा हूँ', तब उसकी मुराद यह होती है कि उसके जीने में ही देश का जीना समझा जाए!
पंकज की कविता में दर्ज है कि आज असहमति को दबोचती हुई मुस्कान हिंसा के नहीं, मेहरबानी के रूप में प्रकट हो रही है। यह विफल लोकतंत्र का नहीं, फ़ासीवाद के उत्थान का लक्षण है।
रघुवीर सहाय से पंकज चतुर्वेदी तक हिन्दी कविता की यात्रा लोकतंत्र के अन्तिम क्षण से फ़ासीवाद के पहले क्षण तक की यात्रा है। खुली सड़क पर पूर्व-घोषित हत्या के कातर तमाशबीन अब सिर्फ़ तमाशा नहीं देखते, हत्यारों की जय-जयकार भी करते हैं।
भाषा के हर पाखंड को उजागर करने की ज़िद में पंकज की कविता, कविता जैसी न दिखने की हद तक कविता के आडम्बरों से परहेज़ करती है। दुस्साहस सरीखा यह साहस उनकी कविता को हमारे समय की सच्ची और पारदर्शी कविता होने की क़ुव्वत अदा करता है।
—आशुतोष कुमार
Pragatisheel Sahitya Ki Jimmedari
- Author Name:
Markandey
- Book Type:

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Description:
हिन्दी साहित्य में मार्कण्डेय की पहचान मुख्यतः कहानीकार के रूप में है। 2-डी, मिन्टो रोड से सीधे जुड़े रहे लोग भी उन्हें एक बेहतरीन क़िस्सागो के रूप में ही याद करते हैं। लेकिन देश और समाज-संस्कृति की लेकर उनकी चिन्ताएँ व ज़िम्मेदारी का भाव उन्हें कहानी से निर्बन्ध भी करता रहता और विचार-रूप में सीधे व्यक्त हो उठता। यह पुस्तक मार्कण्डेय की इस पहचान को सामने लाती है।
इस पुस्तक की अन्तर्वस्तु का फैलाव साहित्य से लेकर राजनीति की हद तक है। मार्कण्डेय यहाँ जिस चिन्तनधारा व इतिहासबोध को अपनाते हैं, वह आधुनिक समाज-विज्ञानों से आता तो है लेकिन अपने समाज की आन्तरिक स्थिति, ‘जन’ तथा ‘लोक’ से अन्तःक्रिया के साथ।
इस पुस्तक में वैचारिक लेखों के आलावा ‘गोदान’ तथा अन्य ग्राम-उपन्यासों पर लिखे लेख तथा पुस्तक समीक्षाएँ भी शामिल हैं। लोक-साहित्य पर दो लेख और दो भाव-चित्र हैं जो आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टि को ही अपना प्रस्थान-बिन्दु बनाते हैं। इस पुस्तक में मार्कण्डेय सर्वथा भिन्न रूप में पाठकों से रू-ब-रू होते हैं। मार्कण्डेय के साहित्य-संवाद का यह संस्करण ‘प्रगतिशील साहित्य की ज़िम्मेदारी’ पर खरा उतरता है।
—भूमिका से
Chandayan Vol. 1-2
- Author Name:
Shyam Manohar Pandey
- Book Type:

- Description: चंदायन हिजरी 781 (1379 ई.) की रचना है। इसकी रचना मौलाना दाऊद ने फीरोज़शाह तुगलक के युग में की थी। चंदायन काव्य की दृष्टि से ही नहीं, सांस्कृतिक और भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। चंदायन की कथा का मूल स्रोत लोरिकी, लोरिकायन या चनैनी है। ये तीनों नाम एक ही लोक महाकाव्य के हैं। लोरिकी को ही चनैनी भी कहा जाता है। अवधी क्षेत्र में चनैनी इस महाकाव्य को नायिका चनवा (चंदा ) के नाम पर दिया गया है। चंदायन के कवि मौलाना दाऊद ने लोक महाकाव्य से कथा लेकर चंदा का नख-शिख, नगर वर्णन, बारहमासा में विरह का गम्भीर चित्र जोड़कर इस काव्य को एक श्रेष्ठ साहित्यिक काव्य बना दिया है। चंदायन के नाम से अब हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी अपरिचित नहीं रह गये हैं। हिन्दी और अंग्रेजी में लिखे गये निबन्धों में मौलाना दाऊद की कृति चंदायन पर विस्तार से विचार किया है।
Samudra Se Lautenge Ret Ke Ghar
- Author Name:
Amey Kant
- Book Type:

- Description: collection of poems
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