Sarvahara Saamant : D. P. Tripathi
Author:
Raghavendra Dubey BhaauPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
एक ऐसे व्यक्ति के बारे में लिखना, जो अपने जीवन काल में ही लीजेंड बन चुका हो, वास्तव में दुस्साहस ही कहलाएगा। लेकिन मुझे यह दुस्साहस करना ही था क्योंकि जिस व्यक्ति की शान में मैं ये शब्द कह रहा हूँ, आखिरकार उसी ने तो दुस्साहस करना सिखाया था। मैं जानता हूँ कि मेरे ही शब्द मुझसे छल करेंगे, जब मैं डी. पी. त्रिपाठी को शब्दों की श्रद्धांजलि दूँगा।</p>
<p>17 मार्च, 1983 को लन्दन के हाईगेट कब्रिस्तान में कार्ल मार्क्स की कब्र पर बोलते हुए उनके दोस्त फ्रेडरिक एंजिल्स ने कहा था, “तमाम पीड़ा और पीड़ादायकों की कटु आलोचनाओं को यूँ तो कार्ल मार्क्स अनदेखा ही करते थे। जवाब तभी देते थे जब अत्यन्त जरूरी हो जाए। लोगों का प्यार और उनसे मिलनेवाली प्रतिष्ठा के बीच उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। साइबेरिया से लेकर कैलिफोर्निया और यूरोप से लेकर अमेरिका तक में लोगों ने शोक मनाया। मैं जोर देकर कहना चाहता हूँ कि उनकी जिन्दगी में उनके हजारों विरोधी थे लेकिन उनमें एक भी उनका व्यक्तिगत शत्रु नहीं था।” डी. पी. त्रिपाठी के जाने पर भी कुछ ऐसा ही हुआ था। डी. पी. मार्क्स नहीं थे लेकिन दोनों के बीच एक बात में तो साम्य अवश्य है कि डी. पी. त्रिपाठी के जीवन में भी कोई उनका शत्रु नहीं था। वे अजातशत्रु थे। उनके पास विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों के साथ बेहतर रिश्ता बनाने और कायम रखने का हुनर तो था ही, अपनी प्रतिबद्धताओं और सरोकारों के प्रति हमेशा सचेत रहना भी उन्हें अलहदा दर्जे का अधिकारी बनाता है।</p>
<p>विचार और सरोकार को अपने जीवन में साकार करने वाला उनके जैसा विरले होते हैं। विचार और चिन्तन की उनकी उत्कंठा ने ‘थिंक इंडिया’ जैसे जर्नल को जन्म दिया। विचारों की स्वायत्तता का उनका आग्रह इतना प्रबल था कि जिस विचार से वे सर्वथा इत्तेफाक नहीं रखते थे या यूँ कहें कि जिस विचार के विरोधी होते थे, उस विचार को भी बहस के बीच में ले आने का प्रयत्न करते थे।</p>
<p>डी. पी. त्रिपाठी ने राजनीति को अपना ठिकाना तो जरूर बनाया, लेकिन उनका मन कविता में ही रचा रहा। यदि मैं कहूँ कि वे राजनीति की कविता थे, तो शायद गलत नहीं होगा। उनके विरोधी विचार के लोग भी उनकी इज्जत करते थे। सच कहें, तो वे इस युग के धरोहर थे, आज के सुकरात थे। जो भी उनके सम्पर्क में आया, उनसे मुहब्बत कर बैठा।</p>
<p>—कुमार नरेंद्र सिंह</p>
<p>
ISBN: 9789390971121
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: बहरहाल, फ़िल्मी दुनिया के साथ मेरा दूसरा सम्पर्क किशोर साहू के माध्यम से हुआ। उन दिनों ‘हंस’ शुरू नहीं हुआ था और हम अक्षर प्रकाशन से पुस्तकें छाप रहे थे। किशोर की आत्मकथा मुझे अच्छी लगी और मैंने उसे छापने का मन भी बना लिया। किशोर की फ़िल्मों का मैं पुराना भक्त था। ‘राजा’, ‘कुँवारा बाप’, 'सावन आया रे’ इत्यादि फ़िल्में मैं कई-कई बार देख चुका था। सबसे अन्त में किशोर साहू को मैंने ‘गाइड’ में देखा। रमोला किशोर की प्रिय हीरोइन थी। नन्ही-मुन्नी-सी चंचल, चुलबुली और समर्पित लड़की। कलकत्ते में मुझे पता लगा कि इक़बालपुर रोड के जिस फ़्लैट में मैं रहता हूँ उसके चार-पाँच मकान बाद ही रमोला भी रहती है। एक रोज़ उस घर का दरवाज़ा खटखटाने पर निकली एक काली ठिंगनी बुढ़िया से जब मैंने रमोला का नाम लिया तो उसने धड़ाक से दरवाज़ा बन्द कर लिया। यह मेरे लिए भयंकर मोहभंग था। क्या इसी रमोला की तस्वीर मैं अपनी डायरी में लिए फिरता था और कविताएँ लिखता था। किशोर साहू से मिलने से वर्षों पहले उनके पिता कन्हैयालाल साहू से मेरा लम्बा पत्र-व्यवहार रहा है। वे नागपुर के पास रहते थे और सिर्फ़ किताबें पढ़ते थे। उनके हिसाब से हिन्दी में एकमात्र आधुनिक लेखक किशोर साहू थे। मैंने भी किशोर साहू के दो-तीन कहानी-संग्रह पढ़े थे और वे सचमुच मुझे बेहद बोल्ड और आधुनिक कहानीकार लगे थे। दुर्भाग्य से हिन्दी कहानी में उनका ज़िक्र नहीं होता है, वरना वे ऐसे उपेक्षणीय भी नहीं थे। आत्मकथा प्रकाशन के सिलसिले में किशोर साहू ने मुझे बम्बई बुलाया। स्टेशन पर मुझे लेने आए थे किशोर के पिता कन्हैयालाल साहू। मैं ठहरा कमलेश्वर के यहाँ था। शाम को किशोर के यहाँ खाने पर उस परिवार से मेरी भेंट हुई। अगले दिन किशोर मुझे अपने वर्सोवा वाले फ़्लैट पर ले गए, जहाँ वे अपना पुराना बँगला छोड़कर शिफ़्ट कर रहे थे। यहाँ बीयर पीते हुए हमने दिन-भर आत्मकथा के प्रकाशन पर बात की। वे इस आत्मकथा में दुनिया-भर की तस्वीरें ख़ूबसूरत ढंग से छपाना चाहते थे। लागत देखते हुए हम लोगों की स्थिति उस ढंग से छापने की नहीं थी। उन्होंने शायद कुछ हिस्सा बँटाने की भी पेशकश की। मगर वह राशि इतनी कम थी कि आत्मकथा को अभिनन्दन-ग्रन्थ की तरह छाप सकना हम लोगों की सामर्थ्य के बाहर की बात थी। आख़िर बात नहीं बनी और मुझे दिल्ली वापस आना पड़ा। वैसे किशोर में एक ख़ास क़िस्म का आभिजात्य था और वह नपे-तुले ढंग से ही बातचीत या व्यवहार करते थे। —राजेन्द्र यादव
Aap-Biti
- Author Name:
Marc Chagall
- Book Type:

- Description: इन सफों का वही अर्थ है जो चित्रित सतह का है। यदि मेरे चित्रों में छिपने की कोई जगह होती, तो मैं उसमें सरक जाता...या शायद वे मेरे किसी चरित्र के पीछे चिपके होते या ‘संगीतकार’ के पाजामे के पीछे होते जिसे मैंने अपने म्यूरल में चित्रित किया है?...कौन जानता कि पीठ पर क्या लिखा है? आर.एस.एफ़.एस.आर. के समय में। मैं चाहकर चिल्लाता : हमारे बिजली के मचान हमारे पैरों तले सरक रहे हैं, क्या तुम महसूस कर सकते हो? और क्या हमारी सुघतय कला में पूर्व चेतावनी नहीं थी, हालाँकि हम लोग वास्तव में हवा में हैं और एक ही रोग से ग्रस्त, स्थायित्व के लिए लालायित। वे पाँच साल मेरी आत्मा मथते हैं। मैं दुबला हो चूका हूँ। मैं भूखा भी हूँ। मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ फिर से, बी...सी...पी...मैं थक चूका हूँ। मुझे अपनी पत्नी और बेटी के साथ आना चाहिए। मुझे तुम्हारे नज़दीक आकर लेटना चाहिए। और, शायद, यूरोप मुझसे प्रेम करे, उसके साथ, मेरा रूस।
Manjil Se Jyada Safar
- Author Name:
Vishvanath Pratap Singh
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक सवालों के ज़रिए विश्वनाथ प्रताप सिंह की राजनीतिक जीवनी है, आत्मकथा और जीवन-वृतान्त से अलग। पूरी पुस्तक प्रश्नोत्तर शैली में है। राजा बहादुर मांडा राम गोपाल सिंह ने उन्हें बचपन में गोद लिया। इस तरह वे डैया से मांडा परिवार के हो गए। ये दोनों रियासतें पड़ोसी हैं। बचपन से वे सृजनशील रहे। राजनीति में क़दम रखने और शिखर तक पहुँचने की यात्रा का इस पुस्तक में रोचक वृतान्त है। कवि और कलाकार बने रहने के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सक्रिय राजनीति से अवकाश लिया। उनका स्वास्थ्य जैसा भी रहा, वह उनकी संकल्प-शक्ति में कभी मामूली अड़चन भी नहीं डाल सका। इसीलिए वे मुम्बई, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के झुग्गी-झोंपड़ी वासियों के लिए उस तरह संघर्षरत रहे जैसे कि भरी जवानी में बने हुए थे। इस पुस्तक के ग्यारह अध्यायों में आख़िरी जो है उसमें कुछ मुद्दों पर उनके विचार हैं।
Mahamanav Mahapandit
- Author Name:
Kamla Sankrityayan
- Book Type:

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Description:
'महामानव महापण्डित’ शीर्षक यह कृति भारतीय साहित्य के अप्रतिम क्रान्तिधर्मी रचनाकार राहुल सांकृत्यायन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। लेकिन इसका महत्त्व सिर्फ़ यही नहीं है, बल्कि यह भी है कि राहुल-व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उनकी ही अन्तरंग आँखों ने देखा और लेखा है। ज़ाहिर है, कमला सांकृत्यायन की क़लम से लिखे गए ये संस्मरणात्मक और मूल्यांकनपरक लेख एक गहरी आत्मीयता से तो आप्लावित हैं ही, अपनी पारदर्शिता में भी विशिष्ट हैं। आकस्मिक नहीं कि पुस्तक के नाम में पहले 'महामानव’ शब्द है और फिर 'महापण्डित’।
पुस्तक में कुल पन्द्रह लेख हैं। इनमें से कुछ तो राहुल जी के लेखकीय, बौद्धिक कर्म का विवेचन करते हैं और कुछ उनके स्वभाव, पारिवारिक जीवनचर्या एवं रुचियों आदि को उजागर करते हैं। ऐसा करते हुए इन लेखों में जो श्रद्धाभाव है, उसके साथ एक प्रकार की नि:संगता भी है, जिससे यह कृति अनावश्यक भावुकता से मुक्त रह सकी है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि इस पुस्तक से गुजरते हुए पाठकगण राहुल जी को अपने बहुत निकट महसूस कर सकेंगे।
Aur Babasaheb Ambedkar Ne Kaha : Vols. 1-6
- Author Name:
DR. B.R. Ambedkar
- Book Type:

- Description: वह अम्बेडकर ही थे जिनके सिद्धान्तों ने दलित वर्ग को नई चेतना प्रदान की। और बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा...उन्हीं के 1920 से लेकर 1956 तक के लेखों, अभिलेखों और अभिभाषणों का संकलन है। पाँच खंडों में विभाजित इस रचनावली में डॉ. अम्बेडकर की उसी सामग्री को लिया गया है जो अभी तक केवल मराठी में उपलब्ध थी। हमें खुशी है कि हम इस सामग्री को पहली बार सीधे हिन्दी में उपलब्ध करा रहे हैं। पहले खंड में बाबासाहेब के 1920 से 1928 तक के लेख व अभिभाषण प्रस्तुत हैं। अपने भाषणों में डॉ. अम्बेडकर ने जहाँ ब्राह्मणवाद पर कड़ा प्रहार किया, वहीं उन्होंने दलितों को भी नया दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। प्रथम खंड में प्रस्तुत सामग्री बताती है कि किस तरह से हजारों सालों से दलितों पर हो रही जुल्म-ज्यादतियों के खिलाफ लडऩे के लिए बाबासाहेब ने दलित वर्ग को मानसिक रूप से सुदृढ़ किया और उन्हें उनके उद्धार का रास्ता भी दिखाया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह खंड दलित वर्ग ही नहीं बल्कि सामाजिक क्रान्ति में विश्वास रखनेवाले सभी महानुभावों की जिज्ञासाओं को तुष्ट करेगा।
Jab Se Aankh Khuli Hain
- Author Name:
Leeladhar Mandaloi
- Book Type:

- Description: हिन्दी के वरिष्ठ कवि-गद्यकार लीलाधर मंडलोई की यह आत्मकथा ‘जब से आँख खुली हैं’ केवल उनकी नहीं बल्कि सतपुड़ा के जंगलों में विस्थापित होकर पहुँचे खान-मज़दूरों, दलित-अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों की भी कथा है। कोरकू, गोंड़ और भारिया आदिवासियों के जीवन के स्याह चित्र भी इसमें आपको मिलेंगे। वेस्टर्न कोल्ड फ़ील्ड के छिन्दवाड़ा और दमुआ जिलों में कोयला-खानों की एक बड़ी शृंखला है। एक में कोयला ख़त्म हुआ तो दूसरी, तीसरी, चौथी और यह प्रक्रिया चलती रहती है जिसमें मज़दूरों को बार-बार उजड़ना पड़ता है। न पक्की नौकरी, न अस्पताल, न स्कूल, न मकान; बस भूख, ग़रीबी, अकाल मृत्यु, दुर्घटनाएँ और दुखों का असीम संसार। ओपनकास्ट और अंडर ग्राऊंड खदानों में बाल-मज़दूर का जीवन जीते हुए लेखक ने यह सब बचपन में ही देख-जी लिया था। आस-पास का जीवन त्रासद था लेकिन जीवन की प्रतिकूलताओं में बनी सामुदायिकता ने वहाँ संघर्ष, जिजीविषा और आनन्द की एक पारिस्थितिकी भी निर्मित की थी जिसमें गोंडवाना, बुन्देलखंड और बाहर से आए लोगों की बोली-बानी, भाषा, खानपान, रहन-सहन और संगीत की समावेशी संस्कृति दिखाई देती थी। इस आत्मकथा को पढ़ते हुए हम जान पाते हैं कि खदानों की गहराइयों ने खदानों को कैसे खोखला कर दिया, कैसे जल-स्तर हज़ारों फ़ीट नीचे चला गया, पानी का संकट गहराया और जंगल उजड़ने लगा। जंगल का जीव-जगत समाप्त होने लगा। कई प्रजातियाँ खो गईं। आदिवासियों का विस्थापन शुरु हुआ। उनकी संस्कृति लुप्त होने लगी। इसके अलावा प्राइवेट कम्पनी के कार्यकाल में शोषण, अनाचार, उपेक्षा, शोषण आदि के आख्यान भी इस पुस्तक का हिस्सा हैं।
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