Grihdaah
Author:
SharatchandraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘गृहदाह’ सामाजिक विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं का चित्रण करनेवाला शरतचन्द्र का एक अनूठा मनोवैज्ञानिक उपन्यास है।</p>
<p>मनोविज्ञान की मान्यता है कि व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं—एक अन्तर्मुखी और दूसरा बहिर्मुखी। ‘गृहदाह’ के कथानक की बुनावट मुख्यत: तीन पात्रों को लेकर की गई है। महिम, सुरेश और अचला। महिम अन्तर्मुखी है, और सुरेश बहिर्मुखी है। अचला सामाजिक विसंगतियाँ, विषमताओं और विडम्बनाओं की शिकार एक अबला नारी है, जो महिम से प्यार करती है। बाद में वह महिम से शादी भी करती है। वह अपने अन्तर्मुखी पति के स्वभाव से भली-भाँति परिचित है। मगर महिम का अभिन्न मित्र सुरेश महिम को अचला से भी ज़्यादा जानता–पहचानता है। सुरेश यह जानता है कि महिम अभिमानी भी है और स्वाभिमानी भी। सुरेश और महिम दोनों वैदिक धर्मावलम्बी हैं जबकि अचला ब्रह्म है। सुरेश ब्रह्म समाजियों से घृणा करता है। उसे महिम का अचला के साथ मेल–जोल क़तई पसन्द नहीं है। लेकिन जब सुरेश एक बार महिम के साथ अचला के घर जाकर अचला से मिलता है, तो वह अचला के साथ घर बसाने का सपना देखने लगता है। लेकिन विफल होने के बावजूद सुरेश अचला को पाने की अपनी इच्छा को दबा नहीं सकता है। आख़िर वह छल और कौशल से अचला को पा तो लेता है, लेकिन यह जानते हुए भी कि अचला उससे प्यार नहीं करती है, वह अचला को एक विचित्र परिस्थिति में डाल देता है।</p>
<p>सामाजिक विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं का शरतचन्द्र ने जितना मार्मिक वर्णन इस उपन्यास में किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। महिम अचला की बात जानने की कोशिश तक नहीं करता है। निर्दोष, निरीह नारी की विवशता और पुरुष के अभिमान, स्वाभिमान और अहंकार का ऐसा अनूठा चित्रण गृहदाह को छोड़ और किसी उपन्यास में नहीं मिलेगा।
ISBN: 9788183616041
Pages: 240
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
यह उपन्यास आत्मोपलब्धि को लक्षित एक लम्बी यात्रा की कथा है। यात्रा बाहरी उतनी नहीं जितनी आन्तरिक।
विवेक विवाहित युवक है लेकिन वह चाहता है अध्यात्म की राह से वह चरम उपलब्धि, जहाँ वह उस त्रिपुर सुन्दरी माया के साक्षात् दर्शन कर सके जो सम्पूर्ण स्त्री-शक्ति का एकीकृत पुंज है और अखिल सृष्टि जिसके वात्सल्य की छाँह में विश्राम करती है, फलती-फूलती है।
लेकिन अपने मार्गदर्शक गुरु के आश्रम में वह मिलता है श्यामलता से, जो अपने गार्हस्थ्य जीवन को विडम्बनाओं और अपनी अतुल रूप राशि के बीच कोई सामंजस्य नहीं बिठा पाती और साधना की डगर पर चल पड़ती है। विवेक में उसे अपना पूर्ण पुरुष दिखता है, और विवेक उसमें अपनी त्रिपुर सुन्दरी देखता है। बीच में है विवेक की पत्नी प्रियंवदा और उसका दु:ख।
एक लम्बा द्वन्द्व और अन्त में वह आत्मबोध जो विवेक अर्थात् पुरुष को स्त्री रूप में अपने चहुँओर उपस्थित शक्ति का साक्षात्कार करता है। वह जान लेता है कि नारी पुरुष की वासना-तृप्ति का साधन नहीं है, वह केवल उसकी सिद्धि का माध्यम है, और स्त्री की सिद्धि है सृष्टि का विकास।
विवेक के गुरु, स्वामी जी अन्त में बताते हैं कि संसार में रहो, सभी कर्म प्रभु-स्मृति को जाग्रत रखकर करो। और अपने दृष्टि-क्षेत्र में व्याप्त स्त्री-शक्ति में निहित त्रिपुर सुन्दरी को देखो।
अहं की क्षुद्रता और परम की असीमता के द्वन्द्व को उद्घाटित करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
Chand Achhoot Ank
- Author Name:
Nand Kishore Tiwari
- Book Type:

- Description: Chand Achhoot Ank
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