Zindaginama
Author:
Krishna SobtiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction2 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
लेखन को जीवन का पर्याय माननेवाली कृष्णा सोबती की क़लम से उतरा एक ऐसा उपन्यास जो सचमुच ‘ज़िन्दगी’ का पर्याय है—‘ज़िन्दगीनामा’।
‘ज़िन्दगीनामा’—जिसमें न कोई नायक। न कोई खलनायक। सिर्फ़ लोग और लोग और लोग। ज़िन्दादिल। जाँबाज़। लोग जो हिन्दुस्तान की ड्योढ़ी पंचनद पर जमे, सदियों ग़ाज़ी मरदों के लश्करों से भिड़ते रहे। फिर भी फ़सलें उगाते रहे। जी लेने की सोंधी ललक पर ज़िन्दगियाँ लुटाते रहे।
‘ज़िन्दगीनामा’ का कालखंड इस शताब्दी के पहले मोड़ पर खुलता है। पीछे इतिहास की बेहिसाब तहें। बेशुमार ताक़तें। ज़मीन जो खेतिहर की है और नहीं है, वही ज़मीन शाहों की नहीं है मगर उनके हाथों में है। ज़मीन की मालिकी किसकी है? ज़मीन में खेती कौन करता है? ज़मीन का मामला कौन भरता है? मुजारे आसामियाँ। इन्हें जकड़नों में जकड़े हुए शोषण के वे क़ानून जो लोगों को लोगों से अलग करते हैं। लोगों को लोगों में विभाजित करते हैं।
‘ज़िन्दगीनामा’ का कथानक खेतों की तरह फैला, सीधा-सादा और धरती से जुड़ा हुआ। ‘ज़िन्दगीनामा’ की मजलिसें भारतीय गाँव की उस जीवन्त परम्परा में हैं जहाँ भारतीय मानस का जीवन-दर्शन अपनी समग्रता में जीता चला जाता है।
‘ज़िन्दगीनामा’—कथ्य और शिल्प का नया प्रतिमान, जिसमें कथ्य और शिल्प हथियार डालकर ज़िन्दगी को आँकने की कोशिश करते हैं। ‘ज़िन्दगीनामा’ के पन्नों में आपको बादशाह और फ़क़ीर, शहंशाह, दरवेश और किसान एक साथ खेतों की मुँड़ेरों पर खड़े मिलेंगे। सर्वसाधारण की वह भीड़ भी जो हर काल में, हर गाँव में, हर पीढ़ी को सजाए रखती है।
ISBN: 9788126717422
Pages: 392
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘जुगलबन्दी’ उन द्वन्द्वात्मक स्थितियों की अभिव्यक्ति है जिनमें आज़ादी के तेवर हैं तो ग़ुलामी की मानसिकता भी। दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर आज़ादी मिलने तक का समय जुगलबन्दी में सिमटा हुआ है। यह समय अजीब था...इसे न तो ग़ुलामी कहा जा सकता है और न आज़ादी। इसी गाथा की महाकाव्यात्मक परिणति है ‘जुगलबन्दी’।
इस उपन्यास में यह तथ्य उभरकर आया है कि रचनात्मक रूप में जो लोग क्रान्ति से जुड़े थे वे कुंठा-मुक्त नहीं थे और जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान उस व्यवस्था में अपना स्थान बना लिया था वे भी स्वयं को कुंठाग्रस्त पा रहे थे। ‘जुगलबन्दी’ में लेखक ने इसका हृदयस्पर्शी चित्रण करते हुए बहुत सजगता के साथ रेखांकित किया है कि इस द्वन्द्वात्मक स्थिति में एक तीसरी जमात भी थी जो न तो क्रान्ति में शामिल थी और न शासन में उसका कोई स्थान था। वह उस पूरे संघर्ष के दबाव को अपने शरीर और आँतों पर झेल रही थी।
टूटने और बनने की इस प्रक्रिया को ‘जुगलबन्दी’ में व्यापक कैनवस मिला है जिस पर उस पूरे युग का प्रतिबिम्बन है—आज की भाषा और आज के मुहावरों के साथ, मुग्धकारी और हृदयस्पर्शी।
Maharana Pratap
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
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महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास में वीरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के पर्याय हैं। वे एक कठिन और उथल-पुथल भरे काल-खंड में पैदा हुए थे, जब मुग़लों की सत्ता समूचे भारत पर छाई हुई थी और मुग़ल सम्राट अकबर अपनी विशिष्ट कार्य-शैली के कारण ‘महान’ कहा जा रहा था। लेकिन महाराणा प्रताप उसकी ‘महानता’ के पीछे छिपी उसकी साम्राज्यवादी आकांक्षा के विरुद्ध थे, इसलिए उन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। परिणामस्वरूप अकबर उनके विरुद्ध युद्ध में उतरा। इस प्रक्रिया में महाराणा प्रताप ने जिस वीरता, स्वाभिमान और त्यागमय जीवन को वरण किया, उसी ने उन्हें एक महान लोकनायक और वीर पुरुष के रूप में सदा-सदा के लिए भारतीय इतिहास में प्रतिष्ठित कर दिया।
महाकवि निराला ने प्रताप के इसी प्रेरक चरित्र को तथ्यात्मक ढंग से चित्रित किया है।
मुख्य रूप से यह पुस्तक किशोर पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी गई है, लेकिन इसकी प्रांजल भाषा-शैली और तथ्यपरकता इसे एक महापुरुष की ऐतिहासिक जीवनी का महत्त्व प्रदान कर देती है।
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