VAH EK AUR MAN...
Author:
Shri Praveen KumarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
ये ज़रूरी नहीं कि सबका सच एक हो जाए,
सबके अहसासात एक हो जाएँ,
सबके नज़रिए,
सबके फलस़फे एक हो जाएँ
न मैं अपने जज़्बों को खुद थाम पाया
कहाँ होंठ सीना, न मैं जान पाया
सर्दजोशी का आलम, सुलगती़िफज़ाएँ
न वो चुप हुआ है और न मैं बाज़ आया।
रु़खसती रु़ख बदलने का भी नाम है
बेरु़खी रोकना आज़माइश मेरी
आँसुओं सा निकलकर कहाँ चल दिए
धूल सी भर गई है नुमाइश मेरी।
—इसी संग्रह से
इस काव्य-संकलन में मानवीय रिश्तों का स्थायी भाव प्रेम, यत्र-तत्र-सर्वत्र है और उसी में रूबरू हुए दिल को छूनेवाले तमाम मंजरों का मर्यादित तस्करा भी है। समय के प्रवाह में जज्बातों को थामने, उनसे गुफ्तगू करने की कशिश गीतों और नज्मों में मुसलसल है, तो मसरूफियत के आगोश में अपनों से दूर हो जाने की पीड़ा भी कमोबेश इसमें शामिल है।
ISBN: 9789390378975
Pages: 176
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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