Salam Aakhiri
Author:
Madhu KankariyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
समाज में वेश्या की मौजूदगी एक ऐसा चिरन्तन सवाल है जिससे हर समाज हर युग में अपने-अपने ढंग से जूझता रहा है। वेश्या को कभी लोगों ने सभ्यता की ज़रूरत बताया, कभी कलंक बताया, कभी परिवार की क़िलेबन्दी का बाई-प्रोडक्ट कहा और कभी सभ्य, सफ़ेदपोश दुनिया का गटर जो ‘उनकी’ काम-कल्पनाओं और कुंठाओं के कीचड़ को दूर अँधेरे में ले जाकर डंप कर देता है। इधर वेश्याओं को एक सामान्य कर्मचारी का दर्जा दिलाए जाने की क़वायद भी शुरू हुई है। लेकिन</p>
<p>ऐसा कभी नहीं हुआ कि समाज अपनी पूरी इच्छाशक्ति के साथ वेश्यावृत्ति के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध हो जाए; इस अभिशाप के उन्मूलन के नाम पर तमाम तरह के उत्पीड़न-दमन और शोषण का शिकार वेश्याएँ ज़रूर होती रही हैं।</p>
<p>यह उपन्यास वेश्याओं और वेश्यावृत्ति के पूरे परिदृश्य को देखते हुए हमारे भीतर उन असहाय स्त्रियों के प्रति करुणा का उद्रेक करता है, जो किसी भी कारण इस बदनाम और नारकीय व्यवसाय में आ फँसी हैं।</p>
<p>कलकत्ता के सोनागाछी रेड लाइट एरिया की अँधेरी गलियों का सीधा साक्षात्कार कराते हुए लेखिका सभ्य समाज की संवेदनहीनता और कठोरता को भी साथ-साथ झिंझोड़ती चलती है; यही चीज़ इस उपन्यास को सिर्फ़ एक कथा-पुस्तक की हद से निकालकर एक दस्तावेज़ में बदल देती है।
ISBN: 9788126712922
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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श्रीकृष्ण और गोपियों का सम्बन्ध पूर्ण रूप से परमात्मा को समर्पित जीवात्मा का सम्बन्ध है। स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं—“मेरी प्रिय गोपियो, तुम लोगों ने मेरे लिए घर-गृहस्थी की उन समस्त बेड़ियों को तोड़ डाला है, जिन्हें बड़े-बड़े योगी-यति भी नहीं तोड़ पाते। मुझसे तुम्हारा यह मिलन, यह आत्मिक संयोग सर्वथा निर्मल और निर्दोष है। यदि मैं अमर शरीर से अनन्त काल तक तुम्हारे प्रेम, सेवा और त्याग का प्रतिदान देना चाहूँ, तो भी नहीं दे सकता। मैं जन्म-जन्म के लिए तुम्हारा ऋणी हूँ। तुम अपने सौम्य स्वभाव और प्रेम से मुझे उऋण कर सकती हो, परन्तु मैं इसकी कामना नहीं करता। मैं सदैव चाहूँगा कि मेरे सर पर सदा तुम्हारा ऋण विद्यमान रहे।”
एक ऐसा उपन्यास जिसे आप पढ़ना शुरू करेंगे, तो बिना समाप्त किए रख नहीं पाएँगे। ऐसी अद्भुत कृति की रचना वर्षों बाद होती है। औपन्यासिक विधा में लिखा गया यह उपन्यास श्रीकृष्ण का यशोदानन्दन के रूप में वर्णित भाँति-भाँति की लीलाएँ अपने वितान में समेटे हुए हैं, जो समस्त हिन्दी पाठकों के लिए सिर्फ़ पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।
Nadi Ke Dweep
- Author Name:
Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'
- Rating:
- Book Type:

- Description: व्यक्ति अज्ञेय की चिंतन-धरा का महत्तपूर्ण अंग रहा है, और ‘नदी के द्वीप’ उपन्यास में उन्होंने व्यक्ति के विकसित आत्म को निरुपित करने की सफल कोशिश की है-वह व्यक्ति, जो विराट समाज का अंग होते हुए भी उसी समाज की तीव्रगामी धाराओं, भंवरों और तरंगो के बीच अपने भीतर एक द्वीप की तरह लगातार बनता, बिगड़ता और फिर बनता रहता है । वेदना जिसे मांजती है, पीड़ा जिसे व्यस्क बनाती है, और धीरे-धीरे द्रष्टा । अज्ञेय के प्रसिद्द उपन्यास ‘शेखर : एक जीवनी’ से संरचना में बिलकुल अलग इस उपन्यास की व्यवस्था विकसनशील व्यक्तियों की नहीं, आंतरिक रूप से विकसित व्यक्तियों के इर्द-गिर्द बुनी गई है । उपन्यास में सिर्फ उनके आत्म का उदघाटन होता है । समाज के जिस अल्पसंख्यक हिस्से से इस उपन्यास के पत्रों का सम्बन्ध है, वह अपनी संवेदना की गहराई के चलते आज भी समाज की मुख्यधारा में नहीं है । लेकिन वह है, और ‘नदी के द्वीप’ के चरों पत्र मानव-अनुभूति के सर्वकालिक-सार्वभौमिक आधारभूत तत्त्वों के प्रतिनिधि उस संवेदना-प्रवण वर्ग की इमानदार अभिव्यक्ति करते हैं । ‘नदी के द्वीप’ में एक सामाजिक आदर्श भी है, जिसे अज्ञेय ने अपने किसी वक्तव्य में रेखांकित भी किया था, और वह है-दर्द से मंजकर व्यक्तित्व का स्वतंत्र विकास, ऐसी स्वतंत्रता की उद्भावना जो दूसरे को भी स्वतंत्र करती हो । व्यक्ति और समूह के बीच फैली तमाम विकृतियों से पीड़ित हमारे समाज में ऐसी कृतियाँ सदैव प्रासंगिक रहेंगी ।
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