Wapsi
Author:
William SorayanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
विलियम सोरायाँ के विश्वविख्यात उपन्यास ‘द ह्यूमन कॉमेडी’ का यह अनुवाद होमर मैकाले नाम के एक चौदह वर्षीय लड़के के इर्द-गिर्द घूमता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब उसका बड़ा भाई मारकस लड़ाई के मोर्चे पर चला जाता है तो होमर, यह समझते हुए कि अब घर की ज़िम्मेदारी उसी के ऊपर है, तार-घर में अंशकालिक नौकरी कर लेता है। काम है लोगों के घरों तक चिट्ठियाँ पहुँचाना।</p>
<p>अपने इसी काम को करते हुए उसे जीवन, मृत्यु, अकेलेपन और मानव-अस्तित्व से सम्बन्धित अनेक ऐसी सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है, जो उसे एक अनुभवी व्यक्ति बनने में मदद करती हैं।</p>
<p>उपन्यास में होमर की ‘ओडिसी’ के भी अनेक सन्दर्भ बुने गए हैं। ओडिसी की तरह इस उपन्यास के केन्द्र में भी घर वापसी है।</p>
<p>इस उपन्यास के विश्व में अनेक फ़िल्म तथा रंगमंचीय रूपान्तरण हो चुके हैं।
ISBN: 9788126718238
Pages: 151
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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विक्रम सेठ अपनी अनूठी शैली के लेखक हैं। उनकी किसी भी पुस्तक में किसी क़िस्म का दोहराव नहीं होता, फिर भी उनकी प्रत्येक कृति पर उनकी अपनी पहचान अंकित होती है। कुछ आलोचक इस पहचान को ‘जीवन की अचूक साँस’ तो कुछ उसे ‘अनुल्लंघनीय सच्चाई’ कहते हैं।
‘ए सूटेबुल ब्वाय’ के बाद उनका यह पहला उपन्यास है जिसमें वे एक सघन और संवेदनशील कहानी लेकर आए हैं। इस कहानी में संगीत है, कला है, हास्य है और गुरु-गम्भीर अहसास भी। एक स्तर पर यह कहानी प्यार के बारे में है—एक स्त्री का प्यार जो मिलकर खो जाती है, फिर मिलती है और फिर खो जाती है। विक्रम सेठ इस उपन्यास में पुनः जीवन के विभ्रम की रचना करते हैं। और सबसे ऊपर यह पुस्तक संगीत के बारे में है और इस बारे में कि कैसे संगीत का प्यार जीवन के बीचोबीच एक घनीभूत धारा की तरह प्रवहमान रहता है।
तीखे दु:ख और दीप्तिमान मेधा की पुनरावृत्तियों के द्वारा यह उपन्यास विक्रम सेठ के लेखकीय व्यक्तित्व का एक अलग ही पहलू पाठक के सम्मुख खोलता है।
Maut ki Kitab
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Description:
‘गोदान’ का नायक होरी है।
ज़मींदार और महाजन में भेद करते हुए वह बताता है—“ज़मींदार तो एक ही है; मगर महाजन तीन-तीन हैं, सहुआइन अलग, मँगरू अलग और दातादीन पंडित अलग।” पाँच साल हुए होरी ने मँगरू साह से साठ रुपए उधार लिए थे बैल लाने के लिए। उसमें से वह साठ दे चुका था; परन्तु वह साठ रुपए अब भी बने हुए थे। दातादीन पंडित से उसने तीस रुपए लिए थे आलू बोने के लिए। दुर्भाग्य से आलू चोर खोद ले गए परन्तु उन तीस रुपयों के तीन सौ हो गए। दुलारी विधवा सहुआइन नोन-तेल-तमाखू की दुकान करती थी; इकन्नी रुपया का ब्याज लेती थीं। इनके भी सौ रुपए हो गए थे। फ़सल होते ही माल सब महाजनों को तौल देना पड़ता और ब्याज फिर बढ़ने लगता। तमाशा यह कि एक समय होरी ने भी महाजनी की थी जिससे लोग समझते थे कि उसके पास अब भी दबा हुआ रुपया है।...
—डॉ. रामविलास शर्मा
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