Ek Mutthi Ret
Author:
Veena SinhaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
वीणा सिन्हा की कहानियों में स्त्री-लेखन की पहचान बन चुकी सभी विशेषताएँ हैं, फिर भी उनके सरोकारों को सिर्फ़ स्त्री-लेखन के दायरे में रखकर नहीं परखा जा सकता। उनकी लेखनी स्त्री के बहाने समाज के एक बड़े कैनवस पर चलती है। शहरी मध्यवर्ग से लेकर खाँटी ग्रामीण परिवेश तक को उन्होंने समान कौशल के साथ अंकित किया है। इससे भी महत्त्वपूर्ण विशेषता अपने पात्रों के अन्तस में झाँकने की उनकी क्षमता है जिसके चलते छोटे-छोटे कथानक भी बड़े अनुभव-संसार के वाहक बन जाते हैं।
इस संग्रह में शामिल सभी कहानियाँ इस बात की गवाह हैं कि वीणा सिन्हा अपने पात्रों को गढ़ती नहीं हैं, वे अपने आसपास की दुनिया में उनकी तलाश करती हैं और फिर उनके मन की गुफाओं को खोलती हैं। इन कहानियों को समकालीन भारतीय स्त्री के जीवन की प्रतिनिधि कहानियों के रूप में भी चिन्हित किया जा सकता है और भारतीय जीवन-दृष्टि को अभिव्यक्ति देनेवाली गाथाओं के रूप में भी।
ISBN: 9788183616676
Pages: 108
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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असग़र वजाहत उन विरले कहानीकारों में गिने जाते हैं जिन्होंने पूरी तरह अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखते हुए भाषा और शिल्प के सार्थक प्रयोग किए हैं। उनकी कहानियाँ एक ओर आश्वस्त करती हैं कि कहानी की प्रेरणा और आधारशिला सामाजिकता ही हो सकती है तो दूसरी ओर यह भी स्थापित करती हैं कि प्रतिबद्धता के साथ नवीनता, प्रयोगधर्मिता का मेल असंगत नहीं है। ‘मास मीडिया’ से आक्रान्त इस युग में असग़र वजाहत की कहानियाँ बड़ी ज़िम्मेदारी से नई ‘स्पेश’ तलाश कर लेती हैं। राजनीति और मनोरंजन द्वारा मीडिया पर एकाधिकार स्थापित कर लेनेवाले समय में असग़र की कहानियाँ अपनी विशेष भाषा और शिल्प के कारण अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।
‘मैं हिन्दू हूँ’ में असग़र न केवल अपनी गति बनाए हुए हैं बल्कि उनके रचना-संसार में संवेदना के धरातल पर कुछ परिवर्तन भी आए हैं। हास्य, व्यंग्य और खिलंदड़ापन के साथ-साथ अब उनकी कहानी में गहरा अवसाद और दु:ख शामिल हो गया है। बहुआयामी जटिल यथार्थ और आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए वे नए ‘हथियारों’ की तलाश में दिखाई पड़ते हैं।
विषय की विविधता के बावजूद उनकी कहानियों में साम्प्रदायिकता की समस्या तथा सामाजिक अवमूल्यन का अपना अलग महत्त्व है। उनकी कहानियाँ दरअसल उन लोगों की कहानियाँ हैं जो समाज के हाशिये पर पड़े हैं, लेकिन बड़े सामाजिक सन्दर्भों से जुड़ने का जतन करते रहते हैं। इन कहानियों में असग़र कल्पना और फैंटेसी के सम्मिश्रण से एक ऐसी भाव-भूमि की संरचना करते हैं जो कहानी को विस्तार देती है। उनकी कहानियाँ पाठकों से माँग करती हैं कि शब्दों और वाक्यों के समान्तर रचे गए अनकहे संसार की परतें भी खोलते रहें।
रोचकता की तमाम शर्तों पर पूरा उतरते हुए असग़र वजाहत की कहानियाँ गम्भीर विश्लेषणात्मक रवैये की माँग करती हैं।
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