
Uttar Bayan Hai
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
298
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
596 mins
Book Description
“अपने लोगों की यह कथा जिसे अनेक वर्षों तक मैंने अपने भीतर जिया है...<strong>”</strong>—विद्यासागर नौटियाल</p> <p><strong> </strong></p> <p>‘उत्तर बायां है’ हिमाच्छादित बुग्यालों और ऊँचे<strong>, </strong>विस्तृत चरागाहों में बरसात के दौरान बर्फ़ के पिघलने के बाद उग आनेवाली मखमली घास और असंख्य ख़ूबसूरत फूलों की ख़ुशबू के बीच अपने पशुओं के साथ विचरण करनेवाली घुमन्तू जाति गूजर और पर्वतीय क्षेत्र के भेड़पालकों और भैंसवालों के समूहों के आपसी सम्बन्धों और परिधि पर बसर कर रहे लोगों के जीवन का साक्षात्कार है। पर्वत शृंग पर बसे भेड़पालकों के गाँव चाँदी और उसकी घाटी में</p> <p>बसे रैमासी के निवासियों के पेशों<strong>, </strong>रीतियों और प्रथाओं में पर्याप्त भिन्नता हो जाती है। चाँदी के आकाश में चाँद खुलकर प्रकट होकर कभी अपनी आभा नहीं फैला पाता। चाँदीवासियों का आदिकाल से यह विश्वास चला आया है कि कुछ दुष्ट ग्रह<strong>, </strong>जो उनके आकाश में विचरण करते हैं<strong>, </strong>उनके चाँद को हमेशा अपने दबाव में रखते आए हैं<strong>, </strong>जैसे राहु पूर्णमासी के चाँद को अपने दबाव में कर लेता है। उन दुष्ट ग्रहों के संचालक रैमासी में निवास करते हैं। दिन-रात अथक परिश्रम करनेवाले चंदवालों की कमाई को सदियों से निठल्ले रैमासीवाले हड़प करते आए हैं। सदरू<strong>, </strong>करणू<strong>, </strong>हुकम के जीवन में खीजी<strong>, </strong>कन्हैया<strong>, </strong>देवीप्रसाद<strong>, </strong>धनसिंह और रथी सेठ जैसे लोग हमेशा संकट पैदा करते आए हैं<strong>, </strong>और इन निरीह चंदवालों की क़ीमत पर राजकीय कर्मचारियों<strong>, </strong>अधिकारियों की मौज-मस्ती<strong>, </strong>बेकसूर लोगों पर सत्ता के अत्याचार<strong>, </strong>न्यायालयों की हास्यास्पद भूमिका<strong>, </strong>भेड़पालकों<strong>, </strong>ग्रामवासियों<strong>, </strong>गूजरों के पशुवत् जीवन की झलकियाँ<strong>; </strong>आयशा<strong>, </strong>सकीना और हसीना की बेबस ज़िन्दगी के चित्र<strong>, </strong>हाशिए पर पड़े लोगों के अनवरत संघर्ष<strong>, </strong>ग़रीबी<strong>, </strong>उनके सपने<strong>, </strong>सभ्य तथा कथित विकसित समुदायों द्वारा उनका बाहरी-भीतरी <br>विनाश! ‘उत्तर बायां है’ में अपने मर्मांतक वर्णन से विद्यासागर नौटियाल इन घुमन्तू और सीमान्त लोगों के जीवन का प्रामाणिक तथा ज़िन्दगी से भरपूर सन्धान करते हैं।</p> <p>उपन्यास बेचैन करनेवाले यथार्थ और ज़मीनी सच्चाइयों<strong>, </strong>आपसी रिश्तों को मानवीय गरिमा देने के बीच एक संयत भाषा में आन्दोलित होता रहता है और इन ‘उपेक्षितों’ की पीड़ा से ‘मुख्यधारा’ को आत्यन्तिक मार्मिकता से साक्षात्कार कराता है।</p> <p>—हम्माद फ़ारूक़ी।