Beech Ka Rasta Nahin Hota
Author:
PashPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
पाश की कविता हमारी क्रान्तिकारी काव्य-परम्परा की अत्यन्त प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति है। मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित व्यवस्था के नाश और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए जारी जनसंघर्षों में इसकी पक्षधरता बेहद स्पष्ट है। साथ ही यह न तो एकायामी है और न एकपक्षीय, बल्कि इसकी चिन्ताओं में वह सब भी शामिल है, जिसे इधर प्रगतिशील काव्य-मूल्यों के लिए प्रायः विजातीय माना जाता रहा है।</p>
<p>अपनी कविता के माध्यम से पाश हमारे समाज के जिस वस्तुगत यथार्थ को उद्घाटित और विश्लेषित करना चाहते हैं, उसके लिए वे अपनी भाषा, मुहावरे और बिम्बों-प्रतीकों का चुनाव ठेठ ग्रामीण जीवन से करते हैं। घर-आँगन, खेत-खलिहान, स्कूल-कॉलेज, कोर्ट-कचहरी, पुलिस-फौज और वे तमाम लोग जो इन सबमें अपनी-अपनी तरह एक बेहतर मानवीय समाज की आकांक्षा रखते हैं, बार-बार इन कविताओं में आते हैं। लोक-जीवन में ऊर्जा ग्रहण करते हुए भी ये कविताएँ प्रतिगामी आस्थाओं और विश्वासों को लक्षित करना नहीं भूलतीं और उनके पुनर्संस्कार की प्रेरणा देती हैं। ये हमें हर उस मोड़ पर सचेत करती हैं, जहाँ प्रतिगामिता के ख़तरे मौजूद हैं; फिर ये ख़तरे चाहे मौजूदा राजनीति की पतनशीलता से पैदा हुए हों या धार्मिक संकीर्णताओं से; और ऐसा करते हुए ये कविताएँ प्रत्येक उस व्यक्ति से संवाद बनाए रखती हैं जो कल कहीं भी जनता के पक्ष में खड़ा होगा। इसलिए आकस्मिक नहीं कि काव्यवस्तु के सन्दर्भ में पाश नाज़िम हिकमत और पाब्लो नेरुदा जैसे क्रान्तिकारी कवियों को ‘हमारे अपने कैम्प के आदमी’ कहकर याद करते हैं और सम्बोधन-शैली के लिए महाकवि कालिदास को।</p>
<p>संक्षेप में, हिन्दी और पंजाबी साहित्य से गहरे तक जुड़े डॉ. चमनलाल द्वारा चयनित, सम्पादित और अनूदित पाश की ये कविताएँ मनुष्य की अपराजेय संघर्ष-चेतना का गौरव-गान हैं और हमारे समय की अमानवीय जीवन-स्थितियों के विरुद्ध एक क्रान्तिकारी हस्तक्षेप।
ISBN: 9788119028849
Pages: 189
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: बिगड़ते पर्यावरण की समस्या आज मनुष्य के लिए भूख के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। भूख जिस तरह एक देह के अस्तित्व के लिए आसन्न ख़तरा होती है, उसी तरह पर्यावरण-विनाश सृष्टि के अस्तित्व के लिए होता है। एक-एक व्यक्ति के रूप में जी रहे हम लोगों की आँखों से वह ख़तरा भले ही इतने स्पष्ट और ठोस रूप में न दिखाई देता हो, और भले ही हम बीच-बीच में प्रकृति द्वारा दी जानेवाली चेतावनियों को नज़रअन्दाज़ करने की ढीठता भी जुटा लेते हों, लेकिन जल, ज़मीन, हवा और हरियाली का सतत क्षरित होता जीवन उन निगाहों से अनचीन्हा नहीं रह जाता जो प्रस्तुत उल्लास की झीनी चदरिया के पार दूर क्षितिज के धुँधलके में लिखी जा रही नाश-विनाश की पटकथाओं की पंक्तियाँ पढ़ लेती हैं, यानी कवियों और रचनाशील हृदयों की निगाहें। यह पुस्तक प्रकृति और कवि के इसी अपने, और समाज की रिश्तेदारियों के धोखादेह प्रपंच से परे, उनके निहायत पवित्र और निजी रिश्ते का दस्तावेज़ है। पाठकगण इस किताब को सरकारों और संस्थाओं के रस्मी पर्यावरण-प्रेम और शुष्क रुदन के काव्यानुवाद के रूप में न लें। यह समष्टि-मन के रचनाकुल और ईमानदार स्नायुओं की पीड़ाजनित प्रतिक्रियाओं का संकलन है जिसमें हिन्दी के नए-पुराने, वरिष्ठ, श्रेष्ठ और सजग रचनाकारों ने प्रकृति के साथ अपनी सम्बन्ध-यात्रा के सबसे चिन्तित क्षणों को वाणी दी है। संग्रह में एक सौ एक समकालीन कविताएँ और पैंतालीस कवि शामिल हैं। कौन छोटा है, कौन बड़ा है, यह सवाल अप्रासंगिक है। क्योंकि कविता का विषय महत्त्वपूर्ण है, समस्याओं की भयंकरता प्रासंगिक है। एक ही त्रासदपूर्ण मुद्दा सबके लिए महत्त्वपूर्ण है। सब में आशंकाएँ हैं तो साथ ही आशाएँ भी हैं। प्रकृति की आसन्न मृत्यु पर चीख़ने के बजाय प्रतिरोध खड़ा करना ये रचनाकार अपना दायित्व समझते हैं।
Aakash Dharti Ko Khatkhataata Hai
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
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Description:
विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कविता के संसार में उन थोड़े से ऐसे कवियों में शुमार हैं जिन्होंने समकालीन कविता की दिशा और दृष्टि को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया है। उनकी इस हैसियत को हिन्दी में लगभग सभी कवियों ने स्वीकार किया है।
काव्याभिव्यक्ति में मित कथनों का जितना सार्थक प्रयोग वे करते हैं, उतना शमशेर ही कर पाते थे। शब्दों को कम से कम ख़र्च करके कैसे अर्थ के भंडार को समेटा जाए इसे सीखने के लिए विनोद कुमार शुक्ल की कविता काम की चीज़ है।
उनकी कविता नितांत समसामयिक होकर भी समयातीत लगती है। वह पीछे भी देखती है और आगे भी, पर उल्लेखनीय बात यह है कि वह अपने समय में धँसी होने के बावजूद अपने समय में फँसती नहीं है। उनके काव्यबोध में जो अचूक क़िस्म की पारदर्शी सूक्ष्मता है, वह कई लोगों को जटिलता, रूपवाद, कलावाद का अवतार लगती है लेकिन रूपवादी कविता है नहीं। काव्य-प्रयोगों के लिए उनसे बड़ा कवि आज कम से कम हिन्दी में दिखाई नहीं देता
वे विचारधारा के पुल से होकर रास्ता तय करने वाले कवि नहीं हैं, बल्कि वे कविता की नदी को ख़ुद तैर कर पार करने वाले कवि हैं। कम से कम उनके लम्बे कवि-कर्म का संघर्ष यही प्रतिमान हमारे सामने रखता है। वे हिन्दी कविता के संसार में उन थोड़े से कवियों में हैं जिन्होंने चालू मुहावरे को तोड़कर अपनी कविता में संवेदना और काव्य-शिल्प के लिए अनोखा आयाम चुना है। अपनी काव्यभाषा के चुनाव में वे जितने विरल, संयमी और जागरूक कवि हैं, उतने कम ही कवि रहे हैं। यह उनकी चुनिन्दा कविताओं का संकलन है।
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