Ekkis Bihari Aur Ek Madrasi
Author:
K. SureshPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
‘इक्कीस बिहारी और एक मद्रासी’ वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी के. सुरेश के प्रशासनिक दायित्वों के बीच मानवीय सम्बन्धों का दस्तावेज़ है। संग्रह में विविधवर्णी अनुभवों से संयुक्त कुल ग्यारह संस्मरण हैं, जिनमें लेखक की कोमलतम संवेदना के बारीक रेशों के माध्यम से एक प्रशासक के भीतर जाग्रत् मनुष्य से साक्षात्कार होता है।</p>
<p>प्रस्तुत संस्मरणों की विशेषता उनकी शैलीगत रोचकता है। इन्हें पढ़ते हुए कथा में काव्य और काव्य में कथारस के आनन्द के साथ ही व्यंग्यजनित कटाक्ष और उसमें निहित हास्य का भाव पाठक को अन्त तक बाँधे रखता है। ‘इक्कीस बिहारी और एक मद्रासी’ भाषा, प्रान्त और शैलीगत आग्रहों से मुक्त करता हुआ संवेदना के धरातल पर जीवन की समरसता की सिफ़ारिश करता है। इसमें एक संवेदनशील इनसान द्वारा परिस्थितियों के अनुरूप नियति का स्वीकार तथा उसके अनुरूप स्वयं को ढालने के कौशल का भी अंकन <br />है।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक न केवल शीर्षक के कारण, बल्कि विषयवस्तु और प्रस्तुति शैली की दृष्टि से भी बेहद उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है।
ISBN: 9788183616010
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘चोर का रोज़नामचा’ ज्याँ जेने की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में एक है। कथा और आत्मकथा के सटीक मिश्रण से तैयार इस पुस्तक में लेखक ने 1930 के दशक में अपनी यूरोप-यात्रा का वर्णन किया है। भूख, उपेक्षा, थकान और दुराचार को झेलते और चिथड़े पहने उन्होंने स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, जर्मनी आदि की यात्रा की और तत्कालीन जन-जीवन के एक उपेक्षित पहलू को अपनी भाषा में वाणी दी। उपन्यास की कथा विभिन्न अपराधियों, कलाकारों, दलालों और यहाँ तक कि एक जासूस के साथ भी लेखक के समलैंगिक सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। सभी उपकथाओं की सामान्य विषयवस्तु है एक आदर्श-विपर्यय जिसमें समर्पण का चरम रूप विश्वासघात है, क्षुद्र अपचार नायकत्व की पराकाष्ठा है और क़ैद का अर्थ आज़ादी है। उपन्यास में जेने समलैंगिकता, चोरी और विश्वासघात जैसे ‘गुणों’ से एक वैकल्पिक ‘साधुता’ का निर्माण करते हैं और इसके लिए वे ईसाई शब्दावली को इस्तेमाल करते हैं। हर चोरी वहाँ धार्मिक कर्मकांड की तरह होती है और उसके लिए उनकी तैयारी उसी तरह होती है जैसे संत प्रार्थना के लिए जाते हैं। जिन चीज़ों के लिए इस उपन्यास को विशेष रूप से जाना जाता है, वे हैं : गहन आत्मान्वेषण, रूढ़ नैतिक मूल्यों का अतिक्रमण और सामान्य समझ के अनुसार ‘नीच’ मानी जानेवाली स्थितियों के लिए एक सौन्दर्य शास्त्र गढ़ने का प्रयास। प्रस्तुत अनुवाद में कोशिश की गई है कि मूल की लय और कथ्य बरक़रार रहे।
Dard Jo Saha Maine
- Author Name:
Aasha Apraad
- Book Type:

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Description:
‘दर्द जो सहा मैंने...’ आशा आपराद की आत्मकथा है। ‘एक भारतीय मुस्लिम परिवार’ में जन्मी ऐसी स्त्री की गाथा जिसने बचपन से स्वयं को संघर्षों के बीच पाया। संघर्षों से जूझते हुए किस प्रकार आशा ने शिक्षा प्राप्त की, परिवार का पालन-पोषण किया, अपने घर का सपना साकार किया—यह सब इस पुस्तक के शब्द-शब्द में व्यंजित
है।अपनी माँ से लेखिका को जो कष्ट मिले, उनका विवरण पढ़कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। लेकिन पिता का स्नेह इस तपते रेतीले सफ़र में मरुद्यान की भाँति रहा। इस आत्मकथा में आशा आपराद ने जीवन की गहराई में जाकर और भी अनेक रिश्ते-नातों का वर्णन किया है।
सुख-दुःख, मिलन-बिछोह और अभाव-उपलब्धि के धागों से बुनी एक अविस्मरणीय आत्मकथा है ‘दर्द जो सहा मैंने...’
‘मनोगत’ में आशा आपराद ने लिखा है : “मेरी किताब सिर्फ़ ‘मेरी’ नहीं, यह तो प्रातिनिधिक स्वरूप की है, ऐसा मैं मानती हूँ। हमारा देश तो स्वतंत्र हुआ लेकिन यहाँ का इंसान ‘ग़ुलामी’ में जी रहा है। अगर यह सच न होता तो आज भी औरतों को, पिछड़े वर्ग को, ग़रीब वर्ग को अधिकार और न्याय के लिए बरसों तक झगड़ना पड़ता क्या! आज भी स्त्रियों पर अनन्त अत्याचार होते हैं। दहेज के लिए आज भी कितनों को जलना पड़ता है। बेटी पैदा होने से पहले ही उसे गर्भ में ‘मरने का’ तंत्र विकसित हो गया है। मैं चाहती हूँ, जो स्त्री-पुरुष ग़ुलामी का दर्द, अन्याय सह रहे हैं, शोषित हैं, अत्याचार में झुलस रहे हैं, उन सबको अत्याचार के विरोध में लड़ने की, मुक़ाबला करने की शक्ति प्राप्त हो, बल प्राप्त हो।”
निश्चित रूप से यह आत्मकथा प्रत्येक पाठक को प्रेरणा प्रदान करेगी।
मराठी से हिन्दी में अनुवाद स्वयं आशा आपराद ने किया है। जो अपने मराठी आस्वाद के चलते एक अद् भुत पाठकीय अनुभव प्रदान करता है।
Yoon Guzari Hai Ab Talak
- Author Name:
Seema Kapoor
- Book Type:

- Description: हिन्दी सिनेमा की सुपरिचित निर्माता, निर्देशक और लेखक सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ सिर्फ़ उनके ही जीवन की कहानी नहीं है, इसमें हम एक पूरे दौर के जाने-माने कलाकारों, फ़िल्मकारों के साथ-साथ उनके परिवार के बारे में भी जान पाते हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पारसी थियेटर के ज़माने की कला से जुड़ी रही है। पिता मदनलाल कपूर का पारसी रंगमंच को जो योगदान रहा, उसे अब भी याद किया जाता है। माँ कमल कपूर ‘शबनम’ शायर थीं। बड़े भाई रंजीत कपूर रंगमंच के और अन्नू कपूर हिन्दी सिने-जगत के जाने-माने चेहरे हैं। छोटे भाई निखिल कपूर कवि हैं। सीमा जी प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी की जीवन-संगिनी हैं, तो ज़ाहिर है इस आत्मकथा में उनका जीवन भी हमारे सामने आता है, वे संघर्ष भी दिखाई देते हैं जिनसे आप दोनों को गुज़रना पड़ा और ख़ुशियों के वे पल भी जो उन्होंने जिये। ओम पुरी के जीवन के अन्तिम दिनों की उदास करनेवाली छवियाँ हमें सिर्फ़ इसी पुस्तक में मिलती हैं। कलाकार-दम्पती ने उन दिनों को जैसे जिया, वह पठनीय तो है ही अनुकरणीय भी है। कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी सिने-जगत की बड़ी दुनिया के कई अहम पहलू भी इसमें पाठकों को देखने-जानने को मिलेंगे।
Rajendra Yadav
- Author Name:
Manmohan Thakore
- Book Type:

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Description:
मेरे अनन्य आत्मीय और बड़े भाई मनमोहन ठाकौर आज पंद्रह अगस्त को जीवन-मुक्त हो गए। उनके बिना अपने पिछले पैंतालीस वर्षों को सोच पाना असंभव है। मैं जो कुछ हूँ उसका बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा उन्हीं का बनाया हुआ है। परिवार क्या होता है, यह मैंने मनमोहन ठाकौर और कमला भाभी के माध्यम से ही जाना है। हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, उर्दू, बंगाली, ब्रज, राजस्थानी में समान अधिकार से लिखने-बोलने वाले ‘ठाकुर साहब’ इतिहास, साहित्य, मार्क्सवाद, ट्रेड यूनियन, विद्यार्थी आंदोलन-सभी से गहराई के साथ जुड़े रहे—भारत का तो शायद ही कोई कोना हो जहाँ वे अनेक बार नहीं गए, महफिलबाज़ और जीवंत साथ घनघोर पढ़ाकू और बुद्धिजीवी एक ऐसा यात्री जो दुनिया भर की भौगोलिक और बौद्धिक यात्राएँ करने के बाद वापस अपने अड्डे पर लौट आता है। कल्पना कर सकना मुश्किल है कि कलकत्ता में उनसे परिचय न हुआ होता तो मेरी जिंदगी क्या होती। मेरा भौतिक और भावनात्मक पता उन्हीं की मार्फ़त था। काश, वे दस-बारह दिन रुक जाते तो अपनी नवीनतम पुस्तक 'राजेन्द्र यादव मार्फत मनमोहन ठाकौर' को भी देख लेते। अब तो इस पुस्तक के अलावा ‘पप्पू’, ‘आवाजें बल्का बस्ती की’, ‘अंतरंग’, ‘एक नास्तिक की तीर्थ यात्रा’, ‘काले पानी का गहराव’ जैसी गद्य-रचनाएँ, ‘सौमित्र संकल्प’ और ‘सेलैक्टेड सौलिलॉकीज़’ जैसी काव्य पुस्तकें ही उनके नाम से जानी जाएँगी।
अजस्र ऊर्जा और उत्साह से भरे रहने वाले ठाकुर साहब अंतिम दो महीनों में बार-बार मृत्यु के हाथों से छूटकर वापस लौट आते थे—मगर अंततः कौन छूटा है उस पकड़ से।
Haashiye Par Padi Duniya
- Author Name:
Balkrishna Gupta
- Book Type:

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Description:
‘हाशिए पर पड़ी दुनिया’ बहुआयामी व्यक्तित्व-कृतित्व के धनी बालकृष्ण गुप्त पर केन्द्रित अनूठी पुस्तक है। डॉ. राममनोहर लोहिया और बालकृष्ण गुप्त की राजनीतिक सहभागिता एक इतिहास निर्मित कर चुकी है। अध्ययन, अनुभव, सक्रियता व प्रतिबद्धता का ऐसा उदाहरण दुर्लभ है। प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय लिखते हैं : ‘आप यदि लोहिया पर लिखेंगे तो बालकृष्ण जी छाया बन जाएँगे और बालकृष्ण जी पर लिखेंगे तो लोहिया की देह बनना तय है। वैसे लोहिया मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं जबकि बालकृष्ण जी मेरे गुरु के गुरुत्व होने की शक्ति, यानी कि वह वजह, जिससे लोहिया थे, उस शक्ति पर लिखना निश्चित ही आसान काम नहीं है।’
स्वाभाविक है कि बालकृष्ण गुप्त पर लिखे गए संस्मरणों एवं स्वयं उनके महत्त्वपूर्ण आलेखों से समृद्ध यह पुस्तक अपने समय का ज्वलन्त साक्ष्य है। सम्पादक द्वय सारंग उपाध्याय व अनुराग चतुर्वेदी ने पुस्तक का संयोजन पाँच खंडों में किया है। खंड-1 में आत्मीयजनों के संस्मरण बालकृष्ण गुप्त के कर्मठ जीवन का व्यवस्थित विवेचन करते हैं। खंड-2 (हाशिए पर पड़ी दुनिया), खंड-3 (बुद्धिजीवी नेहरू, लोहिया और वामपंथ) तथा खंड-4 (बिड़ला, गोयनका और अंधी योजनाएँ) में बालकृष्ण गुप्त के विपुल लेखन से चुने गए कुछ महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। समाज, राजनीति, अर्थनीति, लोकतंत्र, विदेशनीति, प्रशासन और विश्व परिदृश्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध ये लेख गुप्त की लेखन क्षमता का अकाट्य प्रमाण हैं।
इन आलेखों की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। समकालीन राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भों को समझने में इन विचारों से बहुत प्रकाश मिलता है। यह भी पता चलता है कि राजनीति में सक्रिय रहने के लिए कितने अध्ययन व विवेक की आवश्यकता होती है। ‘लोहियावाद’ को मूर्तिमान करनेवाले बालकृष्ण गुप्त का लेखन प्रेरणा प्रदान करता है।
खंड—5 (दस्तावेज़) में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के प्रसंग सँजोए गए हैं। पुस्तक में अनेक चित्र हैं जो स्वयं में एक दस्तावेज़ हैं। समग्रत: यह सुसम्पादित व विचार-समृद्ध पुस्तक प्रत्येक जागरूक पाठक के लिए अनिवार्य है।
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