Kolahal Se Door
Author:
Tomas HardyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
‘कोलाहल से दूर’ उपन्यास के केन्द्र में नायिका बाथशीबा एवरडीन और उसे अपने-अपने ढंग से प्रेम करनेवाले तीन व्यक्तियों—किसान से गड़रिया बना गैब्रिएल ओक, धनी किसान बोल्डवुड और उच्छृंखल सार्जेंट ट्रॉय—की कहानी है, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में हार्डी शहरों के कोलाहल से दूर ग्राम्य जीवन की जो तस्वीर खींचते हैं, वह उनका वास्तविक कथ्य है। अपनी विशिष्ट शैली में वह बीच-बीच में मानवीय व्यवहार, उसकी कमज़ोरियों, बदलते वक़्त और विवाह की संस्था पर टिप्पणियाँ करते चलते हैं। उपन्यास के अन्त में बाथशीबा सामाजिक प्रतिष्ठा में अपने से काफ़ी नीचे गैब्रिएल से विवाह कर लेती है जिसके चरित्र को हार्डी ने उच्च मानवीय गुणों से नवाज़ा है। बाथशीबा के रूप में हार्डी ने जिस स्वतंत्र, आवेगपूर्ण और अपनी मर्ज़ी से चलनेवाली स्त्री का चरित्र गढ़ा है, वह भी विक्टोरियन युग की कठोर मर्यादाओं की एक चुनौती थी।
ISBN: 9788126713929
Pages: 387
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सुप्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक और अप्रतिम नेता ई.एम.एस. नम्बूदिरिपाद के शब्दों में, चिन्नप्प भारती ने अपने पूर्ववर्ती उपन्यास ‘संगम’ और ‘दाहम’ में किसानों के हृदय में पनप रही वर्ग-चेतना और संगठन-बोध की जिस बेल को पल्लवित होते दिखाया था, ‘शक्कर’ में आकर वह परवान चढ़ जाती है। इस रचना में वर्ग-संघर्ष और क्रान्ति के सिद्धान्त को परिभाषित करते हुए एक सुलझी हुई रणनीति प्रस्तुत की गई है।
दो भागों में विभक्त इस उपन्यास का कथानक रोचक और सुगठित है। मिल-मालिक और मज़दूरों के संघर्ष और टकराव में मेहनतकश किसानों की भूमिका को रेखांकित करना कृषि-प्रधान देश भारत की यथार्थ परिस्थितियों के नितान्त अनुरूप है। अंग्रेज़ सरकार की फूट डालकर राज करने की नीति को अपनाते हुए चीनी मिल-मालिक मज़दूर यूनियन के प्रयासों को नाकाम करने के लिए पुत्र के नेतृत्व में समान्तर यूनियन बनाकर किसानों को मज़दूरों के ख़िलाफ़ बरगलाता है। हड़ताल के पहले चरण में किसानों का संघ मज़दूरों के ख़िलाफ़ लड़ता है। इस टकराव में यूनियन नेता कन्दसामी घायल होकर अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं। उन्हें अस्थायी रूप से निलम्बित किया जाता है। नेता-विहीन मज़दूर-यूनियन की बागडोर सँभालने के लिए युवा नेता वीरन आगे आता है। कन्दसामी द्वारा यूनियन गतिविधियों में प्रशिक्षित वीरन मज़दूरों और किसानों को संगठित करके उन्हें वर्ग-संघर्ष की ओर प्रेरित करता है। इस बीच यूनियन का चुनाव आता है जिसमें उम्मीदवार के रूप में खड़े नेता को मज़दूरों और प्रबन्ध के सहयोग की आवश्यकता होती है। इस प्रयास के चलते एक समझौता होता है जिसमें मज़दूरों की ज़्यादातर माँगे मंजूर कर ली जाती हैं और कन्दसामी को नौकरी पर बहाल किया जाता है।
इस प्रधान कथा के अन्दर एक रोमांटिक उपकथा भी है। कन्दसामी की बहन और युवा मज़दूर नेता वीरन के बीच अंकुरित प्रेम अन्त में विवाह में परिणत होता है।
‘शक्कर’ उपन्यास में चिन्नप्प भारती ने मालिक-मज़दूर के बीच हो रहे टकराव का तर्कपूर्ण विश्लेषण किया है। यही नहीं, इस उपन्यास में मज़दूरों की क्रान्ति के सिद्धान्त को वास्तविकता के धरातल पर परिभाषित करके एक सुलझी हुई रणनीति को रूप देने में भारती को पूरी कामयाबी मिली है।
Kajar Ki Kothari
- Author Name:
Devakinandan Khatri
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‘काजर की कोठरी ‘चन्द्रकान्ता’ और ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’—जैसी कालजयी उपन्यासमाला के महान लेखक बाबू देवकीनन्दन खत्री का एक और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। दूसरे शब्दों में, एक बड़े ज़मींदार लालसिंह की अकूत दौलत को हड़पने की साज़िश और साथ ही उसे निष्फल करने के प्रयासों की अत्यन्त दिलचस्प दास्तान।
लालसिंह ने अपनी तमाम दौलत को एक सशर्त वसीयतनामे के द्वारा अपनी इकलौती बेटी सरला के नाम कर दिया है। यही कारण है कि शादी के ऐन वक़्त लालसिंह के दुष्ट भतीजे सरला को ही उड़ा ले जाते हैं और उसे क़ैद कर लेते हैं। साथ ही वे सरला के मंगेतर हरनन्दन बाबू के चरित्र-हनन की भी कोशिश में लग जाते हैं, और इनकी उन तमाम साज़िशों में शरीक है बांदी नामक एक अद्भुत वेश्या। लेकिन उसका मुक़ाबला करती है एक और ‘वेश्या’ सुलतानी। वास्तव में यह समूचा घटनाक्रम अनेक विचित्रताओं से भरा होकर भी अत्यन्त वास्तविक है, जिसके पीछे लेखक की एक सुसंगत तार्किक दृष्टि है।
इस रचना के माध्यम से जहाँ लेखक ने धनपतियों के बीच वेश्याओं की कूटनीतिक भूमिका को दर्शाया है, वहीं पूँजी के बुनियादी चरित्र—उसकी मानवता-विरोधी भूमिका—को भी उजागर किया है।
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