Ram Kattha
Author:
Hiralal ShuklaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
आदिवासियों की कुडुख बोली की यह &#39;राम कत्था&#39; उनके अपने जीवन, समाज, संस्कृति और<br />वर्तमान तथा भविष्य की कथा है। यह उनकी अपनी सृष्टि को रचने और उसमें बसने की भी कथा है।<br />इस पुस्तक की रामकथा वही रामकथा है जो गोस्वामी तुलसीदास के &#39;रामचरितमानस&#39; की रही है। बस अन्तर<br />यह कि गोस्वामी जी ने तो रामकथा एक ही बार लिखी, पर इस जगत् के लोगों ने उसे अपने युग में अपनी-<br />अपनी भाषा-बोली में बार-बार लिखा, और अब भी लिख रहे हैं। यह एक कृति की जन से जुड़ने की बड़ी<br />सफलता होती है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने कर दिखाया था।<br />ज़ाहिर-सी बात है कि इस कथा में सबकी कथा थी और इस कथा की व्यथा में सबकी व्यथा, तभी तो यह कथा<br />गाथा बनी और बनती रही है। हमें इस रूप में भी इस पुस्तक को देखना चाहिए कि इसी कथा में राम के साथ<br />युद्ध में शामिल वे ही लोग थे, जो वानर, भालू, गिद्ध आदि जनजातियों के रूप में हाशिए की दुनिया के थे,<br />और जिनके बल पर जीत हासिल करते हैं राम। यह पुस्तक एक पुस्तक ही नहीं, जनजातियों की तरफ़ से एक<br />हस्तक्षेप भी है।
ISBN: 9788180319723
Pages: 116
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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