Sanskar Ramayan
Author:
Dr. Vinod Bala ArunPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
'संस्कार रामायण’ अपने ढंग की अनोखी कृति है। इसमें आयोजनों और अवसरों के अनुरूप पाठ करने के लिए रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंगों का चयन किया गया है। इससे सत्संगों में अवसर के अनुरूप विषयवस्तु निर्धारित करने में सहायता मिल सकती है।
बहुत दिनों से जीवन के सुख-दुःख में अपने घरों में रामायण सत्संग आयोजित करनेवाले भक्त और रामायण-पाठ करनेवाले व्यक्ति एवं संगठन यह जानना चाहते थे कि किस अवसर पर किस प्रसंग का पाठ किया जाए। रामायण सेंटर ने इस पर गंभीरता से विचार किया। ‘संस्कार रामायण’ का प्रकाशन इसी का फल है।
रामायण प्रेमियों की आकांक्षा की संपूर्ति के लिए जीवन के सुख-दुःख को सात मुख्य शीर्षकों में बाँटा गया है। जन्म और जन्मदिन, विद्यारंभ, विवाह और विवाह की वर्षगाँठ, गृह-प्रवेश, शुभ अवसर, संकट-आपदा तथा मृत्यु और पुण्यतिथि—इन्हीं के भीतर प्रायः जीवन की सारी गतिविधियाँ समाहित होती हैं।
‘संस्कार रामायण’ अवसर के अनुरूप रामायण के प्रसंगों के पाठ की सुविधा प्रदान करेगी और जीवन को संस्कारित करने की प्रेरणा भी देगी। हर रामायण-प्रेमी के पास ‘संस्कार रामायण’ की एक प्रति अवश्य होनी चाहिए।
ISBN: 9789350488713
Pages: 328
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "भारतीय पौराणिक साहित्य-भंडार में एक-से-एक अप्रतिम बहुमूल्य रत्न भरे पड़े हैं। अष्टावक्र गीता अध्यात्म का शिरोमणि गं्रथ है। इसकी तुलना किसी अन्य गं्रथ से नहीं की जा सकती। अष्टावक्रजी बुद्धपुरुष थे, जिनका नाम अध्यात्म-जगत् में आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। कहा जाता है कि जब वे अपनी माता के गर्भ में थे, उस समय उनके पिताजी वेद-पाठ कर रहे थे, तब उन्होंने गर्भ से ही पिता को टोक दिया था—‘शास्त्रों में ज्ञान कहाँ है? ज्ञान तो स्वयं के भीतर है! सत्य शास्त्रों में नहीं, स्वयं में है।’ यह सुनकर पिता ने गर्भस्थ शिशु को शाप दे दिया, ‘तू आठ अंगों से टेढ़ा-मेढ़ा एवं कुरूप होगा।’ इसीलिए उनका नाम ‘अष्टावक्र’ पड़ा। ‘अष्टावक्र गीता’ में अष्टावक्रजी के एक-से-एक अनूठे वक्तव्य हैं। ये कोई सैद्धांतिक वक्तव्य नहीं हैं, बल्कि प्रयोगसिद्ध वैज्ञानिक सत्य हैं, जिनको उन्होंने विदेह जनक पर प्रयोग करके सत्य सिद्ध कर दिखाया था। राजा जनक ने बारह वर्षीय अष्टावक्रजी को अपने सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उनके चरणों में बैठकर शिष्य-भाव से अपनी जिज्ञासाओं का शमन कराया। यही शंका-समाधान अष्टावक्र संवाद रूप में ‘अष्टावक्र गीता’ में समाहित है। ज्ञान-पिपासु एवं अध्यात्म-जिज्ञासु पाठकों के लिए एक श्रेष्ठ, पठनीय एवं संग्रहणीय आध्यात्मिक ग्रंथ। "
Sufiwad Ke Adhyatmik Ayam
- Author Name:
Zafar Raza
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Description:
हिन्दी में तसव्वु़फ या सूफ़ीमत पर दो प्रामाणिक पुस्तकें छपी हैं। एक चन्द्रबली पाण्डेय की, दूसरी डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी की। इस्लाम धर्म के अनुयायी विद्वान् की हिन्दी में यह पहली पुस्तक है—सू़फ़ीवाद के आध्यामिक आयाम।
इस पुस्तक में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ सू़फ़ी सिद्धान्तों का बहुत ही स्पष्ट और प्रामाणिक विवेचन है। प्रोफ़ेसर जाफ़र रज़ा ने अपने प्रतिपादन की पुष्टि क़ुर्आन के उद्धरणों से की है। इसके साथ-साथ विभिन्न सू़फ़ी सम्प्रदायों का ऐतिहासिक, दार्शनिक और साधनापरक विवेचन भी इसमें है।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पूर्ववर्ती मूल अरबी-फ़ारसी विवेचकों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है। विशेष रूप से भारत में प्रसिद्ध सू़फ़ी-फ़कीर सम्प्रदायों और उनके प्रमुख हस्ताक्षरों के बारे में बहुत ही प्रामाणिक विवेचन है। प्रोफ़ेसर जाफ़र ऱजा ने अत्यन्त निष्पक्ष होकर सूफ़ीवाद का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है।
सूफ़ी-दर्शन इस्लाम को मथ करके निकला मक्खन है। यह इस्लाम को प्रतिष्ठा दिलाने में तो सफल हुआ ही है, इसकी पृष्ठभूमि का दिग्दर्शन प्रोफ़ेसर जाफ़र ऱजा ने अच्छी तरह प्रस्तुत किया है।
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