
Bhartiya Puralipi
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
224
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
448 mins
Book Description
पुरालिपि-शास्त्र बड़ा ही रोचक विषय है। यह लिपि के विकास का अध्ययन सम्मुख रहता है।</p> <p>श्री डब्ल्यू.जी. बुहलर और महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के बाद पुरालिपि के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण खोज हुए हैं। मुअनजोदड़ों और हड़प्पा की खुदाइयों के बाद इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी और नई स्थापनाएँ हुई हैं। इन स्थानों से प्राप्त सामग्रियों से भारतीय लेखन-कला की प्राचीनता और उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस हालत में भारतीय पुरालिपि पर एक ऐसी पुस्तक की बड़ी उपयोगिता है। इस पुस्तक ने पुरालिपि क्षेत्र के तीस वर्षों का व्यवधान पाटने का काम किया है।</p> <p>प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन काल से सन् 1200 ई. तक भारतीय लेखन-कला का इतिहास प्रस्तुत है। विषय को सुगम बनाने के लिए क्रमबद्ध प्रकरणों में उसका विवेचन प्रस्तुत है। अन्त में आवश्यक सारणियाँ भी दी गई हैं।</p> <p>पुरालिपि-शास्त्र के छात्रों, भावी शोधकर्ताओं और अनुसन्धित्सु पाठकों के लिए यह ग्रन्थ विशेष उपयोगी है।