Alakshit Gaurav : Renu
Author:
Surendra Narayan YadavPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 559.2
₹
699
Available
'भाषा की जड़ों को हरियानेवाला रसायन जो उसे ज़िन्दा रखता है, उसे सम्पन्न करता है, वह 'लोक' का स्रोत है। इस स्रोत की राह दिखाने के लिए हम रेणु के ऋणी हैं।' हमारे समय की वरिष्ठतम गद्यकार कृष्णा सोबती ने अपने साक्षात्कारों आदि में अनेक बार इस बात का उल्लेख किया है। उन्हें लगता है कि रेणु ने सभ्य भाषाओं और नागरिकताओं के इकहरे वैभव के बीच भारत के उस बहुस्तरीय वाक् को स्थापित किया जो अनेक समयों की अर्थच्छटाओं को सोखकर सन्तृप्त ध्वनियों में स्थित हुआ है और वास्तव में वही है जो भारत के असली विट और सघन अर्थ-सामर्थ्य का प्रतिनिधित्व करता है।</p>
<p>रेणु ने अपने लोक के आनन्द और अवसाद इन्हीं ध्वनियों, इन्हीं भंगिमाओं में व्यक्त किए। दुर्भाग्य से देश के किसी और हिस्से से ऐसा साहस करनेवाले लेखक न आ सके, और सिर्फ़ यही नहीं, रेणु को और उनकी वाक्-भंगिमाओं को समझनेवाले लोगों की भी कमी महसूस की गई। परिणाम यह कि उनको बड़ा तो मान लिया गया लेकिन उनका बहुत कुछ ऐसा रह गया जिसे न समझा गया, न समझा जा सका।</p>
<p>यह पुस्तक रेणु के उसी अलक्षित को लक्षित है। लेखक का कहना है कि 'इसके पूर्व रेणु पर जो कहा गया है, वह तो कहा ही जा चुका है। यह पुस्तक उन सबके अतिरिक्त है, उनके खंडन-मंडन में नहीं है...सतह पर की अर्थ-चर्वणा बहुत हो चुकी। रेणु का अलक्षित ही रेणु के गौरव का आधार है।' अर्थात् वह अर्थ-लोक जो सुशिक्षित भावक के ज्यामितिक भाषा-बोध की पकड़ में आने से या तो रह जाता है, या ग़लत ढंग से पकड़ लिया जाता है। उम्मीद है, पढ़नेवाले इससे न सिर्फ़ रेणु को नए सिरे से पढ़ने को उत्सुक होंगे, बल्कि अपने समय की अस्पष्ट ध्वनियों को सुनने-समझने की सामर्थ्य भी जुटा पाएँगे।
ISBN: 9789387462199
Pages: 272
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आधुनिक हिन्दी-काव्य में भारतेन्दु युग से लेकर अब तक पुराणकथाओं के प्रयोग की विस्तृत, विविध एवं अविछिन्न परम्परा प्राप्त होती है। विशेष बात यह है कि आधुनिक हिन्दी-काव्य में प्रयुक्त पुराणकथाएँ, पुराण निर्दिष्ट आशय से भिन्न, परिवर्तित होती हुई काव्य-चेतना के परिप्रेक्ष्य में नवीन भावों से अनुवेशित होकर नितान्त नवीन सन्दर्भों की सृष्टि करती हैं।
भारतीय जनता की स्वातंत्र्य-चेतना एवं जीवित जोश को अभिव्यक्ति के लिए पौराणिक कथा-प्रसंगों एवं पत्रों का उपयोग भारतेन्दुयुगीन एवं द्विवेदीयुगीन कवियों की विवशता बन गई थी। छायावादी सूक्ष्म भावानुभूती एवं विचारानुभूती की अभिव्यक्ति के लिए पौराणिक कथाएँ सशक्त माध्यम सिद्ध होती हैं। भौतिक यथार्थवाद को स्वीकृति प्रदान करनेवाले प्रगतिवादी कवियों ने भी पुराणिक प्रतीकों का प्रयोग ख़ूब किया है।
Nai Kavita : Ek Sakshaya
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
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- Description: काव्य-आन्दोलन और कवि-व्यक्तित्व के बाद स्वतः कविताओं का अध्ययन समीक्षा-क्रम का शायद सही विकास माना जाएगा। ‘हिन्दी नव-लेखन’ (1960) तथा ‘अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्या’ (1968) के उपरान्त यह ‘नयी कविता : एक साक्ष्य’ (1976) आपको नए काव्यानुभव से साक्षात्कार की इसी दिशा में अग्रसर करेगा। नई कविता क्योंकि सम्पूर्ण आधुनिक साहित्यिक गतिविधि के केन्द्र में रही है इसीलिए इस अध्ययन के दौरान आप कविताओं के व्यक्तित्व में तो प्रवेश करेंगे ही—कभी-कभी उनसे टकराएँगे भी—साथ-ही-साथ इस रचना-युग की पूरी मानसिकता से भी परिचित हो सकेंगे। यहाँ समीक्षा का क्रम कवियों के अनुसार चलता है, पर उसके केन्द्र में कविताएँ हैं। तभी समझ में आता है कि कैसे रचना रचनाकार से बड़ी हो जाती है। समीक्षक को इन दोनों के बीच अपना दायित्व निभाना पड़ता है। नई कविता की चुनी हुई नौ कवियों की कविताएँ यहाँ उसके विशिष्ट समीक्षक के साक्ष्यरूप में प्रस्तुत है।
KASHMIR : Bharat-Pakistan Sambandhon ke Aaine Mein
- Author Name:
Sisir Gupta
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- Description: अगस्त-सितंबर 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध की मुख्य सीख यह थी कि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देनेवाली अराजकता की पृष्ठभूमि में आज एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था कार्यरत है, जो मँझली एवं छोटी शक्तियों को बल प्रयोग द्वारा मुद्दों के समाधान की अनुमति प्रदान नहीं करती है। आज की दुनिया में ऐसी अवस्था को दृष्टिगत करना कठिन है, जहाँ शत्रु को सफलतापूर्वक परास्त करने के उपरांत भारत अथवा पाकिस्तान में से किसी के भी द्वारा शांति की शर्तों का निर्धारण किया जाए। प्रस्तुत पुस्तक में भारत के विभाजन-काल की परिस्थितियों, जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय मामले पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चा, द्विपक्षीय वार्त्ताओं और इस मुद्दे पर महाशक्तियों के रुख तथा जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटने के बाद की बदली परिस्थिति, विकास कार्य एवं जम्मू- कश्मीर पुनरुत्थान आदि का विस्तृत और निष्पक्ष विवरण है। संबंधित पक्षों पर नेताओं, विशेषज्ञों की टिप्पणियाँ और प्रेस के उद्धरण पुस्तक को और भी पठनीय बनाते हैं। कश्मीर में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं, प्राध्यापकों के साथ-साथ अन्य पाठकों के लिए भी यह पुस्तक रोचक और ज्ञानवर्धक है।
Aadyabimb Aur Sahityalochan
- Author Name:
Krishna Murari Mishra
- Book Type:

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प्रोफ़ेसर कृष्णमुरारि मिश्र आधुनिक हिन्दी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। हिन्दी में आद्यबिम्बात्मक आलोचना के प्रवर्तन का श्रेय उन्हें प्राप्त है। साहित्यिक कृतियों की संरचनात्मक गहनताओं की व्याख्या और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिए उन्हें विशेष ख्याति मिली है। ‘आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन’ शीर्षक उनका प्रस्तुत ग्रन्थ इस आलोचना के सिद्धान्त और सम्प्रयोग से सम्बद्ध है। ग्रन्थ में तीन शीर्षक ग्रंथित हैं—'आद्यबिम्ब', 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' तथा ' आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप'।
'आद्यबिम्ब' शीर्षक के अन्तर्गत आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सैद्धान्तिक विवेचन है। इसमें फ़्रायड और युग की धारणाओं के मूलभूत अन्तर का हिन्दी में पहली बार उद्घाटन है। साथ ही आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सारभूत आख्यान है जिसमें यौगपत्य के अल्पज्ञात वैज्ञानिक सिद्धान्त की भी चर्चा है। 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' शीर्षक से मुख्यतया युग के कला-चिन्तन का विवेचन है। आद्यबिम्बात्मक आलोचना की सैद्धान्तिकी के इस विवेचन से सिद्ध है कि युग का कला-चिन्तन हमारे भारतीय साहित्य-चिन्तन के लिए विजातीय नहीं है। वह भारतीय साहित्यशास्त्र के कालसिद्ध निकषों का पोषक है। युग की कलाविषयक धारणाएँ रससिद्धान्त और ध्वनिसिद्धान्त के बहुत निकट हैं। भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य-हेतु के रूप में प्रतिभा के जिस स्वरूप की स्थापना की गई है, वह सामूहिक अचेतन की युगीय धारणा के निकट है। सर्जक के व्यक्तित्व की असाधारणता को भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी मुक्त कंठ से स्वीकार किया है। भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी काव्य की लोकमंगलकारिणी शक्ति पर बल दिया है। उन्होंने सर्जक, भावक और समाज के सन्दर्भ में काव्य के माध्यम से जिस आत्मोपलब्धि का उल्लेख किया है, उसमें आनन्द और लोकमंगल दोनों का समावेश है। 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप' शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी की आद्यबिम्बात्मक आलोचना के स्वरूप की सम्यक् विवृत्ति है।
आशा है, यह ग्रन्थ भी उनके पूर्व प्रकाशित ग्रन्थों की तरह हिन्दी में समादृत होगा।
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