Maa Ka Dard Kya Vo Samjhta Hai
Author:
Arun ShouriePublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
एक किताब उन सबके लिए, जिन्हें कष्ट और नुकसान से जूझना पड़ा।
यदि ईश्वर है, जो सबकुछ जानता है, सर्वशक्तिमान है और करुणामय भी है, तो चारों तरफ इतना असहनीय दुःख क्यों?
हमारे धार्मिक शास्त्रों में कष्ट पर सफाई में क्या कहा गया है? क्या वह सफाई जाँच में टिक पाती है?
क्या हमारा अनुभव इस बात को स्वीकार करता है कि ईश्वर है? या फिर दो शैतान— समय और संयोग उन सबका कारण है, जिनसे हमें गुजरना पड़ता है?
दुःख और कष्ट का अनुभव कर चुके अरुण शौरी ने शास्त्रों की अग्नि-परीक्षा ली और फिर हमें बताया कि क्यों अंततः उनका झुकाव बुद्ध की शिक्षा की ओर हुआ। उनकी शिक्षा में हमारे दैनिक जीवन के लिए कौन से संदेश हैं?
ISBN: 9789351868132
Pages: 360
Avg Reading Time: 12 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: पूर्व और पश्चिम के आलोचना सिद्धान्तों के बृहद् विवेचन के लिए ख्यात डॉ. बच्चन सिंह की यह कृति उनकी अपनी कुछ मूल्यवान स्थापनाओं के लिए भी पढ़ी जाती रही है। उनका मानना है कि पाश्चात्य समीक्षा-सिद्धान्तों से हम अपनी समीक्षा-पद्धति का निर्माण नहीं कर सकते, लेकिन उनके सम्यक अध्ययन के बिना हम कुछ नवीन भी नहीं बना सकते। ‘आलोचक और आलोचना’ का उद्देश्य इसी अध्ययन को प्रस्तुत करना है। लेकिन केवल पश्चिमी सिद्धान्तों का अध्ययन नहीं, भारतीय आलोचना-पद्धतियों और अवधारणाओं का भी। वे आरम्भ में ही स्पष्ट करते हैं कि किसी भी रचना को आप बाह्य उपकरणों या फार्मूलों से नहीं समझ सकते, न ही ऐसा करना उपादेय होगा। न तो अलंकारों की गणना को आलोचना कह सकते हैं और न ही सूरदास को पुष्टिमार्गी सिद्ध करना आलोचना है। उनके मुताबिक अपने समय की मानव-स्थितियों के सन्दर्भ में भाषा-संरचना का विश्लेषण करना ही आलोचना का काम है। ऐसी ही आधारभूत मान्यताओं के साथ चलते हुए लेखक ने इस कृति में पश्चिम के प्लेटो, अरस्तू, लोंगिनुस, आई.ए. रिचर्ड्स, क्रोचे आदि के साथ अलंकार, रस, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि भारतीय आलोचना-सिद्धान्तों की सुग्राह्य विवेचना की है जो आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी व आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि के विश्लेषण तक जाती है। साहित्य के अध्येताओं और छात्रों के लिए विशेष रूप से उपयोगी।
Stri Vimarsh Ki Jameen
- Author Name:
Shriprakash Mishra
- Book Type:

- Description: स्त्री-विमर्श यूरोप के लिए चाहे जितना पुराना हो, अध्ययन के स्तर पर भारत के लिए अभी नया क्षेत्र है। इसने पिछली सदी के अन्तिम दो दशकों में जोर पकड़ा है। इस विषय पर जहाँ अंग्रेजी में अच्छी पुस्तकों की भरमार है, हिन्दी में प्रचुर सामग्री उपलब्ध होने के बावजूद एक व्यवस्थित रूप से लिखी पुस्तक शायद ही मिलती हो। उम्मीद है इस कमी को यह पुस्तक 'स्त्री-विमर्श की ज़मीन' पूरी करेगी। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय इसका प्रमाण है। वहाँ पश्चिम में हुए चिन्तन और आन्दोलन के साथ-साथ भारत में हुए चिन्तन, अध्ययन और प्रयास का खुलासा है। इस पुस्तक का पाठक-समाज में भरपूर स्वागत होगा, ऐसी उम्मीद है।
Namvar Sanchayita
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

- Description: यह है हिन्दी के ख्यातिप्राप्त आलोचक डॉ. नामवर सिंह के आलोचनात्मक लेखन का उत्तमांश। नामवर जी हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचक के रूप में स्वीकृत हैं, लेकिन मूलत: वे एक लोकवादी आलोचक हैं। जिस ‘लोक’ को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने काव्य के प्रतिमान के रूप में व्यवहृत किया था और जिसे आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने क्रान्तिकारी अर्थ प्रदान किया, उसे वे मार्क्सवाद की सहायता से ‘वर्ग’ तक ले गए हैं। लेकिन यह उनकी बहुत बड़ी विशेषता है कि उन्होंने मार्क्सवाद को विदेशी, संकीर्ण और रूढ़िबद्ध विचार प्रणाली के रूप में ग्रहण नहीं किया है। सच्चाई तो यह है कि साहित्य के नए मूल्य के लिए उन्होंने प्रत्येक मोड़ पर लोक की तरफ़ देखा है। अकारण नहीं कि हिन्दी में वे साहित्य की दूसरी परम्परा के अन्वेषक हैं, जो उस लोक की परम्परा है, जो असंगतियों और अन्तर्विरोधों का पुंज होते हुए भी विद्रोह की भावना से युक्त होता है। नामवर जी की आलोचना हिन्दी में ग़ैर-अकादमिक आलोचना का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ‘कहानी : नई कहानी’ में उन्होंने व्यक्तिगत निबन्ध की शैली में आलोचना लिखी, जिसमें बात से बात निकलती चलती है और अत्यन्त सार्थक। ‘कविता के नए प्रतिमान’ उनके विलक्षण परम्परा–बोध, गहन विश्लेषण और पारदर्शी अभिव्यक्ति का स्मारक है। इसी तरह ‘दूसरी परम्परा की खोज’ में उन्होंने ऐसी आलोचना प्रस्तुत की है, जो एक तरफ़ अतिशय ज्ञानात्मक है और दूसरी तरफ़ अतिशय संवेदनात्मक। यह सर्जनात्मकता आचार्य द्विवेदी के साहित्य से उनके निजी लगाव के कारण सम्भव हुआ है। नामवर जी की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर प्रकाशित यह संचयिता महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की ओर से हिन्दी जगत् को दिया गया एक उपहार है, जो उसे पिछली शती के उत्तरार्ध के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी आलोचक के अवदान से परिचित कराएगा।
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