
Tulanatmak Saahitya Saiddhantik Pariprekshya
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
260
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
520 mins
Book Description
तुलनात्मक साहित्य के विकास की पिछली डेढ़-दो शताब्दियों में बहुत सारे सवालों, संकटों, चुनौतियों और सच्चाइयों से हमारा साक्षात्कार हुआ है। यह बात अब सिद्ध हो चुकी है कि तुलनात्मक साहित्य एक अध्ययन-पद्धति मात्र होने के बजाय एक स्वतंत्र ज्ञानानुशासन का रूप ले चुका है। एकल साहित्य से उसका कोई विरोध नहीं है, बल्कि दोनों के अध्ययन का आधार और पद्धति एक ही तरह की होती है। तुलनात्मक साहित्य का एकल साहित्य अध्ययन से अन्तर अन्तर्वस्तु, दृष्टिबिन्दु और परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से होता है।</p> <p>तुलनात्मक साहित्य अध्ययन को लेकर सबसे बड़ी भ्रान्ति तुलनीय साहित्यों की भाषाओं की विशेषज्ञता को लेकर है। केवल भाषाज्ञान से साहित्यिक अध्ययन की योग्यता या समझ हासिल हो जाना ज़रूरी नहीं है, इसलिए तुलनीय साहित्यों के मूल भाषाज्ञान पर तुलनात्मक साहित्य अध्ययन के प्रस्थान बिन्दु के रूप में अतिरिक्त बल देना इस अनुशासन से अपरिचय का द्योतक है। तुलनीय साहित्यों का भाषाज्ञान और उसमें दक्षता निश्चय ही वरेण्य है और तुलनात्मक साहित्य अध्ययन में साधक भी है, पर अधिकांश अध्ययनों के लिए अनुवाद (निश्चय ही अच्छा अनुवाद) आधारभूत और विकल्प हो सकता है। दरअसल अनुवाद को तुलनात्मक साहित्य के सहचर के रूप में देखना चाहिए।</p> <p>भारत में तुलनात्मक साहित्य अध्ययन के क्षेत्र में अधिकांश कार्य अंग्रेज़ी में और उसके माध्यम से हुआ है; अतः उसमें तुलनात्मक चिन्तन के भारतीय सन्दर्भ बहुत कम हैं। आज तुलनात्मक अध्ययन अनुशासन की उस सैद्धान्तिकी की तलाश अनिवार्य है, जो भारतेतर विचारकों और पश्चिमी चिन्तन को भी ध्यान में रखते हुए भारतीय मनीषा के अन्तर्मन्थन से निकली हुई मौलिक अवधारणाओं के सहारे विकसित हो।</p> <p>प्रस्तुत पुस्तक उपर्युक्त दिशा में आधार विकसित करने का हिन्दी में पहला व्यवस्थित उद्यम है।