Prayojanmulak Hindi Ki Nai Bhumika

Prayojanmulak Hindi Ki Nai Bhumika

Language:

Hindi

Pages:

622

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

1244 mins

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Book Description

भाषा किसी भी देश की संस्कृति का अक्षय कोष होती है। यही परम्परा से संस्कृति के विचारों को लेकर आधुनिकता से मिलाती है। वस्तुत: भाषा जुम्मा-जुम्मा कह चुकने का अमूर्त माध्यम ही नहीं होती है, बल्कि ख़ुद को अपने समाज और परम्परा से जोड़े रखने का प्रेम-बन्धन भी है। वह भटकाव और गुमनामी के अँधेरे में आस्था की अक्षत मशाल बन 'गाइड' की तरह आगे-आगे चल राह दिखाती है। सौभाग्य से, भारतीय सर्जनात्मकता का अपराजेय संकल्प हिन्दी उक्त सभी गुणों को जीती है। व्यक्ति द्वारा विचित्र रूपों में बरती जानेवाली इस हिन्दी भाषा को भाषा-विज्ञानियों ने स्थूल रूप से सामान्य और प्रयोजनमूलक इन दो भागों में विभक्त किया है।</p> <p>सुखद सूचना यह है कि हिन्दी की इन नितान्त ताज़ा-टटकी और कई सन्दर्भों में बेहद नई भाषिक-संरचना या नवजात शिशु रूप को केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के साथ-साथ तक़रीबन हर प्रादेशिक विश्वविद्यालयों ने अपने-अपने पाठ्यक्रमों में शामिल कर इसे सम्मानित किया है। प्रयोजनमूलक हिन्दी आज इस देश में बहुत बड़े फलक और धरातल पर प्रयुक्त हो रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का पुल बनाने में आज इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने एक ओर कम्प्यूटर, टेलेक्स, तार, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीप्रिंटर, दूरदर्शन, रेडियो, अख़बार, डाक, फ़िल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के माध्यमों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है, तो वहीं दूसरी ओर शेयर बाज़ार, रेल, हवाई जहाज़, बीमा उद्योग, बैंक आदि औद्योगिक उपक्रमों, रक्षा, सेना, इंजीनियरिंग आदि प्रौद्योगिकी संस्थानों, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों, आयुर्विज्ञान, कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, ए.एम.आई.ई. के साथ विभिन्न संस्थाओं में हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण दिलाने कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, सरकारी-अर्द्धसरकारी कार्यालयों, चिट्ठी-पत्री, लेटर पैड, स्टॉक-रजिस्टर, लिफ़ाफ़े, मुहरें, नामपट्ट, स्टेशनरी के साथ-साथ कार्यालय-ज्ञापन, परिपत्र, आदेश, राजपत्र, अधिसूचना, अनुस्मारक, प्रेस-विज्ञप्ति, निविदा, नीलाम, अपील, केवलग्राम, मंजूरी पत्र तथा पावती आदि में प्रयुक्त होकर अपने महत्त्व को स्वत: सिद्ध कर दिया है।</p> <p>कुल मिलाकर यह कि पर्यटन बाज़ार, तीर्थस्थल, कल-कारख़ाने, कचहरी आदि अब प्रयोजनमूलक हिन्दी की जद में आ गए हैं। हिन्दी के लिए यह शुभ है। अनेक विद्वानों के सहयोग से लिखी यह गम्भीर कृति अपने पाठकों को सन्तुष्ट अवश्य करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

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