
Hindi Upanyas Ka Itihas
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
498
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
996 mins
Book Description
बीसवीं शताब्दी के अन्त के साथ हिन्दी उपन्यास की उम्र लगभग 130 वर्ष की हो चुकी है। बड़े ही बेमालूम ढंग से 1970 ई. में पं. गौरीदत्त की ‘देवरानी-जेठानी की कहानी’ के रूप में इसका जन्म हुआ, जिसकी तरफ़ लगभग सौ वर्षों तक किसी का ध्यान भी नहीं गया। लेखक ने पुष्ट तर्कों के आधार पर ‘देवरानी-जेठानी की कहानी’ को हिन्दी के प्रथम उपन्यास के रूप में स्वीकार किया है और 1970 ई. से 2000 ई. तक की अवधि में हिन्दी उपन्यास के ऐतिहासिक विकास को समझने का प्रयास किया है।</p> <p>हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकों के प्रामाणिक विवरण का अभिलेख सुरक्षित रखने की समृद्ध और विश्वसनीय परम्परा प्रायः नहीं है। इस कारण हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन में अनेक प्रकार की मुश्किलें आती हैं। इस पुस्तक में पहली बार लगभग 1300 उपन्यासों का उल्लेख उनके प्रामाणिक प्रकाशन-काल के साथ किया गया है। यह दावा तो नहीं किया जा सकता कि इस किताब में कोई महत्त्वपूर्ण उपन्यासकार या उपन्यास छूट नहीं गया है, पर इस बात की कोशिश ज़रूर की गई है। साहित्य के इतिहास में सभी लिखित-प्रकाशित रचनाओं का उल्लेख न सम्भव है न आवश्यक, इसलिए सचेत रूप में भी अनेक उपन्यासों का ज़िक्र इस पुस्तक में नहीं किया गया है।</p> <p>साहित्य के इतिहास में पुस्तकों की प्रकाशन-तिथियों की प्रामाणिकता के साथ-साथ यह भी ज़रूरी होता है कि सम्बद्ध विधा के विकास की धाराओं की सही पहचान की जाए। विधा के रूप में हिन्दी उपन्यास का विकास अभी जारी है। विकास ‘ऐतिहासिक काल’ में ही होता है और इतिहास में प्रामाणिक तथ्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कोशिश यह की गई है कि यह पुस्तक हिन्दी उपन्यास का मात्र ‘इतिहास’ न बनकर ‘विकासात्मक इतिहास’ बने।