Mera Daghestan
Author:
R. HamzatovPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
प्रगीतात्मक शैली में लिखे गए इस उपन्यास में कथानक का कोई सुनिश्चित ढाँचा नहीं है। क़िस्सागोई की शैली को एक नया आयाम देनेवाली यह अनूठी कृति एक हद तक आत्मकथात्मक है, यह जीवनानुभवों का संस्मरणात्मक ब्योरा है, कहीं यह एकालाप जैसी है तो कहीं-कहीं आत्मस्वीकृतियों का रूप ले लेती है। ...धीरे-धीरे, और मानो अनजाने ही, रसूल हमजातोव की प्रस्तावित पुस्तक की ‘प्रस्तावना’ मातृभूमि, उसे प्यार करनेवाले बेटे के रवैये, कवि के दिलचस्प और कठिन कर्तव्य, उससे कुछ कम कठिन और कम दिलचस्प न होनेवाले नागरिक के कर्तव्य से सम्बन्धित अपने में सम्पूर्ण और सारगर्भित पुस्तक का रूप ले लेती है।
ISBN: 9788126713837
Pages: 435
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी, खड़ीबाड़ी और फाँसी से लगनेवाले अंचल के अधिकांश भाग के रहनेवाले आदिवासी भूमिहीन किसान हैं। उनमें मेदी, लेप्चा, भोटिया, संथाल, उराँव, राजबंसी और गोरखा सम्प्रदाय के लोग हैं। स्थानीय ज़मींदारों ने बहुत दिनों से चली आ रही ‘अधिया’ की व्यवस्था में उन पर अपना शोषण जारी रखा है। इस व्यवस्था के नियम के अनुसार ज़मींदार भूमिहीन किसानों को बीज के लिए धान, हल-बैल, खाना और मामूली पैसे देकर अपने खेत में काम पर लगाते और उपज का अधिकांश भाग ज़मींदार के घर जाता।
ऐसे में वे लोग सामन्ती हिंसा के विरुद्ध हिंसा को चुन लें तो क्या आश्चर्य?
‘अग्निगर्भ’ का संथाल किसान बसाई टुडू किसान-संघर्ष में मरता है। लाश जलने के बावजूद उसके फिर सक्रिय होने की ख़बर आती है। बसाई फिर मारा जाता है। वह अग्निबीज है और अग्निगर्भ है सामन्ती कृषि-व्यवस्था। महाश्वेता देवी मानती हैं कि इस धधकते वर्ग-संघर्ष को अनदेखा करने और इतिहास के इस संधिकाल में शोषितों का पक्ष न लेनेवाले लेखकों को इतिहास माफ़ नहीं करेगा। असंवेदनशील व्यवस्था के विरुद्ध शुद्ध, सूर्य-समान क्रोध ही उनकी प्रेरणा है। एक अत्यन्त प्रेरक कृति।
Hari Ghaas Ki Chhappar Wali Jhopadi Aur Bauna Pahad
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

- Description: विनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास के क्षेत्र में एक नए मुहावरे का आविष्कार किया है। वे उपन्यास के फ़ार्म की जड़ता को जड़ से उखाड़कर, सजगतापूर्वक नए फ़ार्म और शिल्प का लहलहाता हुआ नया संसार रचते हैं। ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ उनका चर्चित उपन्यास है। इसे विनोद जी ने किशोर, बड़ों और बच्चों का उपन्यास माना है। इस उपन्यास में बच्चों की मित्रता के साथ ही अमलताश वाला पेड़ है, हरेवा नाम का पक्षी है, बुलबुल, कोतवाल, शौबीजी, किलकिला, दैयार, दर्जी, मधुमक्खी का छत्ता और छोटा पहाड़ है। इसे फ़ैंटेसी कहें या जादुई यथार्थवाद या फिर हो सकता है कि आलोचकों को विनोद जी की इस भाषा, शैली और कल्पनाशीलता के लिए कोई नया ही नाम गढ़ना पड़े। फ़ंतासी की इस बुनावट में एक ताज़गी और नयापन है। गल्प व कल्प की जुगलबन्दी में गद्य और पद्य की सीमा रेखा मिटती जाती है। सच तो यह है कि विनोद कुमार शुक्ल के कल्पना-जगत में भी वास्तविक संसार ऐसा है जो जीवन्त और रचनात्मकता के आनन्द से भरा-पूरा है। उपन्यास में बच्चों की सपनीली दुनिया जैसी सुन्दर बातें हैं। भाषा की चमक के साथ भाषा का संगीत भी कथा को मोहक बनाता है। भाषा का आन्तरिक गठन कथ्य के साथ ही वर्तमान के बोध को भी जीवन्त बनाता है। हमारी और बच्चों की भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में मीडिया की मायावी संस्कृति, सबको बाज़ार या ग्लोबल मंडी में जकड़ लेना चाहती है, इन्टरनेट, चिटचेट के साथ उत्तेजनामूलक समाचारों के बीच परम्परा और संस्कृति में मिली दादी-नानी की कहानियों से बच्चे दूर होते जा रहे हैं। ऐसे जटिल समय में भी प्रकृति और परम्परा से सम्पृक्त ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी’ उपन्यास की यह नई संरचना अनूठी है।
Hindi Ki Manak Vartani
- Author Name:
Dr. K.C. Bhatia +1
- Book Type:

- Description: "हिंदी की मानक वर्तनी—कैलाशचंद्र भाटिया प्रस्तुत पुस्तक में हिंदी के तीन अत्यधिक व्यावहारिक पक्षों को रखा गया है—वर्तनी, विरामचिह्न तथा प्रूफ-संशोधन। उक्त तीनों पक्ष एक-दूसरे से इतने अधिक संबद्ध हैं कि पृथक् करने में कठिनाई है। प्रूफ-संशोधन में जहाँ वर्तनी का शुद्ध रूप रखना पड़ता है, वहीं विरामचिह्नों के ठीक प्रयोग का। ‘मानक हिंदी वर्तनी’ का कार्यक्षेत्र केंद्रीय हिंदी निदेशालय का है, जिनकी सिफारिशों को इसमें समुचित स्थान दिया गया है। वर्तनी का क्षेत्र मात्र शब्दों तक नहीं है, उसमें संक्षिप्त रूप, प्रतीक, व्यक्ति-स्थान नामों का अपार भंडार है। वर्तनी से ही विरामचिह्न जुड़े हुए हैं। यह सर्वविदित है कि पूर्ण विराम ‘।’ के अतिरिक्त सभी चिह्न अंग्रेजी के संसर्ग से प्राप्त हुए हैं। व्याकरण की विभिन्न पुस्तकों में यत्किंचित् सामग्री विरामचिह्नों पर भी है। इस पुस्तक में पहली बार इन्हें विस्तार से समझाया गया है; जिससे विद्यार्थी व सुधी पाठक लाभान्वित होंगे। प्रूफ-संशोधन कार्य उक्त दोनों से जुड़ा हुआ है। हिंदी पत्रकारिता में भी अब इसकी आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा है। साधारणत: हिंदी लेखक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे ही, साथ ही विद्वानों को इस दिशा में अंतिम रूप से निर्णय लेने में चिंतन का अवसर मिलेगा। "
Bisrampur Ka Sant
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:

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Description:
‘बिस्रामपुर का संत’ समकालीन जीवन की ऐसी महागाथा है जिसका फलक बड़ा विस्तीर्ण है और जो एक साथ कई स्तरों पर चलती है।
एक ओर यह भूदान आन्दोलन की पृष्ठभूमि में स्वातंत्र्योत्तर भारत में सत्ता के व्याकरण और उसी क्रम में हमारी लोकतांत्रिक त्रासदी की सूक्ष्म पड़ताल करती है, वहीं दूसरी ओर एक भूतपूर्व ताल्लुकेदार और राज्यपाल कुँवर जयतिप्रसाद सिंह की अन्तर्कथा के रूप में महत्त्वाकांक्षा, आत्मछल, अतृप्ति, कुंठा आदि की जकड़ में उलझी हुई ज़िन्दगी को पर्त-दर-पर्त खोलती है। फिर भी इसमें सामन्ती प्रवृत्तियों की ह्रासोन्मुखी कथा-भर नहीं है, उसी के बहाने जीवन में सार्थकता के तन्तुओं की खोज के सशक्त संकेत भी हैं! यह और बात है कि कथा में एक अप्रत्याशित मोड़ के कारण, जैसा कि प्रायः होता है, यह खोज अधूरी रह जाती है।
‘राग दरबारी' के सुप्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल की यह कृति, कई आलोचकों की निगाह में उनका सर्वोत्तम उपन्यास है।
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