
Cricket Ki Marketing
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
176
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
352 mins
Book Description
v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main">समय बदलता है तो स्थितियाँ भी बदलती हैं। जीवन का स्वरूप भी बदलता है। बदलते समय के साथ सब कुछ बदलता है। वैसे ही क्रिकेट के खेल में भी बदलाव आते रहे हैं। क्रिकेट बदला तो खेल की मार्केटिंग भी बदली। आज जहाँ भी जिन खेलों की लोकप्रियता है, वहाँ का मार्केट ही उन खेलों का मुख्य प्रायोजक है। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता है तो आज विश्व क्रिकेट भी भारत के प्रायोजकों के धन से ही चल रहा है। इसलिए क्रिकेट की मार्केटिंग का हिसाब लगाती यह किताब आज के बदलते समय को समझने में भी काम आने वाली है। मार्केट या बाज़ार समाज का अहम हिस्सा रहे हैं। मार्केट पर भी समाज का ही नियंत्रण रहा। मगर आज मार्केट पर नियंत्रण करने वाला समाज ही उसके सामने नतमस्तक है। आज सब मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं। यहाँ तक कि खिलाड़ी भी आज खेल को खेल की तरह न खेलकर कि कोरे मुनाफे के लिए ही खेलते हैं। प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी की यह किताब क्रिकेट में मार्केट की बढ़ती दखलअन्दाजी को सामने लाने का अच्छा प्रयास है। क्रिकेट का मार्केट अगर खेल और खिलाड़ियों पर हावी होने लगेगा तो न तो क्रिकेट शानदार अनिश्चिततओं का खेल रह जाएगा और न ही इसके खिलाड़ी लोकप्रिय और यशस्वी हो पाएँगे। खेल खतम, पैसा हज़म नहीं होना चाहिए। किताब पढ़ें और क्रिकेट की विरासत को समझें।</