Jheeni-Jheeni Beeni Chadariya
Author:
Abdul BismillahPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
<span style="font-weight: 400;">बनारस के साड़ी-बुनकरों पर केन्द्रित अब्दुल बिस्मिल्लाह का यह उपन्यास हिन्दी कथा-साहित्य में एक नये अनुभव-संसार को मूर्त करता है और इस अनुभव-संसार में साड़ी-बुनकरों की जिस अभावग्रस्त और रोग-जर्जर दुनिया में हम मतीन</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">अलीमुन और नन्हें इक़बाल के सहारे प्रवेश करते हैं</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">वहाँ मौजूद हैं रऊफ चचा</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">नजबुनिया</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">नसीबुन बुआ</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">रेहाना</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">कमरुन</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">लतीफ</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">बशीर और अल्ताफ़ जैसे अनेक लोग</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">जो टूटते हुए भी साबुत हैं</span><span style="font-weight: 400;">–</span><span style="font-weight: 400;">हालात से समझौता नहीं करते</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">बल्कि उनसे लड़ना और उन्हें बदलना चाहते हैं और अन्ततः अपनी इस चाहत को जनाधिकारों के प्रति जागरूक अगली पीढ़ी के प्रतिनिधि इक़बाल को सौंप देते हैं। इस प्रक्रिया में लेखक ने शोषण के उस पूरे तंत्र को भी बारीकी से बेनकाब किया है जिसमें एक छोर पर है गिरस्ता और कोठीवाल</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">तो दूसरे छोर पर भ्रष्ट राजनीतिक हथकंडे और सरकार की तथाकथित कल्याणकारी योजनाएँ। साथ ही उसने बुनकर-बिरादरी के आर्थिक शोषण में सहायक उसी की अस्वस्थ परम्पराओं</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">सामाजिक कुरीतियों</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">मजहबी जड़वाद और साम्प्रदायिक नज़रिये को भी अनदेखा नहीं किया है।</span>
ISBN: 9788171786695
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
भारत-पाकिस्तान विभाजन भारतीय राज्य के इतिहास का वह अध्याय है जो एक विराट त्रासदी के रूप में अनेक भारतीयों के मन पर आज भी जस-का-तस अंकित है। अपनी ज़मीनों-घरों से विस्थापित, असंख्य लोग जब नक़्शे में खींच दी गई एक रेखा के इधर और उधर की यात्रा पर निकल पड़े थे, यह न सिर्फ़ मनुष्य के जीवट की बल्कि भारतवर्ष के उन शाश्वत मूल्यों की भी परीक्षा थी जिनके दम पर सदियों से हमारी हस्ती मिटती नहीं थी।
यशपाल का यह कालजयी उपन्यास उसी ऐतिहासिक कालखंड का महाआख्यान है। स्वयं यशपाल के शब्दों में यह इतिहास नहीं है, ‘कथानक में कुछ ऐतिहासिक घटनाएँ अथवा प्रसंग अवश्य हैं परन्तु सम्पूर्ण कथानक कल्पना के आधार पर उपन्यास है, इतिहास नहीं।’ अर्थात् यह उस ज़िन्दगी का आख्यान है जो अक्सर इतिहास के स्थूल ब्योरों में कहीं खो जाती है।
‘झूठा सच’ के इस दूसरे भाग ‘देश का भविष्य’ के केन्द्र में पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की समस्याएँ और उनके सामने उपस्थित नए सांस्कृतिक, नैतिक, सामाजिक और आर्थिक संकट हैं। नई राजनीतिक परिस्थितियों में कुछ लोग अपने साहस और जीवटता के बल पर जम जाते हैं, तो कुछ टूट भी जाते हैं।
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