The Life and Times of Jayaprakash Narayan
Author:
Pankaj KishorPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
Among some of the most amazingly inspiring personality is India’s great freedom fighter, Loknayak Jayaprakash Narayan. He is someone who will continue to inspire generations to come as a man who wielded no power or authority, but made the most powerful people bow before him. In fact, the whole world saluted him for his honesty, integrity, compassion and frankness.
This biography of Loknayak Jayaprakash Narayan makes interesting reading for the young and the old alike as it awakens our conscience, forcing us into soul-searching as citizens of the world’s most vibrant democracy.
ISBN: 9788184302202
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस पुस्तक में जीवनी, कला-विश्लेषण, संस्मरण और स्मृतियों का बहुत मानवीय और रोचक गड्डमड्ड है—उसमें कई दृष्टिकोण भी उभरते हैं जो हमें शंखो दा को समझने में कई तरह से मददगार हैं। इस समय व्यापक विस्मृति और दुर्व्याख्या का जो दौर चल रहा है, उसमें एक बड़े कलाकार को इस तरह से याद करना उस विस्मृति को प्रतिरोध देना भी है। कला हमेशा जीवन के प्रति कृतज्ञ होती है और कलाकार अपने दिशा दिखानेवाले पुरखों के प्रति। शंखो चौधुरी के प्रति यह पुस्तक कृतज्ञता-ज्ञापन है और वह उसकी प्रासंगिकता को और प्रखर करता है। रज़ा पुस्तक माला में इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।
—अशोक वाजपेयी
Hum Nahin Change Bura Na Koy
- Author Name:
Surendra Mohan Pathak
- Book Type:

- Description: लोकप्रिय साहित्य हिन्दी अकादमिक जगत के लिए मूल्यांकन की चीज़ कभी नहीं रहा, लेकिन हिन्दी के शिक्षित समाज का बड़ा तबका उसके ही असर में रहता आया है। हमें लोकप्रिय साहित्य का बाज़ार तो दिखता है, उसकी आन्तरिक दुनिया की बनावट नहीं दिखती। ऐसे में लोकप्रिय लेखन के एक बड़े नाम सुरेन्द्र मोहन पाठक अपनी आत्मकथा लिखकर बहस और मूल्यांकन की एक नई ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनका अपना जीवन है भी ऐसा जिसके बारे में दूसरों को दिलचस्पी हो। कान में सुनने की मशीन, आँखों पर मोटे लेंस का चश्मा लगाए, नौकरी करते हुए, तीन सौ से अधिक सफल उपन्यास लिखनेवाले पाठक जी अपने ही रचे किसी अमर किरदार जैसे आकर्षक व्यक्तित्व वाले हैं। लेखन के तौर-तरीक़े और ख़ुद के लिए तय किया हुआ अनुशासन अचरजकारी। लाखों पाठकों की रुचि को समझना, उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के दबाव को धत्ता बताते हुए, उनके दिमाग़ पर क़ब्ज़ा जमाना—यह कोई मामूली बात नहीं है। इन सब बातों को समझने में एक औज़ार का काम कर सकती है यह आत्मकथा—'हम नहीं चंगे बुरा न कोय’। यह सुरेन्द्र मोहन पाठक के लेखकीय जीवन के सबसे हलचल वाले दिनों की कथा है। यह उनके समय के पल्प फ़िक्शन इंडस्ट्री को जानने के लिए भी ज़रूरी किताब है।
Anya Se Ananya
- Author Name:
Prabha Khetan
- Book Type:

- Description: भारतीय-साहित्य की विलक्षण बुद्धिजीवी डॉ. प्रभा खेतान दर्शन, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, विश्व-बाज़ार और उद्योग-जगत की गहरी जानकार थीं और सबसे बढ़कर थीं—सक्रिय स्त्रीवादी लेखिका। उन्होंने विश्व के लगभग सारे स्त्रीवादी लेखन को घोट ही नहीं डाला, बल्कि अपने समाज में उपनिवेशित स्त्री के शोषण, मनोविज्ञान, मुक्ति के संघर्ष पर विचारोत्तेजक लेखन भी किया। और उसी क्रम में उन्होंने लिखी यह आत्मकथा—‘अन्या से अन्यया’। ‘हंस’ में धारावाहिक रूप से प्रकाशित इस आत्मकथा को जहाँ एक बोल्ड और निर्भीक आत्मस्वीकृति की साहसिक गाथा के रूप में अकुंठ प्रशंसाएँ मिलीं, वहीं बेशर्म और निर्लज्ज स्त्री द्वारा अपने आपको चौराहे पर नंगा करने की कुत्सित बेशर्मी का नाम भी दिया गया...। महिला उद्योगपति प्रभा खेतान का यही दुस्साहस क्या कम था कि उन्होंने मारवाड़ी पुरुषों की दुनिया में घुसपैठ की। कलकत्ता चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स की अध्यक्ष बनीं। एक के बाद एक उपन्यास और वैचारिक पुस्तकों का लेखन किया। वही प्रभा ‘अन्या से अनन्या’ में एक अविवाहित स्त्री, विवाहित डॉक्टर के धुआँधार प्रेम में पागल है। दीवानगी की इस हद को पाठक क्या कहेंगे कि प्रभा डॉ. सर्राफ़ की इच्छानुसार गर्भपात कराती है और खुलकर अपने आपको डॉ. सर्राफ़ की प्रेमिका घोषित करती है। स्वयं एक अत्यन्त सफल, सम्पन्न और दृढ़ संकल्पी महिला परम्परागत ‘रखैल’ का साँचा तोड़ती है, क्योंकि वह डॉ. सर्राफ़ पर आश्रित नहीं है। वह भावनात्मक निर्भरता की खोज में एक असुरक्षित निहायत रूढ़िग्रस्त परिवार की युवती है। प्रभा जानती थीं कि वह व्यक्तिगत रूप से ही असुरक्षित नहीं है, बल्कि जिस समाज का हिस्सा है, वह भी आर्थिक और राजनैतिक रूप से उतना ही असुरक्षित उद्वेलित है। तत्कालीन बंगाल का सारा युवा-वर्ग इस असुरक्षा के विरुद्ध संघर्ष में कूद पड़ा है और प्रभा अपनी इस असुरक्षा की यातना को निहायत निजी धरातल पर समझना चाह रही हैं...एक तूफ़ानी प्यार में डूबकर...या एक बुर्जुआ प्यार से मुक्त होने की यातना जीती हुई...। इस तरह देखें तो प्रभा खेतान की यह आत्मकथा अपनी ईमानदारी के अनेक स्तरों पर एक निजी राजनैतिक दस्तावेज़ है—बेहद बेबाक, वर्जनाहीन और उत्तेजक...।
Raag-Anurag
- Author Name:
Ravishankar
- Book Type:

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Description:
रज़ा फ़ाउण्डेशन ने हिन्दी लेखकों और कलाकारों की सुशोधित विस्तृत जीवनियाँ लिखाने और प्रकाशित कराने का प्रोजेक्ट बनाया है और उस पर काम चल रहा है : कई जीवनियाँ इस क्रम में प्रकाशित हो गयी हैं। भारत के मूर्धन्य कलाकारों में से बहुत कम ने अपनी आत्मकथाएँ लिखी हैं। इनमें चित्रकार, संगीतकार, रंगकर्मी, नर्तक आदि शामिल हैं। पुस्तकमाला में ऐसी आत्मकथाओं को हम हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते रहे हैं। पण्डित रविशंकर की यह अधूरी आत्मकथा, बाङ्ला से अनूदित, प्रस्तुत करते हमें प्रसन्नता है। एक महान् संगीतकार होने के साथ-साथ उनका बहुत बड़ा योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व संगीत में मान्यता और उचित स्थान दिलाने का बेहद सर्जनात्मक प्रयत्न रहा है।
—अशोक वाजपेयी
Stephen Hawking
- Author Name:
Mahesh Sharma
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- Description: स्टीफन हॉकिंग—महेश शर्माहॉकिंग का सहायक उनकी व्हीलचेयर धकेलते हुए स्टेज पर लाया। आवाज का सिंथेसाइजर लाउडस्पीकर से जोड़ा गया। व्हीलचेयर के साथ एक प्रकार का कंप्यूटर लगाया गया है। उसके माध्यम से वे स्थिर बैठे हुए व्याख्यान देने लगते हैं। व्याख्यान शुरू होने पर वे अपनी पलकें हिलाते हैं-चेहरे पर मिश्रित हास्य। दो नर्स़ें उनकी देखभाल के लिए हैं। आवश्यकता पड़ने पर वे वहाँ आकर उनकी सहायता करती हैं। प्रार्थना की जाती है कि व्याख्यान के पश्चात् श्रोतागण प्रश्न एवं जिज्ञासाएँ पूछें। व्याख्यान के दौरान उनकी लार साफ करना, बाल पीछे करना आदि काम सहायक करते रहते हैं।व्याख्यान के दौरान कभी-कभी मजेदार प्रंग पैदा होते रहते हैं। एक बार फर्मोलैब में उनका व्याख्यान था। आमंत्रितों में एडवर्ड कोलबा नामक एक भीमकाय मजबूत आदमी भी था। हॉकिंग का व्याख्यान निचले तल के हॉल में था। वहाँ जाने के लिए लिफ्ट नहीं थी और न ही रैंप था। उसने आगे बढ़कर झट से हॉकिंग को सहज रूप से अपने दोनों हाथों पर उठाया और बिना किसी की परवाह किए उस हलके व्यक्ति को लेकर जल्दी-जल्दी चलने लगा।एक बार व्याख्यान के लिए वे देर से पहुँचे, क्योंकि निकट के हॉल में पॉप संगीत की महफिल जम रही थी और उसमें सम्मिलित होने का मोह वे रोक न सके।
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