Deewan-E-Galib
Author:
Ali Sardar ZafariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
साहित्य के हज़ारों साल लम्बे इतिहास में जिन चन्द काव्य-विभूतियों को विश्वव्यापी सम्मान प्राप्त है, ग़ालिब उन्हीं में से एक हैं। उर्दू के इस महान शायर ने अपनी युगीन पीड़ाओं को ज्ञान और बुद्धि के स्तर पर ले जाकर जिस ख़ूबसूरती से बयान किया, उससे समूची उर्दू शायरी ने एक नया अन्दाज़ पाया और वही लोगों के दिलो-दिमाग़ पर छा गया। उनकी शायरी में जीवन का हर पहलू और हर पल समाहित है, इसीलिए वह जीवन की बहुविध और बहुरंगी दशाओं में हमारा साथ देने की क्षमता रखती है।</p>
<p>काव्यशास्त्र की दृष्टि से ग़ालिब ने स्वयं को ‘गुस्ताख़’ कहा है, लेकिन यही उनकी ख़ूबी बनी। उनकी शायरी में जो हलके विद्रोह का स्वर है, जिसका रिश्ता उनके आहत स्वाभिमान से ज़्यादा है, उसमें कहीं शंका, कहीं व्यंग्य और कहीं कल्पना की जैसी ऊँचाइयाँ हैं, वे उनकी उत्कृष्ट काव्य-कला से ही सम्भव हुई हैं। इसी से उनकी ग़ज़ल प्रेम-वर्णन से बढ़कर जीवन-वर्णन तक पहुँच पाई। अपने विशिष्ट सौन्दर्यबोध से पैदा अनुभवों को उन्होंने जिस कलात्मकता से शायरी में ढाला, उससे न सिर्फ़ वर्तमान के तमाम बन्धन टूटे, बल्कि वह अपने अतीत को समेटते हुए भविष्य के विस्तार में भी फैलती चली गई। निश्चय ही ग़ालिब का यह दीवान हमें उर्दू-शायरी की सर्वोपरि ऊँचाइयों तक ले जाता है।
ISBN: 9788126705276
Pages: 432
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘निर्भयता एक ज़िद है/हर डर के विरुद्ध’ कहने वाले वसंत सकरगाए अपनी कविताओं में इस निर्भयता को पूरी ज़िद के साथ निभाते भी हैं। सफ़ेदपोश समाज के अँधेरे कोने हों या राजनीति की दम्भी और जन-निरपेक्ष मुद्राएँ, उनका कवि अपनी बात बिना किसी डर के और साफ़-साफ़ शब्दों में कहता है।
इस संग्रह में शामिल वे कविताएँ जो उन्होंने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए लिखीं; उनके सरोकारों को भी दिखाती हैं, और उनकी निडरता को भी रेखांकित करती हैं। ‘बुलडोजर हमारा राष्ट्रीय यंत्र’, ‘पत्र वापसी के लिए आवेदन-पत्र’, ‘मेरे घर छापा पड़ा’ और ‘कान’ जैसी कविताएँ बताती हैं कि कवि ने इक्कीसवीं सदी के भारत के राजनीतिक-सामाजिक समय को कितनी स्पष्ट पक्षधरता और पीड़ा के साथ लेकिन बिना किसी भय के देखा है। उनकी इन जैसी कविताओं का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ कवि अरुण कमल कहते हैं कि “ये कविताएँ ब्रेष्ट और नागार्जुन की याद दिलाती हैं और सिद्ध करती हैं कि सही समझ, निर्भीकता और ईमानदारी से ही प्रतिरोध संभव है।”
प्रकृति, लोक, जन-गण की बोली-भाषा और उनमें रचे-बसे जीवन को वे जैसे वर्तमान की भयावहता के समक्ष एक विकल्प की तरह लेकर चलते हैं; और कवि के अपने संसार को भी जो उनके लिए एक सम्पूर्ण जगत है। आलोचक विजय बहादुर सिंह के शब्दों में “कविता ज़मीन की ही चिन्ता न करे बल्कि ज़मीन से अँखुवे की तरह फूटे और लहलहाए भी..., यह आपका कवि करता है।... अच्छा लगा कि आप कोई भंगिमा लेकर नहीं बल्कि जीवन के गवाह कवि के रूप में आते हैं।”
यह संग्रह निश्चय ही बृहत् हिन्दी समाज का ध्यान आकर्षित करेगा।
Ye Kohre Mere Hain
- Author Name:
Bhawani Prasad Mishra
- Book Type:

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Description:
‘ये कोहरे मेरे हैं’ में संकलित भवानी भाई की, 1954-55 से लेकर 1970-71 की डायरियों में लिखी, वे प्रेम-कविताएँ हैं, जो पहली बार यहाँ एक साथ प्रकाशित हो रही हैं। ये ठेठ प्रेम-कविताएँ हैं और कवि ने इनके माध्यम से अपने जीवनानुभवों और काव्य-बोध को निरन्तर विकसित, विस्तृत और सुसम्पन्न किया है। मानव-स्वभाव की सरलता और जटिलता, रंगीनी और सादगी का जैसा जोड़-तोड़ यहाँ प्रतिफलित है, उससे यह भी सूचित होता है कि भावों के सुसंस्कार में विचारों की भूमिका किस कोटि का योगदान करती है और कविता कैसे-कैसे झड़े-तिरछे रास्तों और उतार-चढ़ावों से होकर अपना साज-सँवार पाती है।
निश्चय ही इन कविताओं में कवि ने अपने व्यक्तित्व के उस पक्ष को दर्ज किया है, जो न तो स्वतंत्रताप्रेमी आन्दोलनकारी का है, न ही जोशो-खरोश से लबालब भरे आदर्शवादी का। इनमें मानवीय रिश्तों का एक ख़ूबसूरत सपना देखने की कोशिश है जो किसी भी श्रेष्ठ कविता से सहज अपेक्षित है। कहने को ये सपने बहुत आमफहम और मामूली हैं, किन्तु वास्तविक जीवन में इनकी परिणति इन दिनों लगभग असम्भव हो उठी है। इनमें एक आदमी का दूसरे आदमी के पास तनिक देर बैठकर अपना दु:ख-दर्द कह डालने की इच्छा, परस्पर के नेह-बन्धन में बँधकर आकाश-भर विस्तार पाने की आकांक्षा, जीवन की भागम-भाग और निरन्तर मशीनी और औपचारिक होते सम्बन्धों के विरोध में सघन परिचय और आत्मीयता की बारादरी सजाने का सपना झिलमिला रहा है।
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