Ramyabhoomi
Author:
Bhabendra Nath SaikiaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Contemporary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
असमिया समाज के अद्भुत चितेरे भवेन्द्रनाथ शइकिया का समूचा साहित्य आम असमिया के सुख-दुख का दस्तावेज़ है। उनकी क़िस्सागोई भी ग़ज़ब की है। वह पाठकों को तुरन्त बाँध लेती है। पाठक उनकी कहानियों और उपन्यासों को अपनी आपबीती की तरह पढ़ने लगते हैं। भवेन्द्रनाथ के कथा-संसार की सबसे बड़ी ख़ूबी हैं उनके स्त्री पात्र। वैसे तो वे अपने सभी पात्रों के मनोविज्ञान को बहुत बारीकी से विश्लेषित करते हैं मगर जब बात स्त्री पात्रों की आती है तो वे हमें चकित कर देते हैं।
‘रम्यभूमि’ की कथा के केन्द्र में भी एक स्त्री चरित्र योगमाया है। विपन्न परिवार की लड़की योगमाया के सम्बन्ध घर आने-जाने वाले एक दबंग पुरुष से बन जाते हैं। इस सम्बन्ध को न परिवार स्वीकारता है, न समाज। पुरुष विवाहित है और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो जाती है मगर वह उसके जीवन-यापन के लिए पर्याप्त धन-सम्पत्ति छोड़ जाता है। लेकिन इससे योगमाया के जीवन का संघर्ष कम नहीं हो जाता। वह समाज के द्वारा अस्वीकृत सम्बन्ध के साथ जीती है और उसके बच्चों को भी उस यातना से गुज़रना पड़ता है। योगमाया का त्रासद जीवन पाठक के मन-मस्तिष्क को निरन्तर विचलित रखता है।
‘रम्यभूमि’ का कैनवास बहुत बड़ा है। यह केवल एक परिवार की संघर्ष-गाथा भर नहीं है, अपने समय की कहानी भी कहता है। इस कहानी में एक हरा-भरा जंगल कैसे धीरे-धीरे कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जाता है, कैसे नए-नए मानवीय सम्बन्ध बनते-बिगड़ते हैं, नई समस्याएँ और चुनौतियाँ आती हैं और एक शहरी समाज आकार लेता जाता है, सब कुछ शामिल है।
ISBN: 9789349159150
Pages: 272
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Balram
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- Description: केदारनाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा की तरह बलराम भी पत्नीमुखी प्रेम के चितेरे हैं। विपन्न से विपन्न घर में भी यदि पति या पिता संवेदनशील हो तो गृहस्थी सुखी हो सकती है। दाम्पत्य है तो एक बड़ा भाव ही, जिसमें नौ रसों का समाहार है—शृंगार से शुरू होकर यात्रा रौद्र, वीभत्स आदि के भभके संभालती हुई अंततः करुणा पर तिरोहित! ‘शुभ दिन’ पति-पत्नी की मैरिज एनिवर्सरी का दिन है! कभी बच्चा, कभी मूड, कभी थकान, किसी न किसी बहाने टलती रही दैहिक आपसदारी इस दाम्पत्य में क्षीण हो चली है, पर पति स्वयं को उस शुभ दिन भी आरोपित नहीं करता और पत्नी आँखें मूंदे इंतजार करती रहती है, पर जो टल गया है, उसका रस-बोध बहुत सघन है, जीवन में और कहानी में भी। इस मार्मिकता में यह कहानी ओ हेनरी की ‘द गिफ्ट्स ऑफ द मेजाई’ से तुलनीय लगती है। समकालीन हिन्दी कहानी में ‘शुभ दिन’ उस दिन की सरस प्रतीक्षा के रूप में पढ़ी जानी चाहिए, जब पुरुष स्त्रीचेता होगा, स्त्री की संकेत भाषा समझ पाने लायक। बलराम की तरह ही ‘शुभ दिन’ का नायक एक स्त्रीचेता नवल पुरुष है, जो स्त्री को बहस की सुविधा देता है और थककर सोई उसकी देह पर अपनी देह आरोपित नहीं करता! ऐसे ही संवेदनशील और हमदर्द पुरुष की प्रतीक्षा में आज की हर स्त्री है, जो अपनी वृत्तियों पर काबू रख सके और योग्य बनकर इंतजार कर सके कि स्त्री स्वयं उमड़कर उसका हाथ पकड़ लेगी! अपनी कहानियों में बलराम ऐसे संवेदनशील पुरुषों की कल्पना कर पाए, यह एक बड़ी बात है! इस संग्रह की सभी कहानियाँ ऐसी ही मोहक हैं। अनामिका
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