Solitude's Embrace
Author:
Anna BelmontePublisher:
Inkfeathers PublishingLanguage:
EnglishCategory:
Poetry1 Reviews
Price: ₹ 102
₹
120
Available
Solitude’s Embrace is born of independent musings, provocative suggestions and novel observations, all pieced together to offer readers a chance to explore their own world with a new perspective. Maybe even spark a script of their own.
With everything being outward and flashy, it can be a pleasant change of pace to switch the lens. To look closer to home, turn inward; not with judgment but with curiosity and awe. With over 150 possible branches in these pages to explore, get started to find which ones take root and speak to your individuality – grow a tree of thoughts all your own.
ISBN: -
Pages: 218
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 11-18
Country of Origin: Ireland
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अन्तिम चरण में रघुवीर सहाय की कविता पहले जैसी चित्रमय नहीं रही पर उसमें उनकी निरालंकार शैली में, मूर्तिमत्ता है—वह पारदर्शिता जो उनकी कविता की विशिष्टता रही है, अधिक उत्कट, सघन और तीक्ष्ण हुई है। भाववाची को, जैसे ग़ुलामी, रक्षा, मौक़ा, पराजय, उन्नति, नौकरी, योजना, मुठभेड़, इतिहास, इच्छा, आशा, मुआवज़ा, ख़तरा, मान्यता, भविष्य, ईर्ष्या, रहस्य आदि को, बिना किसी लालित्य या नाटकीयता का सहारा लिए, और निरे रोज़मर्रा को कुछ अलग ढंग से देखने की कोशिश में रघुवीर सहाय जैसा सच-ठोस-सजीव बनाते हैं, वह एक बार फिर सिद्ध करता है कि उनके यहाँ जीने की सघनता और शिल्प की सुघरता में कोई फाँक नहीं थी। कविता जीने का, इसके आशयों को आत्मसात् करने और सोचने का ढंग है—कविता जीवन का दर्शन या अन्वेषण या उसकी अभिव्यक्ति नहीं है—वह जीवन है उससे तदाकार है।
कविता अपने विचार बाहर से उधार नहीं लेती, बल्कि ख़ुद सोचती है, अपनी ही सहज-कठिन प्रक्रिया से अपना विचार अर्जित करती है—रघुवीर सहाय की कविताएँ कविता की वैचारिक सत्ता का बहुत सीधा और अकाट्य साक्ष्य हैं। हिन्दी के विचार-प्रमुख दौर में इस कविता-वैचारिकता का ऐतिहासिक महत्त्व है।
इस संग्रह में पहले के संग्रहों की छोड़ दी गई कुछ कविताएँ भी शामिल हैं और इस तरह यह संग्रह रघुवीर सहाय की कविता की यात्रा को पूर्ण करता है। अपनी मृत्यु के बाद भी रघुवीर सहाय लगातार तेजस्वी और विचारोत्तेजक उपस्थिति बने हुए हैं। उनका एक समय था पर आज ऐसे बहुत से हैं जो मानते हैं कि हिन्दी में सदा उनका समय रहेगा।
—अशोक वाजपेयी।
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