Samudrantike Novel
Author:
Dhruv BhattPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Contemporary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
बंगाली के यहाँ हम बहुत देर तक रुके रहे। बंगाली ने गीत गाए। मुखिया ने भी भजन गाए। बारिश नहीं हुई तो क्या होगा, ऐसी चिंता व्यक्त की! तब बाबा बोला, ‘‘नहीं, बरसात जरूर आवेगी, जोरों से आवेगी।’’
रात होने को आई, तब हम उठे। बाबा नीचे तक हमें छोड़ने आया। फिर कहने लगा, ‘‘देख मुखी, एक बात मान, तेरे गाँव में जो बच्चे हों, उन सबको थोड़े दिन हवेली भेज दे और मवेशियों को बाँधना नहीं, ऐसे ही खुले छोड़ देना।’’
‘‘क्यों?’’ एक बाबा ऐसी नई व्यवस्था करने को कहे, यह मेरे लिए कुछ अजीब था।
‘‘क्यों, छोकरे लोग बँगले में रहेगा तो तेरे कु तकलीफ है क्या?’’
‘‘नहीं, पर गाय-बैलों को क्यों नहीं बाँधना?’’ मैंने पूछा।
‘‘सुन, डराता नहीं हूँ, पर ये अपने अनंत महाराज हैं न, ये दरिया, दो-तीन दिन से ठीक से बात नहीं करते। लगता है महाराज शायद तूफान कर देंगे।’’
—इसी उपन्यास से
पारंपरिक, अविज्ञान-सम्मत, आस्था प्रधान समाज और मुनाफाखोर निंदक समाज के बीच के गतिरोध और संघर्ष को संतुलित करता प्रभावी उपन्यास। इसमें लोक है, लोकनायक हैं, जो उपन्यास के ताने-बाने को बुनते हैं। एक प्रभावी, पठनीय उपन्यास।
ISBN: 9789386054722
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: बेहद सहज और सरल ढंग से क़िस्सागोई की शैली में लिखा गया यह उपन्यास बंगाली समाज के स्वभाव और चरित्र का सच्चा एवं प्रामाणिक चित्र उपस्थित करता है। महानगरीय जीवन की भागमभाग और गहमागहमी से ऊबी–थकी अविवाहित कामकाजी युवती, अरा, जब अपनी बड़ी बहन स्मृति के घर बिलासपुर छुट्टियाँ बिताने पहुँचती है तो उसके सामने धीरे–धीरे जीवन का सर्वथा नया अर्थ खुलता चला जाता है। उसके अभावग्रस्त एकाकी जीवन की थकान दूर होती है और वह जीवन–राग एवं प्रकृति–राग से लबरेज तरोताज़ा होकर कलकत्ता लौटती है। हर जीवन महाजीवन है और ढोने के लिए नहीं, जीने के लिए है—जीवन का यह पाठ अरा को प्रकृति से समृद्ध आदिवासी अंचल छत्तीसगढ़ की गोद में बसे बिलासपुर में मिलता है। महानगरीय जीवन–बोध और प्रकृत आदिवासी जीवन–बोध की टकराहट की अनुगूँज लिए यह छोटी–सी औपन्यासिक कृति एक सूने सितार के तार छेड़ने की तरह है। यह सितार है ‘अरा’ जिसके तार छेड़ता है ‘परदेसिया’ और जिसकी झंकृति पाठक के दिलो–दिमाग़ में देर–देर तक, दूर–दूर तक बनी रहती है। बांग्ला के अग्रिम पंक्ति के कथाकार बुद्धदेव गुहा ने अपनी व्यापक यात्राओं के दौरान पहाड़ों, जंगलों और नदियों को काफ़ी नज़दीक एवं आत्मीयता के साथ देखा है और अपनी रचनाओं के ज़रिए पाठकों में प्रकृति से प्रेम करने की ललक जगाई है। उनके साहित्य में स्त्री–पुरुष प्रेम से लेकर जनसाधारण तक के प्रति रागात्मक सम्बन्धों का विस्तार देखा जा सकता है। यह उपन्यास इस बात की बहुत ही सशक्त तरीक़े से पुष्टि करता है।
Gaon Wala Angrezi School
- Author Name:
Pranjal Saxena
- Book Type:

- Description: गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल एक ऐसी पुस्तक है जिसमें बच्चों से लेकर बड़ों सबके लिए कुछ न कुछ है। एक ऐसी किताब जिसमें कोई बकवास न हो, जिसमें कठिन वाला इतिहास न हो और जिसे पढ़कर कोई उदास न हो। कोई ऐसी किताब जिसे पढ़कर शिक्षा मिले और पता भी न चले कि कुछ सिखाया गया है। जिसे पढ़कर हँसी छूटे और कोई न रूठे। यह पुस्तक गाँव और शहर के बच्चों की सोच को एक पुल प्रदान करती है। हम लोग पिज्जा, बर्गर, टॉयज के लिए अपने पैरेंट्स से डिमांड पर डिमांड किए जाते हैं और न पूरी होने पर मुँह फुलाकर बैठ जाते हैं। लेकिन विलेज के बच्चों को तो कई बार लंच ही नहीं मिल पाता, लंच मिल जाए तो डिनर मिलेगा कि नहीं ये उन्हें नहीं पता। हमारे पेंसिल बॉक्स की जितनी कॉस्ट होती है उतनी कॉस्ट में यहाँ के बच्चे साल भर की स्कूल कॉपीज खरीद लेते हैं। हम ब्रांडेड नोट बुक्स की डिमांड करते हैं और प्रमोद जैसे बच्चों के पास तो स्लीपर्स तक नहीं हैं। जब हम दीपावली पर क्रैकर्स के लिए जिद कर रहे होते हैं उस समय हमसे भी छोटे बच्चे मिट्टी के दिये बना रहे होते हैं ताकि उन्हें बेचकर त्योहार पर तो एक ही दिन में लंच और डिनर दोनों कर सकें। प्रांजल सक्सेना
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