Hindi Web Sahitya
Author:
Sunilkumar LawatePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
हिन्दी भाषा और साहित्य की विभिन्न वेबसाइट्स पर प्रकाशित साहित्य का यह पहला व्यवस्थित अनुसन्धान है। इसके अलावा इसमें कम्प्यूटर के उद्भव, वेबसाइटों के निर्माण और पोर्टल्स की बनावट आदि की बुनियादी जानकारी भी दी गई है। सीधे इंटरनेट पर प्रकाशित हिन्दी साहित्य का व्यापक परिचय देनेवाली यह पुस्तक ज्ञानभाषा के रूप में हिन्दी की क्षमता को भी रेखांकित करती है और इंटरनेट जैसे सर्वव्यापी मंच पर हिन्दी के नए उभरते भाषा-वैज्ञानिक स्वरूप को भी स्पष्ट करती है।</p>
<p>यह पुस्तक उन साहित्यकारों, समीक्षकों, अध्यापकों और रचनाकारों के लिए भी ‘आई ओपनर’ का काम करेगी जो अभी तक इंटरनेट से बचते आए हैं और उसकी क्षमता तथा उपयोगिता को नज़रअन्दाज़ करते रहे हैं। हिन्दी के प्रति उपयोजित प्रतिबद्धता (Applied Commitment) की भूमिका के प्रति आगाह कर यह पुस्तक हमें संगणकीय प्रयोग के लिए प्रोत्साहन भी देती है।</p>
<p>हिन्दी को विश्वभाषा के रूप में चिन्हित करती यह पुस्तक इसलिए भी अनूठी है कि इसमें एक भी मुद्रित सन्दर्भ नहीं है, जो है, सब ऑनलाइन बिब्लियोग्राफ़ी है।
ISBN: 9788126724536
Pages: 335
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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नाट्योत्पत्ति, नाट्यशास्त्र क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता। इस विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध नृशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शरीर विज्ञान, भाषा विज्ञान आदि से है। फिर नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर रूपक-संरचना समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। यह मानवीय क्रिया है। इसका सम्बन्ध समाज-प्रकृति-परिवेश से है, प्रगति प्रक्रिया से है, समय और स्थान से है। भविष्य से सम्बन्धित विचारों और तदनुरूप आशाओं से रहित मनुष्य की कल्पना करना असम्भव है। मानव जाति हमेशा ही बेहतर भविष्य का स्वप्न देखती रही है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास ही मानवजाति की मूल समस्या रही है। मनुष्य की गतिशीलता और उनके सक्रिय जीवन से भाषा की भाँति नाट्य का गहरा सम्बन्ध है। लेकिन ऐतिहासिक प्रगति या सामाजिक विकास के आधार को मान्यता न देकर धार्मिकता या दैवाधीनता को महत्त्व देकर इस नाट्यशास्त्र को बड़ा या विस्तृत आकार दिया गया है।
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