Lahron Ke Rajhans

Lahron Ke Rajhans

Authors(s):

Mohan Rakesh

Language:

Hindi

Pages:

132

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

264 mins

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Book Description

‘लहरों के राजहंस’ में एक ऐसे कथानक का नाटकीय पुनराख्यान है जिसमें सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शान्ति के पारस्परिक विरोध तथा उनके बीच खड़े हुए व्यक्ति के द्वारा निर्णय लेने का अनिवार्य द्वन्द्व निहित है। इस द्वन्द्व का एक दूसरा पक्ष स्त्री और पुरुष के पारस्परिक सम्बन्धों का अन्तर्विरोध है। जीवन के प्रेम और श्रेय के बीच एक कृत्रिम और आरोपित द्वन्द्व है, जिसके कारण व्यक्ति के लिए चुनाव कठिन हो जाता है और उसे चुनाव करने की स्वतंत्रता भी नहीं रह जाती। चुनाव की यातना ही इस नाटक का कथा-बीज और उसका केन्द्र-बिन्दु है। धर्म-भावनाओं से प्रेरित इस कथानक में उलझे हुए ऐसे ही अनेक प्रश्नों का नए भाव-बोध के परिवेश में परीक्षण किया गया है। सुन्दरी के रूपपाश में बँधे हुए अनिश्चित, अस्थिर और संशयी मतवाले नन्द की यही स्थिति होनी थी कि नाटक का अन्त होते-होते उसके हाथों में भिक्षापात्र होता और धर्म-दीक्षा में उसके केश काट दिए जाते।</p> <p>‘लहरों के राजहंस’ के कथानक को आधुनिक जीवन के भावबोध का जो संवेदन दिया गया है, वह इस ऐतिहासिक कथानक को रचनात्मक स्तर पर महत्त्वपूर्ण बनाता है। वास्तव में, ऐतिहासिक कथानकों के आधार पर श्रेष्ठ और सशक्त नाटकों की रचना तभी हो सकती है, जब नाटककार ऐतिहासिक पात्रों और कथा-स्थितियों को ‘अनैतिहासिक’ और ‘युगीन’ बना दे तथा कथा के अन्तर्द्वन्द्व को आधुनिक</p> <p>अर्थ-व्यंजना प्रदान कर दे।</p> <p>सभी देशों के नाटक-साहित्य के इतिहास में विभिन्न युगों में जब भी श्रेष्ठ ऐतिहासिक नाटकों की रचना हुई है, तब नाटककारों ने प्राचीन कथानकों को नई दृष्टि से देखा है और उनको नई अर्थ-व्यंजनाएँ दी हैं। उसी परम्परा में मोहन राकेश का यह नाटक भी है जो अध्ययन-कक्षों तथा रंगशालाओं में पाठकों और दर्शकों, दोनों को रस देता है।

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