Nirala Rachanawali : Vols. 1-8

Nirala Rachanawali : Vols. 1-8

Language:

Hindi

Pages:

3933

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

7866 mins

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Book Description

निराला “आरम्भ से ही विद्रोही कवि के रूप में हिन्दी में दिखाई पड़े। गतानुगतिकता के प्रति तीव्र विद्रोह उनकी कविताओं में आदि से अन्त तक बना रहा। व्यक्तित्व की जैसी निर्बाध अभिव्यक्ति इनकी रचनाओं में हुई है, वैसी अन्य छायावादी कवियों में नहीं हुई।...सर्वत्र व्यक्तित्व की अत्यन्त पुरुष अभिव्यक्ति ही निराला की कविताओं का प्रधान आकर्षण है। फिर भी विरोधाभास यह है कि निराला में अपने व्यक्तित्व को सबसे अलग करके अभिव्यक्त करने की चेतना सबसे कम है।...यह ध्यान देने की बात है कि निराला जी के आरम्भिक प्रयोग छन्द के बन्धन से मुक्ति पाने का प्रयास है। छन्द के बन्धनों के प्रति विद्रोह करके उन्होंने उस मध्ययुगीन मनोवृत्ति पर ही पहला आघात किया था जो छन्द और कविता को प्राय: समानार्थक समझने लगी थी।...परन्तु निराला जी ने जब छन्दों के प्रति विद्रोह किया तो उनका उद्देश्य छन्द की अनुपयोगिता बताना नहीं था। वे केवल कविता में भावों की—व्यक्तिगत अनुभूति के भावों की—स्वछन्द अभिव्यक्ति को महत्त्व देना चाहते थे। जिसे वे मुक्तछन्द कहते थे, उसमें भी एक प्रकार की झंकार और एक प्रकार का ताल विद्यमान है। परिमल की जिन रचनाओं में वस्तु-व्यंजना की ओर कवि का ध्यान है, उनमें उनका व्यक्तित्व स्पष्ट नहीं हुआ किन्तु ‘तुम और मैं’, ‘जूही की कली’ जैसी कविताओं में उनकी कल्पना उनके आवेगों के साथ होड़ करती है। यही कारण है कि ये कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुई हैं। बड़े कथात्मक प्रयोगों में निराला जी को अधिक सफलता मिली। वे पन्त की तरह अत्यधिक वैयक्तिकतावादी कवि नहीं हैं। बड़े आख्यानों—जैसे काव्य-विषय में उन्हें वस्तु-व्यंजना का भी अवसर मिला है और कल्पना के पंख पसारने का भी मौक़ा मिल जाता है। इसीलिए उनमें निराला अधिक सफल हुए हैं। ‘तुलसीदास’, ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘सरोज-स्मृति’ जैसी कविताएँ उनकी सर्वोत्तम कृतियाँ हैं। इनमें भाषा का <br />अद्भुत प्रवाह पाठक को निरन्तर व्यस्त बनाए रहता है। कल्पना यहाँ आवेगों के सामने फीकी लगती है।”</p> <p>—हजारी प्रसाद द्विवेदी</p> <p>‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘अनामिका’ और ‘तुलसीदास’ नामक काव्यकृतियों को सँजोए हुए रचनावली का यह खंड महाकवि की पूर्ववर्ती काव्य-साधना का सजीव साक्ष्य प्रस्तुत करता है। विचार-समृद्ध भावोद्रेक और सहज उदात्त स्वर निराला-काव्य की विशिष्ट पहचान है और अपनी काव्य-साधना के माध्यम से उन्होंने वस्तुओं एवं घटनाओं के भीतर पैठकर असाधारण रूप से भावात्मक सत्य का सन्धान किया है।

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