Ekatma Bharat Ke Praneta Dr. Syama Prasad Mookerjee
Author:
Acharya Mayaram 'Patang'Publisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, परंतु यह सत्य उजागर नहीं हो सका कि उनका बलिदान हुआ या किया गया? अर्थात् उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी या षड्यंत्र के तहत की गई? कोई नहीं जानता कि सच क्या है? परंतु यह तो सत्य है कि उनका बलिदान न होता तो कश्मीर अब तक भारत से अलग हो चुका होता।
नेहरूजी ने शेख अब्दुल्ला की सभी शर्तें मान ली थीं। यह उनकी कायरता थी या अदूरदर्शिता, कुछ नहीं कहा जा सकता। शायद विश्व का लोकप्रिय शांतिदूत बनने का स्वप्न ही इस नीति का कारण रहा हो !
एकात्म भारत के प्रणेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी की प्रामाणिक जीवन-कथा।
ISBN: 9789355211637
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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व्रत, पर्व और त्योहार यद्यपि ये तीनों उत्सव के भिन्न-भिन्न रूप हैं तथापि किसी-न-किसी रूप में इनमें परस्पर विचित्र समानता पायी जाती है। व्रत का विधान बहुधा आध्यात्मिक अथवा मानसिक शक्ति की प्राप्ति के लिए, चित्त अथवा आत्मा की शुद्धि के लिए, संकल्प-शक्ति की दृढ़ता के लिए, ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा के विकास के लिए, वातावरण की पवित्रता के लिए, दूसरों पर अपने प्रभाव जमाने के लिए, अपने विचारों को उच्च एवं परिष्कृत करने के लिए तथा प्रकारान्तर से स्वास्थ्य की प्रगति के लिए किया जाता है। यद्यपि भारतीय विचारधारा में व्रत का सामान्य अर्थ व्रत अथवा उपवास ही है, तथापि कुछ ऐसे व्रत हैं जिनमें उपवास का स्थान गौण है और चित्त-शुद्धि अथवा आत्म-परिष्कृत का स्थान मुख्य है। पर्व किसी मुख्य तिथि अथवा ज्योतिष के अनुसार ग्रहों आदि के संयोग का ही दूसरा नाम है, जो किसी निर्दिष्ट समय पर आता है। पर्व का बीच-बीच में निर्दिष्ट अवधि पर आते रहते हैं जैसे कुम्भ पर्व आदि। आकाश के नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति के अनुसार इन पर्वों का धरती के जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। त्योहार एक सामान्य शब्द है। आजकल इसका प्रयोग व्रत और पर्व के लिए भी होने लगा है, किन्तु इसका तात्पर्य वस्तुत: लौकिक उत्सवों एवं समारोहों की तिथि से ही अधिक समीप है जैसे दशहरा, होली आदि।
व्रत दो प्रकार के होते हैं, ‘काम्य’ और ‘नित्य’। काम्य उन्हें कहते हैं जो किसी विशेष कामना को लेकर किये जाते हैं और नित्य वे हैं, जिनमें किसी कामना का समावेश नहीं होता, वरन् जो भक्ति और प्रेम के कारण आध्यात्मिक प्रेरणा से किये जाते हैं। निष्काम अथवा नि:स्वार्थ व्रत का ही स्थान ऊँचा होता है।
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