From Hampi to Harappa
Author:
C. L. L. Jayaprada, Tirumala RamachandraPublisher:
Sahitya AkademiLanguage:
EnglishCategory:
Biographies-and-autobiographies5 Reviews
Price: ₹ 551.95
₹
665
Available
"From Hampi to Harappa" is considered among the top ten Telugu autobiographies of the twentieth century. Ramachandra's honesty, self-reflection, and the conflict between his traditional Vaishnava beliefs and modern education make this book remarkable. During the nationalist struggle, he was attracted to extremist ideas but found his own path again through personal struggles. It's astonishing that someone who was a great scholar in Sanskrit, Telugu, Kannada, and Prakrit, had to experience hunger and travel across India to find work to feed himself in the 1930s and 40s. The book is filled with unbelievable incidents, such as his mentor Veturi Prabhakara Sastry experiencing extreme hunger while the author survived on very little food. Similarly, he survived on Ganga water for almost a month while waiting in Kanpur for a conman who had promised a business partnership. He did a variety of jobs, including working as a cataloguer in manuscript libraries, a hotel worker, and a Havaldar clerk in the military, before finally settling in a newspaper. Through his experiences, Ramachandra provides us with glimpses of the civilizations around Hampi and Harappa and insights into modern India during the Independence Movement.
ISBN: 9789355486370
Pages: 470
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: जैनेन्द्र कुमार हिन्दी के केवल मूर्धन्य कथाकार ही नहीं है अपितु प्रखर राष्ट्रवादी चिन्तक-विचारक भी है। वे हिन्दी भाषा में सोचने-विचारने वाले अन्यतम व्यावहारिक भारतीय दार्शनिक भी हैं तो भारत सहित वैश्विक राजनीति पर गहरी दृष्टि रखनेवाले प्रबुद्ध राजनैतिक विशेषज्ञ भी। वे स्वाधीनता आन्दोलन के तपोनिष्ठ सत्याग्रही भी रहे जिन्होंने स्वाधीनता मिलने के बाद भी अपने समग्र जीवन और लेखन क्रो सत्याग्रह बनाया। उन्होंने जो लिखा और जिया वह हमेशा एक नई राह की खोज का करण बना। कहानी और उपन्यास को नई भाषा, शिल्प तथा अधुनातन प्रविधियों में ढालकर जैनेन्द्र ने उन विषयों को प्रमुखता दी, जिन पर विचार करने का साहस पहले न किया जा सका। इसमें प्रमुखता से वह स्त्री उभरी, जिसे सदियों से उत्पीड़ित किया जाता रहा है। अपने दर्शन में आत्म को प्रतिष्ठित करनेवाले, विचारों में भारतीय-राष्ट्र-राज्य को अधिकाधिक सर्वोदय में देखनेवाले तथा जीवन में एक गृहस्थ संन्यासी का आदर्श प्रस्तुत करनेवाले जैनेन्द्र कुमार का महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, विनोबा भावे, राधाकृष्णन, जयप्रकाश नारायण, इन्दिरा गाँधी आदि राष्ट्रीय नेताओं से सीधा संवाद था। पर यह संवाद राष्ट्रीय हितों के लिए था, निजी स्वार्थों के लिए नहीं। ऐसे जैनेन्द्र कुमार के विराट व्यक्तित्व को उनकी जीवनी ‘अनासक्त आस्तिक' में देखने और उनके क्रमिक विकास को परखने का एक बड़ा प्रयत्न है, जो निश्चय ही उन्हें नए सिरे से समझने में सहायक होगा। कहना न होगा कि जैनेन्द्र साहित्य के मर्मज्ञ आलोचक ज्योतिष जोशी द्वारा मनोयोग से लिखी गई यह जीवनी पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी है।
Aamader Shantiniketan
- Author Name:
Shivani
- Book Type:

- Description: कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई ज़मीन बनाई थी, जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे। उन्होंने मानवीय संवेदना और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज़्यादा पढ़े जानेवाले लेखकों में एक होकर रहीं। कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया। अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने क़रीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया। इस पुस्तक में ‘गुरुपल्ली’, ‘गुरुदेव की कर्मभूमि’, ‘शान्तिनिकेतन की गुरुपल्ली’, ‘आश्रम के पर्व’, ‘कुछ महत्त्पूर्ण उत्सव’, ‘आश्रम के विकास में गुरुदेव का योग’, ‘गांधीजी और गुरुदेव’, ‘अनेक विभूतियों का आगमन’, ‘श्रीनिकेतन का मेला’, ‘खेलकूद और मनोरंजन’, ‘आश्रमवासियों के लिए गुरुदेव के गीत’, ‘छात्रों का अतिथि-प्रेम’, ‘गुरुदेव की आत्मीयता’, ‘सादा पर कलापूर्ण रहन-सहन’, ‘गुरुर्ब्रह्मा’, ‘ओ रे गृहवासी’, ‘तुई जे पुरुष मानुष रे!’, ‘आश्रम पर काले बदल’ शीर्षक निबन्ध शामिल हैं, जिनका सम्बन्ध लेखिका के शान्तिनिकेतन प्रवास से है। आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसन्द आएँगी!
Padhi Padhi Ke Patthar Bhaya
- Author Name:
Nandkishore Nandan
- Book Type:

- Description: जाति-भेद आज भी हमारे समाज की एक गहरी खाई है जिसमें बतौर समाज और राष्ट्र हमारे देश की जाने कितनी सम्भावनाएँ गर्क होती रही हैं। आज़ादी के बाद संविधान की निगाह में हर नागरिक बराबर है, बावजूद इसके भेदभाव के जाने कितने रूप हमें शासित करते हैं। कई बार लगता है कि बिना ऊँच-नीच के, बिना किसी को छोटा या बड़ा देखे हुए हम अपने आप को चीन्ह ही नहीं पाते। और भी दुखद यह है कि शिक्षा भी अपने तमाम नैतिक आग्रहों के बावजूद हमारे भीतर से इन ग्रन्थियों को नहीं निकाल पाती। इस पुस्तक को पढ़ते हुए आप अनेक ऐसे प्रसंगों से गुज़रेंगे जहाँ उच्च शिक्षा-संस्थानों में जाति-भेद की जड़ों की गहराई देखकर हैरान रह जाना पड़ता है। इस आत्मकथा के लेखक को अपनी प्रतिभा और क्षमता के रहते हुए भी स्कूल स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक बार-बार अपनी जाति के कारण या तो अपने प्राप्य से वंचित होना पड़ा या वंचित करने का प्रयास किया गया। लेखक का मानना है कि व्यक्ति की प्रतिभा और उसका ज्ञान उसके मन और मस्तिष्क के व्यापक क्षितिज खोलने के साधन हैं लेकिन आज वे अधिकतर अनैतिक ही नहीं, संकीर्ण और निर्मम बनाने के जघन्य साधन बन गए हैं। वे कहते हैं कि भारतीय समाज की यही विसंगति उसकी सम्पूर्ण अर्जित ज्ञान-परम्परा को मानवीय व्यवहार में चरितार्थ न होने के कारण मानवता का उपहास बना देती है और आदर्श से उद्भासित उसकी सारी उक्तियाँ उसका मुँह चिढ़ाने लगती हैं। यह आत्मकथा हमें एक बार फिर इन विसंगतियों को विस्तार से देखने और समझने का अवसर देती है।
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