
Nimnavargiya Prasang : Vol. 1
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
246
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
492 mins
Book Description
‘निम्नवर्गीय प्रसंग’ एक ऐसी रचना है जिसमें निम्न वर्ग अर्थात् आम जनता—ग़रीब किसान, चरवाहा, कामगार, स्त्री समाज, दलित जातियों—के संघर्षों और विचार को बहुत क़रीब से समझने का प्रयास किया गया है। यह रचना अभिजन के दायरे से बाहर जाकर निम्न वर्ग की ऐतिहासिक प्रक्रियाओं को परखने के साथ–साथ, अभिजन और निम्न जन की प्रक्रियाओं को दो अलग–अलग पटरियों पर न धकेलकर, इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध, आश्रय और द्वन्द्व के आधार पर उपनिवेश काल की हमारी समझ को गतिशील करती है।</p> <p>दरअसल निम्नवर्गीय इतिहास एक सफल और चौंका देनेवाला प्रयोग है जिसके तहत भारतीय समाज में प्रभुत्व और मातहती के बहुआयामी रूप सामने आते हैं। वर्ग-संघर्ष और आर्थिक द्वन्द्व को कोरी आर्थिकता (Economism) के कठघरे से आज़ाद कर उसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों और विशिष्टताओं का इसमें गहराई के साथ विवेचन किया गया <br />है।</p> <p>इस पुस्तक में स्वतंत्रता संग्राम, गांधी का माहात्म्य, किसान आन्दोलन, मज़दूर वर्ग की परिस्थितियाँ, आदिवासी स्वाभिमान और आत्माग्रह, निचली जातियों के सामाजिक–राजनीतिक और वैचारिक विकल्प जैसे अहम मुद्दों पर विवेकपूर्ण तर्क और निष्कर्षों से युक्त अद्वितीय सामग्री का संयोजन किया गया है। </p> <p>‘निम्नवर्गीय प्रसंग : भाग-2’ आम जनता से सम्बन्धित नए इतिहास को लेकर चल रही अन्तरराष्ट्रीय बहस को आगे बढ़ाने का प्रयास है। 1982 में भारतीय इतिहास को लेकर की गई यह पहल, आज भारत ही नहीं, वरन् ‘तीसरी दुनिया’ के अन्य इतिहासकारों और संस्कृतिकर्मियों के लिए एक चुनौती और ध्येय दोनों है। हाल ही में सबॉल्टर्न स्टडीज़ शृंखला से जुड़े भारतीय उपनिवेशी इतिहास पर केन्द्रित लेखों का अनुवाद स्पैनिश, फ़्रेंच और जापानी भाषाओं में हुआ <br />है।</p> <p>प्रस्तुत संकलन के लेख आम जनता से सम्बन्धित आधे-अधूरे स्रोतों को आधार बनाकर, किस प्रकार की मीमांसाओं, संरचनाओं के ज़रिए एक नया इतिहास लिखा जा सकता है, इसकी अनुभूति कराते हैं।</p> <p>रणजीत गुहा का निबन्ध ‘चन्द्रा की मौत’ 1849 के एक पुलिस-केस के आंशिक इक़रारनामों की बिना पर भारतीय समाज के निम्नस्थ स्तर पर स्त्री-पुरुष प्रेम-सम्बन्धों की विषमताओं का मार्मिक चित्रण है। ज्ञान प्रकाश दक्षिण बिहार के बँधुआ, कमिया-जनों की दुनिया में झाँकते हैं कि ये लोग अपनी अधीनस्थता को दिनचर्या और लोक-विश्वास में कैसे आत्मसात् करते हुए ‘मालिकों’ को किस प्रकार चुनौती भी देते हैं। गौतम भद्र 1857 के चार अदना, पर महत्त्वपूर्ण बागियों की जीवनी और कारनामों को उजागर करते हैं। डेविड आर्नल्ड उपनिवेशी प्लेग सम्बन्धी डॉक्टरी और सामाजिक हस्तक्षेप को उत्पीड़ित भारतीयों के निजी आईनों में उतारते हैं, वहीं पार्थ चटर्जी राष्ट्रवादी नज़रिए में भारतीय महिला की भूमिका की पैनी समीक्षा करते हैं।</p> <p>इस संकलन के लेख अन्य प्रश्न भी उठाते हैं। अधिकृत ऐतिहासिक महानायकों के उद्घोषों, कारनामों और संस्मरण पोथियों के बरक्स किस प्रकार वैकल्पिक इतिहास का सृजन मुमकिन है? लोक, व्यक्तिगत, या फिर पारिवारिक याददाश्त के ज़रिए ‘सर्वविदित' घटनाओं को कैसे नए सिरे से आँका जाए? हिन्दी में नए इतिहास-लेखन का क्या स्वरूप हो? नए इतिहास की भाषा क्या हो? ऐसे अहम सवालों से जूझते हुए ये लेख हिन्दी पाठकों के लिए अद्वितीय सामग्री का संयोजन करते हैं।