Narvanar
Author:
Sharankumar LimbalePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘नरवानर’ 1956 से 1996 तक के समय पर आधारित यह उपन्यास दरअसल आत्मचिन्तन है। दलित-विमर्श के संवेदनशील विस्फोटक सन्दर्भ का एक साहित्यिक विश्लेषण। लेखक के अनुसार इस आत्मचिंतन या विश्लेषण के मूल में हैं कुछ स्मृतियाँ, कुछ बहसें, कुछ समाचार, कुछ साहित्य-पाठ, समाज की गतिविधियाँ और उनसे उत्पन्न प्रतिक्रियाएँ, बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार और व्यभिचार की ओर उन्मुख दैनंदिन नैतिकता, दंगे और हिंसा, राजनीति का अपराधीकरण, अपराधियों को प्राप्त प्रतिष्ठा, राष्ट्रीय नेतृत्व का भ्रष्टाचार, बढ़ती हुई बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी और आबादी।</p>
<p>लेकिन मराठी में ‘उपल्या’ नाम से प्रकाशित और चर्चित इस उपन्यास की केन्द्रीय चिन्ता समकालीन दलित आन्दोलन है। पहले अध्याय में एक सनातनी ब्राह्मण परिवार के दलितीकरण का चित्रण है तो तीसरे अध्याय में एक ब्राह्मण परिवार की ही बेटी एक दलित से विवाह करके नया जीवन शुरू करती है। बाकी दो अध्यायों में दलित आन्दोलन के उभार, संघर्ष और विखंडन पर दृष्टिपात किया गया है।</p>
<p>कहना न होगा कि हिन्दी और मराठी में समान रूप से लोकप्रिय लेखक शरणकुमार लिंबाले का यह उपन्यास समकालीन दलित विमर्श के सन्दर्भ में एक ज़रूरी पुस्तक है।
ISBN: 9788183612234
Pages: 172
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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लालसिंह ने अपनी तमाम दौलत को एक सशर्त वसीयतनामे के द्वारा अपनी इकलौती बेटी सरला के नाम कर दिया है। यही कारण है कि शादी के ऐन वक़्त लालसिंह के दुष्ट भतीजे सरला को ही उड़ा ले जाते हैं और उसे क़ैद कर लेते हैं। साथ ही वे सरला के मंगेतर हरनन्दन बाबू के चरित्र-हनन की भी कोशिश में लग जाते हैं, और इनकी उन तमाम साज़िशों में शरीक है बांदी नामक एक अद्भुत वेश्या। लेकिन उसका मुक़ाबला करती है एक और ‘वेश्या’ सुलतानी। वास्तव में यह समूचा घटनाक्रम अनेक विचित्रताओं से भरा होकर भी अत्यन्त वास्तविक है, जिसके पीछे लेखक की एक सुसंगत तार्किक दृष्टि है।
इस रचना के माध्यम से जहाँ लेखक ने धनपतियों के बीच वेश्याओं की कूटनीतिक भूमिका को दर्शाया है, वहीं पूँजी के बुनियादी चरित्र—उसकी मानवता-विरोधी भूमिका—को भी उजागर किया है।
Suno Anand!
- Author Name:
Ramji Prasad 'Bhairav'
- Book Type:

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Description:
मैं महापरिनिर्वाण के समीप था। रात्रि का अन्तिम प्रहर चल रहा था। लोगों के दर्शनों का क्रम टूटा नहीं था। वे सब दुखी थे, पर व्यर्थ में मेरी आँखों के सामने कुछ पुराने दृश्य उभरे। वैशाली में प्रवास के दौरान आनन्द ने राहुल के निर्वाण की सूचना दी। गोपा का मुखमंडल उभरा। पिताश्री का मुस्कुराता हुआ मुख, माताश्री का मुख, सारिपुत्र और मौग्द, जाने कितने दृश्य स्मृति-पटल पर आए और चले गए।
मैंने आँखें खोलीं, “आनन्द!”
आनन्द रो रहा था, उसकी आँखें लाल थीं, कपोल आँसुओं से सिक्त थे। अन्य भिक्षु भी जो जहाँ था वह दुखी होकर अश्रु अर्घ्य दे रहा था।
मैंने पुनः कहा—“आनन्द।”
वह समीप आया, मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया। वह फूट-फूटकर रो पड़ा।
“रोओ मत, आनन्द, जीवन का सत्य जानकर जब तुम रोते हो, तो भला इन सांसारिक लोगों को कौन सँभालेगा।”
मेरी जिह्वा फँसने लगी, होंठ सूख रहे थे।
मैंने जीभ होंठों पर फिराया, वह कुछ गीला हुआ।
“भगवन्! आपके बाद हम दुःख निवृत्ति के लिए किसके शरण में जाएँगे।” इतना कहकर वह पुनः रो पड़ा।
“सुनो आनन्द! मनुष्य मद के कारण पर्वत, वन, उद्यान, वृक्ष और चैत्य की शरण में जाता है। लेकिन यह उत्तम शरण नहीं है, यहाँ दुःख की निवृत्ति नहीं है। सर्वाधिक उत्तम शरण हैं—बुद्ध पुरुषों की शरण, उन्हीं की शरण में कल्याण है।”
—इसी पुस्तक से
Shreeman Yogi
- Author Name:
Ranjeet Desai
- Book Type:

- Description: श्रीमान योगी रणजीत देसाई की यह कालजयी रचना अपने मूल मराठी प्रकाशन के कुछ ही समय बाद मराठी भाषियों के बीच जातीय स्मृति ग्रन्थ जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सफल हुई है। जितनी कसावट से इस सुदीर्घ उपन्यास में मुगलकालीन दक्खिन का समय बुना गया है, जिस तरह इसमें सह्यादि क्षेत्र के मनुष्य तो क्या, पत्थर तक बोलते सुनाई देते हैं, उसे देखते हुए महाराष्ट्र में इसका इतना लोकप्रिय हो जाना स्वाभाविक है। लिहाजा इस उपन्यास का हिन्दी में प्रकाशन भी वैसी ही बड़ी घटना है, जैसी मराठी में इसके प्रथम प्रकाशन की घटना। जहाँ-तहाँ भटकने पर मजबूर एक विद्रोही मराठा सामंत की लगभग परित्यक्ता पत्नी अपने बेटे के व्यक्तित्व में अपनी और अपनी समूची जाति की पीड़ाएँ छाप देती है। हीरे-सा कड़ा और पानी सा तरल किशोर शिवाजी हिंदवी स्वराज्य का स्वप्न देखने का दुस्साहस करता है और यही दुस्साहस न सिर्फ उसका बल्कि उसके समूचे समय का भाग्य तय करने लगता है। तलवारों की खनखनाहटों के बीच धीरे-धीरे एक ऐसा चेहरा उभरता है, जिसके लिए जय-पराजय, जीवन-मृत्यु, लाभ-हानि का फर्क मिट चुका है, जो राजा भी है और योगी भी, जिसे समर्थ गुरु रामदास श्रीमान योगी कहते हैं। किसी महानायक को केन्द्र में रखकर उपन्यास-लेखन एक प्रचलित विधा रही है लेकिन कल्पना के हाथ हमेशा बँधे होने के चलते इसे सर्वाधिक कठिन विधाओं में से एक माननेवाले भी कम नहीं रहे हैं। महानायकों के इर्द-गिर्द जैसे मिथकीय घटाटोप बन जाते हैं, उन्हें भेद कर व्यक्ति की दैन्यताओं, दुर्बलताओं और द्वन्द्वों तक पहुँचना, उन्हें चित्रित करना बहुत कठिन हो जाता है। रणजीत देसाई की रचनात्मक शक्ति इसी बात में है कि वे शिवाजी की स्थापित मूर्ति के भीतर, उसकी अनन्त तहों में घुसते हुए सचमुच के शिवाजी और उनके धड़कते हुए समय तक पहुँच जाते हैं। वे महानायक को जैसे का तैसा स्वीकार नहीं करते, बल्कि उसके जीवन-तत्त्वों से उसकी पुनर्रचना करते हैं।
Chittakobara
- Author Name:
Mridula Garg
- Rating:
- Book Type:

- Description: जो लिखा है, उसे उपन्यास कहते मुझे संकोच हो रहा है। जिस तरह यह लिखा गया, याद करके हँसी आती है। एक कहानी थी जो मेरे अन्तर्मन में फैलती-सिकुड़ती रहती थी। फिर एक दिन उस कहानी के अन्तराल का एक-एक क्षण अपनी कड़ी से टूटकर बिखर गया। मैंने आँखें फैलाकर देखा तो दीखा, हर क्षण अलग से फैल रहा है और पूरी एक कहानी का आभास दे रहा है। यह सच है कि मैंने उन अलग-अलग क्षणों को लिखने की प्रक्रिया में अलग-अलग जिया है...आखिर मैं थक गई। लिखे हुए पन्नों को एक जगह इकट्ठा किया और यह बात मेरे लिए सुखद आश्चर्य का विषय है कि पूरी पुस्तक में एक अन्तर्धारा बहती हुई दीखती है और एकसूत्रता भी आसानी से पकड़ में आती है। इस उपन्यास में परिच्छेद नहीं हैं। मैं जानती हूँ, जीवन की इतनी प्रवहमान धारा को टुकड़ों में नहीं काटा जा सकता। अन्दर के दबाव के कारण ही शायद यह हो सका है कि क्षणों में जी और लिखी गई इस कहानी के टुकड़ों का क्रम भी बाद में तय हुआ। दरअसल, बहती नदी से किसी किनारे खड़े होकर पानी पियो - क्या फर्क पड़ता है! क्रम-निर्धारण का पूर्वग्रह तो कहानी गढ़ने में होता है; जो कहानी है, वह तो...कोई कहीं से भी साथ हो ले... - इसी पुस्तक से
Humanshastrra
- Author Name:
Jatin Bharmani
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- Description: Befriend Nature Are you missing something to act upon Make life easier Awareness made simple Be and Act better Act better Shape your Tomorrow Now Live your dreams Plan your Success
Palaash Ke Phool
- Author Name:
Arunish Ankit
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- Book Type:

- Description: पलाश के फूल अरुणिश अंकित की पहली कविता-संग्रह है। जनमानस की ज़िन्दगी को संजीदगी से छूती इन कविताओं में इन्होंने मुख्यतः उनको जगह दी है, जो आज समाज में उपेक्षित हैं। अपने जीवन में लोगों से जुड़कर, उनकी समस्याएँ और उनके कौशल, साथ ही अनेकानेक पहलुओं का अध्ययन कर जो निष्कर्ष निकाला, उसे आम लोगों तक पहुँचाने के लिए कविताओं का सहारा लिया। पलाश के फूल का उद्देश्य यही है कि वो श्रम की श्रेष्ठता को लोगों तक पहुँचाये, और यह सोच विकसित करे कि कोई मनुष्य, जन्म अथवा जाति के आधार पर अलग नहीं, महत्ता कर्म की है। पलाश के फूल में कुछ कविताएँ श्रृंगार-रस में डूबी और कुछ पौराणिकता से जुड़ी हैं, जिनका मूल उद्देश्य गंभीर विषयों पर लोगों को सजग करने के साथ ही उनका मनोरंजन करना और उनमें उत्साह का संचरण करना भी है। उम्मीद है, इनका यह प्रयास आपको पसंद आयेगा।.
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