Sah-Saa
Author:
Geetanjali ShreePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Contemporary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
‘सह-सा’ छोटे-छोटे अकस्मातों में बनती व्यापक मानव नियति की कहानी है। रोज़मर्रा के अनाटकीय प्रसंगों की टकराहटों से बड़े सवालों के खुले में आ जाने की कहानी।
न्यायमूर्ति भूलेराम मिसिर अवकाश-प्राप्ति के बाद पत्नी प्रेमिला, बेटी चिया, और अपाहिज अम्मा के साथ रह रहे हैं। पत्नी व बेटी नौकरी पर निकल जाती हैं और घर की ज़िम्मेदारियाँ खुशी खुशी उन्होंने अपने ऊपर ले ली हैं। माँ अपनी शोर करती पटरागाड़ी पर बैठ घर भर का मुआयना करती रहती हैं। भूलेराम का बेटा, श्रवण, दूसरे शहर में है। दो नौकर हैं, शम्भु और उसकी जिज्जी। सब साथ भी हैं, अलग-थलग भी। घरों के जाने पहचाने शीतयुद्ध में रत, जिसे भूलेराम खुला युद्ध नहीं बनने देते। हँसते-खेलते सब पर आदतन चिल्लाते हैं, और बिना डींग-दावे के सबका ध्यान रखते हैं।
सहसा एक दिन वे बेआराम हो जाते हैं। प्यार से बनाये उनके वन-प्रांगण में एक गौरैया उनकी बाँह पर आ बैठती है। वे मुस्कुराते हैं कि बाँह को डाल समझ रही है पर तभी मन में संदेह कौंधता है कि उन्हें देख ही नहीं रही शायद। ‘मैं क्या अदृश्य? हवा? प्रेत? भूत सा फिरता अपने घर में।’ यह संदेह यादों की लंबी कड़ी से जुड़ता है। वे जर्जराने लगते हैं और अचानक बीमारी के एक झटके में दम तोड़ देते हैं। जीते जी अदृश्य होने लगे भूले मृत्योपरांत चारों ओर छा जाते हैं।
प्रकट कथा के पीछे, उसके अनकहे में, एक और कथा भी चलती है जो दिखाती है कि इस वाचाल समय में हम वही देखते सुनते हैं जो ढिंढोरा है, भड़कीला है, उसके पीछे हो रहे को नहीं। बात चाहे परिजनों की हो या नेताओं की या मेहनतकश मज़दूरों की, हम चुपचाप के अच्छे और बुरे दोनों को मिस कर देते हैं। भूले द्वारा चुपचाप किया गया अच्छा और चूहों द्वारा चुपचाप किया गया संहार इसीलिए छिपा रहता है।
इस कृति में भी गीतांजलि श्री की भाषा और शैली का अपना वैभव है। बदलती स्थितियों, मनःस्थितियों को उजागर करती कभी चुटीली, नुकीली, कभी प्रशांत, उदास और दार्शनिक। हमेशा बहुअर्थी। और इसमें है उस प्रकृति का अद्भुत वात्सल्य जिसे हम बेगाना बना बैठे हैं।
‘सह-सा’ एक अनूठी प्रेम गाथा है।
ISBN: 9789360860424
Pages: 368
Avg Reading Time: 12 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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