Reporter On The Ground
Author:
Parimal KumarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
ग्राउंड रिपोर्टिंग पत्रकारिता की बुनियाद है। साफ़-सुथरी और तथ्यपरक रिपोर्ट के बिना ऐसी पत्रकारिता सम्भव नहीं है जिसे लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता रहा है। रिपोर्टिंग जितना अनुशासन की माँग करती है उतना ही अभ्यास की; यह जितना तैयारी की माँग करती है उतना ही तकनीक की। इसके लिए सजगता जितनी ज़रूरी है, सचाई भी उतना ही ज़रूरी है। वास्तव में, करियर के अन्य बहुतेरे माध्यमों की तरह रिपोर्टिंग भी जितनी कला है उतना ही विज्ञान भी है। इसकी अपनी बारीकियाँ हैं, अपना ग्रामर है जिनसे वाक़िफ़ हुए बिना पत्रकारिता के मैदान में उतरना लाइफ़ जैकेट पहने बिना किसी तूफ़ानी नदी के प्रवाह में कूदने जैसा हो जाता है। लेकिन पत्रकारिता का कोई छात्र यह बारीकी, यह ग्रामर कहाँ से जाने? इसी सवाल से जाने-माने रिपोर्टर परिमल कुमार के रू-ब-रू होने का नतीजा है यह किताब। ‘रिपोर्टर ऑन द ग्राउंड’ में सैद्धान्तिक के मुक़ाबले रिपोर्टिंग के व्यावहारिक पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है। बेशक इसमें सैद्धान्तिक पहलू छोड़े नहीं गए हैं लेकिन परिमल ने रिपोर्टिंग के अपने लम्बे अनुभवों को आधार बनाकर ऐसा सिलसिलेवार पाठ तैयार किया है जिसे रिपोर्टिंग का ‘प्रैक्टिकल गाइड’ कहा जा सकता है।
ISBN: 9789391950941
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: अनुवाद की बात आते ही हमें दो भाषाओं का परिदृश्य ध्यान में आता है। अनुवाद की ज़रूरत केवल दो भाषाओं के सन्दर्भ में ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं है। अनुवाद के कई ऐसे आयाम होते हैं जिन पर हम आम तौर पर ग़ौर नहीं करते। दो विरोधी दर्शन और विचार रखनेवालों के बीच संवाद के लिए भी अनुवाद की ज़रूरत होती है। अनुवाद के ऐसे ग़ैर-पारम्परिक अर्थ और प्रसंग को छोड़ भी दें तो भी पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद का अहम स्थान है।हिन्दी के प्रति प्रेम राष्ट्र-गौरव की भावना आत्म-सम्मान जैसे सराहनीय और वांछनीय आदर्शों के सशक्त हिमायती होने के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अख़बारों द्वारा अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य के निरन्तर अद्यतन और सही ढंग से अंकन के लिए अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद की ज़रूरत अभी भी बरकरार है। अनुवाद की कला कठिन है क्योंकि दो भिन्न भाषाओं की अभिव्यक्ति शैली भी भिन्न होती है। हर भाषा का एक अपना चरित्र होता है और उस चरित्र के कारण भाषा की शैली की विशिष्टता होती है। विद्वान लेखकों द्वारा तैयार इस पुस्तक के ज़रिए इस कला को विस्तार देने और सँवारने की कोशिश की गई है। पत्रकारिता से जुड़े हर व्यक्ति के लिए यह उपयोगी पुस्तक है।
Vigyapan, Bazar Aur Hindi
- Author Name:
Kailash Nath Pandey
- Book Type:

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Description:
विज्ञापनों का ख़ासा असर शुरुआती दौर में आहिस्ता-आहिस्ता किन्तु कालान्तर में धूम-धड़ाके के साथ भारतीय समाज में गहरे पसर चुका है। साफ़ शब्दों में, तमाम दर्जनों लांछनाओं के बावजूद आज हम विज्ञापनों के जिस मायावी संसार का सामना कर रहे हैं, उससे बचना हमारे लिए मुश्किल हो गया है। एक ओर अभिव्यक्ति के अधिकांश मंच-मचान और माध्यमों से इसका अटूट रिश्ता स्थापित हो चुका है तो दूसरी ओर यह सम्प्रेषण की मुकम्मल, पुख्ता और आकर्षक विधा और माध्यम तो बन ही गया है। अब यह व्यावसायिक शक्ति, विक्रय कला की प्रणाली, लोकसेवा, घोषणा, उपभोक्ता के लिए सूचना और सुझाव, व्यावसायिक ज़रिया और क्रय-शक्ति के संवर्धक के रूप में अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है।
विज्ञापनों के बिना, बिलाशक बाज़ार चल नहीं सकता। बाज़ार को यह सुसम्पन्न और लुभावना बनाता है, उसे सजाता और साधता है। बिना इसके मीडिया के सामने अस्तिव का संकट पैदा हो सकता है। इसने भाषा, संस्कृति के साथ जीवन की कई चीज़ों को बदल दिया है।
Bhojpuri Sanskar geet Aur Prasar Madhyam
- Author Name:
Shailesh Shrivastva
- Book Type:

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Description:
लोकगीत माटी की महक हैं, संस्कारों के स्वर हैं, अन्तर की आवाज़ हैं। इनकी पूरी व्यापक धरोहर श्रव्य परम्परा में सिमटी हुई है। शैलेश जी ने लुप्त होते लोकगीतों को सुरक्षित रखने और इनके संरक्षण हेतु स्तुतनीय प्रयास किया है। वह स्वयं एक जानी-मानी गायिका हैं। कुछ लोकगीतों की स्वरलिपि व सी.डी. देने से पुस्तक का महत्त्व और बढ़ गया है।
—गोपाल चतुर्वेदी
इस पुस्तक में संस्कार सम्बन्धी उत्सवों के अवसरों पर गाए जानेवाले भोजपुरी लोकगीतों का सामाजिक मूल्यांकन तथा उनके संरक्षण और प्रचार-प्रसार में संचार माध्यमों विशेषकर दूरदर्शन, आकाशवाणी की भूमिका पर एक संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। कुछ लोकगीतों की स्वरलिपियाँ व धुनों की सी.डी. संलग्न हैं, जो संरक्षण की दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
—डॉ. विद्याविन्दु सिंह
शैलेश इन लोकगीतों को गाती नहीं, जीती हैं। इसलिए आधुनिकता के नाम पर लोकगीतों के विकृत स्वरूप उन्हें पीड़ा देते हैं। उनकी यह पुस्तक इस विकृति को समझने की उनकी एक सार्थक कोशिश है।
—विश्वनाथ सचदेव
शैलेश श्रीवास्तव पिछले अनेक वर्षों से बिना अपनी दुंदुभी बजाए हुए हिन्दी के लोकसंगीत प्रेमियों के बीच पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण के चलते अपनी जड़ों से उखड़ लगभग विलुप्ति के कगार पर आ खड़े हुए संस्कार गीतों की जन-मानस में पुनर्प्रतिष्ठा के लिए प्रयत्नशील हैं। बच्चे के जन्म पर गाए जानेवाले सोहर से लेकर मुंडन, छेदन, घुड़चढ़ी, लगुन भाँवरे; झूला (सावन), होली (फाग), टोना, नजर, सगुन, चैती, ठुमरी आदि सभी को उन्होंने अपना कंठ ही नहीं दिया है, बल्कि सुदूर गाँव-जवार के ओने-कोने की यात्राएँ कर उन्हें बड़ी-बूढ़ियों की कंठस्थ संचित पूँजी से बीन-चुन अपनी संगीत मंजूषा को निरन्तर समृद्ध भी किया है। प्रस्तुत शोध पुस्तक ‘भोजपुरी संस्कार गीत और प्रसार माध्यम’ उनकी श्रम-साध्य मेहनत का ही नतीजा है।
—चित्रा मुद्गल
Hindi-patrakarita Ke Pratiman
- Author Name:
Satish Kumar Roy
- Book Type:

- Description: पुस्तक हिन्दी के चौदह उन सम्पादकों पर केन्द्रित है जिन्होंने हिन्दी-पत्रकारिता को दिशाबोध दिया है, उसकी विरासत को अग्रेषित किया है और सही अर्थों में प्रतिमान के रूप में मान्य हुए हैं। ऐसा नहीं है कि यह सूची इन्हीं तक सीमित है। वस्तुतः यह एक श्रृंखला की पहली कड़ी है। ये चौदह सम्पादक बिहार के विश्वविद्यालयों के एम.ए. के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किए गए हैं इसलिए सर्वप्रथम इन्हीं को केन्द्र में रखकर पुस्तक का पहला खंड प्रस्तुत किया जा रहा है। उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को इसमें अपेक्षित सूचनाएँ मिल पायेंगी, ऐसा विश्वास है।
Sanchar Bhasha Hindi
- Author Name:
Dr. Surya Prasad Dixit
- Book Type:

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Description:
जनसंचार माध्यमों की सबसे बड़ी शक्ति है, संचार भाषा। मीडिया द्वारा प्रसारित भाषा में लक्ष्यीभूत श्रोता, दर्शक, पाठक विभिन्न बौद्धिक स्तरों के होते हैं। जन-माध्यमों का यह प्रयास होता है कि वे भाषिक सम्प्रेषण को सर्व सुलभ बनाएँ। इसके लिए एक-एक शब्द को बड़ी सावधानी के साथ प्रयुक्त करना होता है। यह ध्यान रखना होता है कि उच्चरित भाषा में कितना अन्तराल, कितना आयतन, कितना आरोहावरोह और कितना यति-गति-विधान रखा जाए। इन जन-माध्यमों की अपनी अलग-अलग भाषिक प्रोक्तियाँ होती हैं। अख़बार भरसक जन-भाषा का प्रयोग करता है, रेडियो उसे ‘विजुअल’ बनाने का प्रयास करता है और टेलीविज़न दृश्य भाषा का पूरी क्षमता के साथ निर्वाह करता है।
इधर कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल आदि ने भाषा के नए-नए रूप निकाले हैं। इन्हें समझने के लिए भाषा प्रौद्योगिकी का संज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिए अपेक्षित है—अनुवाद कला का अभ्यास, डबिंग, दुभाषिया प्रविधि और वाचिक कलाओं की जानकारी, कमेंट्री, उद्घोषणा तथा संचालन की सफलता पूर्णत: भाषिक उच्चारण और लहज़े पर निर्भर होती है। समाचार, फ़ीचर, ध्वनि नाटक, संवाद, वार्त्ता, वृत्तचित्र, रिपोर्ताज़ आदि विधाएँ मूलत: भाषिक प्रयोगों पर निर्भर होती हैं।
संचार भाषा में सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है शब्द संवेदना पर। उसी के सहारे विज्ञापन के नारे इतने हृदयस्पर्शी सिद्ध होते हैं।
इस कृति में प्रथम बार संचार भाषा रूप में हिन्दी का अनुप्रयोग स्पष्ट किया गया है। कहना न होगा कि यह कृति प्रत्येक संचारकर्मी के लिए मात्र उपादेय ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य है।
Patkatha Lekhan : Vyavaharik Nirdeshika
- Author Name:
Asghar Wajahat
- Book Type:

- Description: फ़िल्मों और टी.वी. के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम, धारावाहिक के लिए पटकथा अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त डाक्यूड्रामा और डाक्यूमेंट्री फ़िल्मों के लिए भी दृश्य-श्रव्य केन्द्रित लेखन आवश्यक है। फ़िल्म और टेलीविज़न के व्यापक होते क्षेत्र में शिक्षापरक/ज्ञानपरक मल्टीमीडिया कार्यक्रम भी आकर जुड़ गए हैं। ज्ञान और शिक्षा के अपार भंडार को दृश्य-श्रव्य माध्यम से उपलब्ध कराने की चुनौती भारत सरकार के मानव-संसाधन मंत्रालय के अतिरिक्त अनेक अन्य संगठनों ने ली है। प्रोग्राम प्रोडक्शन के क्षेत्र में यदि अभाव है तो पटकथा लेखकों का है। इसके कई कारण हैं। प्रोग्राम प्रोडक्शन सम्बन्धी तकनीकी प्रशिक्षण देने की तुलना में पटकथा-लेखन के पाठ्यक्रम बहुत कम हैं। जिन संस्थानों में पटकथा-लेखन के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, वहाँ प्रायः अच्छे शिक्षकों की कमी बनी रहती है और यह भी ज़रूरी नहीं है कि अच्छा पटकथा लेखक अच्छा शिक्षक भी हो। प्रस्तुत पुस्तक में सिनेमा के इतिहास, सैद्धान्तिकी और समीक्षा इत्यादि पर कोई चर्चा नहीं की गई है, क्योंकि पुस्तक का उद्देश्य पटकथा के व्यावहारिक पक्ष को सामने लाना है। यह पुस्तक पटकथा-लेखन में रुचि लेनेवाले विद्यार्थियों तथा अन्य सभी पाठकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इस व्यावहारिक निर्देशिका में पटकथा के एक-एक बिन्दु की चर्चा की गई है। पुस्तक का उद्देश्य है कि इसके माध्यम से पटकथा-लेखन की तकनीक सीखी जा सके।
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