JANAKA AUR ASHTAVAKRA
Author:
Ashraf KarayathPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
ऋषि अष्टावक्र और उनके शिष्य, राजा जनक की कहानी बेहद रोचक प्रसंगों में से एक होकर भी ऐसी है जिसे कम ही लोग जानते हैं।
अष्टावक्र नाम का एक बालक राजा जनक के दरबार में राज्य के सबसे विद्वान् ऋषि-मुनियों से शास्त्रार्थ के लिए जाता है लेकिन राजा के दरबारी उसके विकृत शरीर के कारण उसका उपहास करते हैं। वह बालक जब शास्त्रार्थ में विजयी होता है तब जनक को अनुभव होता है कि उस बालक में असाधारण बुद्धिमत्ता है और वह उसके शिष्य बन जाते हैं। जनक पर जहाँ अपनी आध्यात्मिक मुक्ति की धुन सवार है, वहीं राजमहल की रहस्यमयी दुनिया में एक षड्यंत्रकारी योजना स्वरूप लेती है। देखते-ही-देखते मिथिला पर युद्ध के बादल मँडराने लगते हैं, फिर भी जनक उसकी परवाह किए बिना उस बाल ऋषि के सान्निध्य में अधिक-से-अधिक समय बिताते हैं। भले ही सभी को द्वार पर संकट खड़ा दिखता है, लेकिन जनक आध्यात्मिक ज्ञान-प्राप्ति के पथ को नहीं छोड़ते। अंततः अष्टावक्र के मार्गदर्शन में राजा एक ऐसे संसार में प्रवेश करते हैं जहाँ उनके और उनके राज्य के लिए वास्तविकता बदल जाती है।
यह उपन्यास प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान और दर्शन पर आधारित है, लेकिन इसमें मुक्ति, ज्ञान-प्राप्ति और चेतना की अवधारणाओं के साथ जीवन की वास्तविकताओं की नई विवेचना है। अन्य बातों के साथ ही यह इस प्रश्न का उत्तर देती है—क्या जो कुछ हम देखते हैं, सब सच में माया है? यह रोचक कहानी आधुनिक युग के पाठकों के अस्तित्व से जुड़े प्रश्नों पर प्रकाश डालती है, जिसके कारण वे राजा और उनके संघर्षों में स्वयं को देखते हैं।
ISBN: 9789390900381
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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