Vigyapan, Bazar Aur Hindi
Author:
Kailash Nath PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
विज्ञापनों का ख़ासा असर शुरुआती दौर में आहिस्ता-आहिस्ता किन्तु कालान्तर में धूम-धड़ाके के साथ भारतीय समाज में गहरे पसर चुका है। साफ़ शब्दों में, तमाम दर्जनों लांछनाओं के बावजूद आज हम विज्ञापनों के जिस मायावी संसार का सामना कर रहे हैं, उससे बचना हमारे लिए मुश्किल हो गया है। एक ओर अभिव्यक्ति के अधिकांश मंच-मचान और माध्यमों से इसका अटूट रिश्ता स्थापित हो चुका है तो दूसरी ओर यह सम्प्रेषण की मुकम्मल, पुख्ता और आकर्षक विधा और माध्यम तो बन ही गया है। अब यह व्यावसायिक शक्ति, विक्रय कला की प्रणाली, लोकसेवा, घोषणा, उपभोक्ता के लिए सूचना और सुझाव, व्यावसायिक ज़रिया और क्रय-शक्ति के संवर्धक के रूप में अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है।</p>
<p>विज्ञापनों के बिना, बिलाशक बाज़ार चल नहीं सकता। बाज़ार को यह सुसम्पन्न और लुभावना बनाता है, उसे सजाता और साधता है। बिना इसके मीडिया के सामने अस्तिव का संकट पैदा हो सकता है। इसने भाषा, संस्कृति के साथ जीवन की कई चीज़ों को बदल दिया है।
ISBN: 9789388211680
Pages: 410
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पेड न्यूज़ वर्तमान मीडिया विमर्श का सबसे चर्चित विषय है। ख़बरें पहले भी बिकती थीं। सरकारों और नेताओं से लेकर कम्पनियाँ और फ़िल्में बनानेवाले तक ख़बरें ख़रीदते रहे हैं। न्यूज़ के स्पेस में विज्ञापन की घुसपैठ नई नहीं है। बदलाव सिर्फ़ इतना है कि पहले खेल पर्दे के पीछे था, अब मीडिया अपना माल दुकान खोलकर और रेट कार्ड लगाकर बेचने लगा है। विलेन के रूप में किसी ख़ास मीडिया हाउस को चिह्नित करना काफ़ी नहीं है। सारा कॉरपोरेट मीडिया ही बाज़ार में बिकने के लिए खड़ा है। समाचार को लेकर जिस पवित्रता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और ईमानदारी की शास्त्रीय कल्पना है, उसका विखंडन हम सब अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं। मीडिया छवि बनाता और बिगाड़ता है। इस ताक़त के बावजूद भारतीय मीडिया अपनी ही छवि का नाश होना नहीं रोक सका। देखते–ही–देखते पत्रकार आदरणीय नहीं रहे। लोकतंत्र का चैथा खम्भा आज धूल–धूसरित गिरा पड़ा है। मीडिया की बन्द मुट्ठी क्या खुली, एक मूर्ति टूटकर बिखर गई। यह पुस्तक इसी विखंडन को दर्ज करने की कोशिश है।
देश–काल की बड़ी समस्याओं पर लिखी गई पुस्तकों में आम तौर पर समाधान की भी बात होती है। समस्या का विश्लेषण करने के साथ ही अक्सर यह भी बताया जाता है कि समाधान का रास्ता किस ओर है। इस मायने में यह पुस्तक आपको निराश करेगी। हाल के वर्षों में जनसंचार के क्षेत्र के सबसे विवादित और चर्चित विषय पेड न्यूज़ को केन्द्र में रखकर लिखी गई यह पुस्तक समस्या का कोई समान नहीं सुझाती ।
पुस्तक यह समझने की कोशिश भर है कि पेड न्यूज़ ख़ुद एक बीमारी है, या फिर किसी बड़ी और गम्भीर बीमारी का लक्षण मात्र। पुस्तक में मीडिया अर्थशास्त्र और व्यवसाय की समीक्षा के ज़रिए यह बताने की कोशिश की गई है कि अपनी वर्तमान संरचना की वजह से मीडिया के लिए ख़बरें बेचना अस्वाभाविक नहीं है। मीडिया के लिए कमाई के मुक़ाबले छवि की क़ुर्बानी कोई बड़ी क़ीमत नहीं है।
Hindi Patrakarita : Ek Yatra
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

- Description: अरसे तक ‘राष्ट्रीय मीडिया’ मानी जानेवाली अंग्रेजी मीडिया के वर्चस्व को, अपने व्यापक जमीनी जुड़ाव की बदौलत किनारे कर, देश के कोने-कोने तक पहुँच बना चुकी हिन्दी मीडिया का यह ऐतिहासिक सफर अत्यन्त चुनौतीपूर्ण रहा है, जिसका ब्योरा मृणाल पाण्डे ने इस किताब में दर्ज किया है। इसमें औपनिवेशिक काल में बढ़ती राष्ट्रीय भावना से उपजे अखबार और अंग्रेजी की अधीनता से लेकर, आजादी के बाद के दौर में विज्ञापन और निजी कॉरपोरेटों की बढ़ती मौजूदगी से आए उन बदलावों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है जिन्होंने पत्रकारिता का परिदृश्य आमूल बदल दिया। आगे डिजीटलीकरण, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बढ़ते प्रभावों और विज्ञापनों पर भारी निर्भरता ने बदलावों को और तेज किया। और अब, राजनीति, कारपोरेट और मीडिया के बीच स्पष्ट किन्तु जटिल रिश्तों की छाया में यह सवाल सामने है कि एक समय भारतीय लोकतंत्र को आगे बढ़ाने का जरिया बनी हिन्दी मीडिया आज हमारे संविधान प्रदत्त सूचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक को आगे बढ़ा पाने में किस हद तक सक्षम है? जरूरी जानकारियों से भरी यह किताब पत्रकारिता के छात्रों, प्रोफेसरों और मीडियाकर्मियों के साथ-साथ उन सबके लिए एक विचारोत्तेजक पाठ है जो मीडिया और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास, वर्तमान और भविष्य में दिलचस्पी रखते हैं।
Chand : Phansi Ank
- Author Name:
Nareshchandra Chaturvedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Hindi Patrakarita Samvad Aur Vimarsh
- Author Name:
Kailash Nath Pandey
- Book Type:

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Description:
कैलाश नाथ पाण्डेय की यह पुस्तक हिन्दी-पत्रकारिता के विविध आयामों—विशेषकर उसके इतिहास और विकास को जिस तरह विषय की समग्रता और विस्तार से प्रस्तुत करती है; वैसा कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। उन्होंने पत्रकारिता से जुड़े हर तथ्य और जानकारी को एक पर्यटनशील अन्वेषक और अध्येता की तरह इस प्रकार संयोजित किया है कि यह पुस्तक एक साथ ही पत्रकारिता का विश्व-कोश, शास्त्र, विज्ञान और इतिहास-ग्रन्थ बन गई है।
अपनी इस पुस्तक में लेखक ने न सिर्फ़ पत्रकारिता से सम्बन्धित तथ्यों-सत्यों, सूचनाओं और ऐतिहासिक स्मृतियों को संकलित किया है, बल्कि अपनी सरल, काव्यात्मक और सम्प्रेषणीय शैली में पत्रकारिता से जुड़े गरिष्ठ, क्लिष्ट और दुरूह ज्ञान को अत्यन्त बोधगम्य, सुपाच्य और सर्वसुलभ किया है। पाँच पर्वों एवं अनेक भागों में विभाजित यह पुस्तक पत्रकारिता के विविध रूप-प्रकारों से आरम्भ होकर उसके अस्तित्व तथा सृजन के सभी स्तरों और चरणों की विस्तृत पड़ताल करती है। हिन्दी पत्रकारिता के वर्तमान और इतिहास से लेकर पत्रकारिता के वैश्विक परिदृश्य तक; मुद्रित पत्रकारिता से लेकर मुद्रण-शिल्प-विज्ञान के तकनीकी पक्षों—अक्षर-संयोजन के शुद्धीकरण (प्रूफ़ रीडिंग), पृष्ठ-सज्जा तक; समाचार-लेखन और रचना-व्यवहार के सभी पहलुओं जैसे—प्रेषण, प्रस्तुति, वितरण और प्रबन्धन तक को लेखक ने पूरी सूक्ष्मता, सजीवता और प्रामाणिकता के साथ समेटा है।
समाचार-पत्र लेखन से सम्बन्धित पत्रकारिता की सभी विधाओं पर प्रकाश डालते हुए प्रेस-आयोग, भारतीय प्रेस-परिषद्, प्रसार भारती जैसे संगठनात्मक एवं संवैधानिक निकायों से लेकर नए-पुराने मीडिया-क़ानूनों तथा संवैधानिक प्रावधानों तक इस पुस्तक का फलक इतना अधिक समाहारी और विस्तृत है कि इसे पत्रकारिता सम्बन्धी ज्ञान का विश्व-कोश ही कहना उचित होगा। यह पुस्तक पत्रकारिता के जिज्ञासु, अध्येता एवं विद्यार्थी सभी के लिए एकल समाधान होने का दावा कर सकती है।
—राम प्रकाश कुशवाह
Jansanchar Madhyam Aur Vishesh Lekhan (Swaroop Aur Prakar)
- Author Name:
Niranjan Sahay
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Description:
आज हम ऐसे दौर में हैं जब पलक झपकते हम हजारों मील दूर बैठे परिचित से चेहरा देखते हुए बात कर सकते हैं, जिसे सम्भव किया है इंटरनेट और सूचना क्रान्ति के नूतन आविष्कार 'वीडियो कॉल' ने, जिसमें डाटा एक सेकेंड से भी कम समय में वह दूरी तय कर लेता है।
संचार के इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण पड़ाव आए हैं। हमने बोलने के साथ-साथ गाना सीखा, विभिन्न वाद्य यंत्र बनाए एवं संगीत की रचना की। पहले पत्तों पर लिखना सीखा और फिर काग़ज़ का निर्माण हुआ, जिससे लिखे गए को संरक्षित रखना सम्भव हुआ। पन्द्रहवीं सदी में छापेखाने के आविष्कार ने वह रास्ता दिखाया, जिससे अखबार और किताब लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँच सकें। टेलीग्राफ की तारों से कोई भी लिखित सन्देश चन्द मिनटों में अपनी मंजिल तक पहुँचने लगा। टेलीफोन से हम एक-दूसरे से एक ही समय पर दूर बैठकर बात करने में सक्षम हुए।
हजारों वर्षों के इस तकनीकी कालक्रम में जो एक चीज समान रही है वह है—अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की आवश्यकता। आदि मानव इशारों से एक-दूजे को खतरे की चेतावनी देते थे, तो हम आज विभिन्न प्रयोजनों के लिए लिखित से लेकर वीडियो सन्देश और कॉन्फ्रेंसिंग तक कर लेते हैं। संचार अपने विचारों और जरूरतों को इसी तरह दूसरों तक पहुँचाने का काम है।
संचारशास्त्र के जाने-माने प्रणेता हैरॉल्ड लैसवेल के अनुसार, संचार प्रक्रिया का सार है कि किसने किससे किस माध्यम द्वारा क्या कहा और उसका (यानी कहे गए का) क्या प्रभाव पड़ा? यह पुस्तक संचार, जनसंचार और उनके विभिन्न पहलुओं की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करती है।
Media Ki Badalti Bhasha
- Author Name:
Dr. Ajay Kumar Singh
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- Description: हिन्दी भाषा का जो स्वरूप आज हमारे सामने है, उसके निर्माण में लगभग एक हज़ार साल लगे हैं और हम दावे के साथ यह कहने की स्थिति में अब भी नहीं हैं कि यह स्वरूप आख़िरी या स्थिर है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति के कारण मीडिया की हिन्दी भाषा के स्वरूप में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। आज हमें ऐसी हिन्दी भाषा की आवश्यकता है जो संस्कृत शब्दों से अलंकृत भी हो और अन्यान्य देशी-विदेशी भाषाओं के सरल, सहज और प्रचलित शब्दों से समृद्ध हो। पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यक्तियों एवं पत्रकारिता का प्रशिक्षण ले रहे विद्यार्थियों को भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक में मीडिया की बदलती हिन्दी भाषा का विश्लेषण कर ऐसी हिन्दी भाषा को स्थापित करने का प्रयास किया गया है, जो प्रौद्योगिकी के साथ मिलकर चले और आम जनमानस की भाषा बन सके।
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